हॉलीवुड की फिल्म ‘क्यूरियस केस ऑफ बेंजामिन बटन’ की तरह ‘क्यूरियस केस ऑफ धीरज साहू’ है। कांग्रेस के राज्यसभा सासंद और शराब कारोबारी धीरज साहू के यहां सात दिसंबर को ईडी ने छापमारी की थी और करीब दो हफ्ते तक कार्रवाई और नोटों की गिनती के बाद बताया गया कि 351 करोड़ रुपए की जब्ती हुई है। यह आज तक के इतिहास की सबसे बड़ी जब्ती है। धीरज साहू के खिलाफ हुई कार्रवाई को लेकर खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो बार ट्विट किया। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि दो महीने तक ईडी ने उनको पूछताछ के लिए नहीं बुलाया। सोचें, दूसरी ओर दो-चार करोड़ रुपए की बरामदगी पर तत्काल गिरफ्तारी होती है। बंगाल में पार्था चटर्जी से लेकर झारखंड में पूजा सिंघल, हरियाणा में दिलबाग सिंह और छत्तीसगढ़ में असीम दास तक, नकदी की बरामदगी के बाद सब गिरफ्तार हुए। लेकिन धीरज साहू की गिरफ्तारी तो छोड़िए, प्रधानमंत्री के दो ट्विट के बाद भी उनको पूछताछ तक के लिए नहीं बुलाया गया।
अब जाकर उनको ईडी ने नोटिस दिया और शनिवार को पूछताछ के लिए बुलाया। लेकिन वह भी पूछताछ उनके साढ़े तीन सौ करोड़ रुपए की जब्ती को लेकर नहीं है। उनको झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के मामले में पूछताछ के लिए बुलाया गया। असल में 29 जनवरी को ईडी ने दिल्ली के शांति निकेतन स्थित हेमंत सोरेन के आवास पर छापा मारा था। वहां से एक बीएमडब्लु गाड़ी बरामद हुई, जिसका पंजीकरण धीरज साहू के मानेसर स्थित कार्यालय के पते पर है। वहां से ईडी ने 36 करोड़ रुपए भी जब्त करने का दावा किया। इसके दो दिन बाद ही हेमंत सोरेन को गिरफ्तार किया गया था। सोचें, एक गाड़ी और 36 लाख रुपए की जब्ती के मामले में तो तत्काल नोटिस भेज दिया गया लेकिन साढ़े तीन सौ करोड़ रुपए की नकदी की जब्ती के मामले में अभी तक कोई नोटिस जारी नहीं किया गया है। इसका क्या मतलब माना जाए? क्या सचमुच धीरज साहू की बात सही है कि पैसे उनके शराब कारोबार के हैं और उसमें कुछ भी अवैध नहीं है? अगर ऐसा है तो प्रधानमंत्री मोदी के ट्विट और लूट के पैसे की पाई पाई की वसूली के बयान का क्या मतलब है?