एक समय था, जब दिल्ली में बहुजन समाज पार्टी का विधायक जरूर जीतता था। अगर विधायक नहीं जीता तब भी बसपा को पांच से छह फीसदी वोट मिलते थे। परंतु पिछले दो चुनावों से बसपा के वोट में बड़ी गिरावट आ रही है। आम आदमी पार्टी के उभार के बाद से बसपा बिल्कुल हाशिए में चली गई है। उसे 2013 के चुनाव में जब पहली बार आप ने चुनाव लड़ा और 28 सीटें जीत कर कांग्रेस की मदद से सरकार बनाई, उस चुनाव में भी बसपा को 5.4 फीसदी वोट मिले थे। परंतु 2015 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 4.1 फीसदी वोट गंवा दिया। उसे सिर्फ 1.3 फीसदी वोट मिला। अगले चुनाव में यानी 2020 में उसने और वोट गंवाया। वह 70 सीटों पर लड़ी और उसे सिर्फ 66 हजार यानी 0.71 फीसदी वोट मिले। हर सीट पर औसतन एक हजार वोट भी उसको नहीं मिला।
लगातार दो चुनावों में इतने खराब प्रदर्शन के बाद अब पार्टी ने इस बार के चुनाव को गंभीरता से लिया है। बसपा को लग रहा है कि दिल्ली में इस बार बहुकोणीय मुकाबला हो सकता है। कांग्रेस भी इस बार ज्यादा दम लगा कर लड़ रही है और भाजपा भी मजबूती से लड़ रही है। तभी बसपा ने भी जोर लगा कर लड़ने का फैसला किया है। दम से लड़ने के लिए पार्टी सुप्रीमो मायावती के भतीजे और उनके उत्तराधिकारी आकाश आनंद को उतारा गया है। बसपा को चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी का भी खतरा दिख रहा है। इसलिए दिल्ली में इस बार आकाश आनंद के नेतृत्व में बसपा इस बात की लड़ाई लड़ेगी कि उसे आजाद समाज पार्टी से ज्यादा वोट मिले।