भारतीय राजनीति में सक्रिय परिवारों में बंटवारा नई बात नहीं है। अनेक राजनीतिक परिवारों में बंटवारा हुआ और सदस्यों ने अलग अलग रास्ता पकड़ा। लेकिन उनका विवाद कभी भी निजी रूप नहीं लेता था। एकाध अपवाड़ छोड़ दें तो लोग एक दूसरे के खिलाफ लड़ने या हराने की नीयत से काम नहीं करते थे। लेकिन इस बार कमाल हो रहा है। इस बार राजनीतिक परिवारों का बंटवारा निजी विवाद में तब्दील हो रहा है।
परिवारों के सदस्य आपस में लड़ रहे हैं और एक दूसरे को निपटाने की राजनीति कर रहे हैं। इस लिहाज से कह सकते हैं कि सबसे गरिमा के साथ परिवार का बंटवारा बाल ठाकरे परिवार में हुआ था। राज ठाकरे ने अलग होकर पार्टी बना ली लेकिन उन्होंने बाल ठाकरे या परिवार के दूसरे सदस्यों के खिलाफ बयानबाजी नहीं की और न उनको हराने के लिए चुनाव लड़ा।
इससे उलट ठाकरे परिवार का बंटवारा बहुत कड़वाहट वाला होता जा रहा है। अजित पवार ने न सिर्फ शरद पवार की बनाई पार्टी तोड़ी, बल्कि उनकी पारंपरिक बारामती सीट पर शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले को हराने का संकल्प जताया है। इसके लिए वे अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार को चुनाव लड़ा रहे हैं। हालांकि पहले भी धनंजय मुंडे अपनी चचेरी बहन पंकजा मुंडे के खिलाफ लड़े थे या शिवपाल यादव ने अपने चचेरे भाई रामगोपाल यादव के बेटे के खिलाफ चुनाव लड़ा था लेकिन इतनी कड़वाहट तब भी नहीं दिखी थी।
इसी तरह बिहार में दिवंगत रामविलास पासवान के भाई और बेटे के बीच कड़वाहट देखने को मिली है। चिराग पासवान ने भाजपा के साथ तालमेल के लिए शर्त रखी थी कि उनके चाचा को कोई जगह नहीं मिलेगी और कोई सीट नहीं दी जाएगी तभी वे तालमेल करेंगे। इससे पहले चाचा पशुपति पारस ने भी इसी अंदाज में पार्टी तोड़ी थी और चिराग पासवान को अलग थलग किया था।