महाराष्ट्र और झारखंड के बाद दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने हैं। तीन महीने के बाद फरवरी में दिल्ली विधानसभा का चुनाव होगा। उससे पहले कांग्रेस और भाजपा दोनों राष्ट्रीय पार्टियां चेहरे की तलाश में हैं। असल में दोनों के पास आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो और तीन बार दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे अरविंद केजरीवाल से मुकाबले का कोई चेहरा नहीं है। पार्टियां नए चेहरे तलाश रही हैं तो दूसरी ओर दोनों पार्टियों के नेता अपनी पोजिशनिंग में जुटे हैं। वे यह साबित करने में लगे हैं कि वे मुख्यमंत्री का चेहरा हो सकते हैं। भाजपा में यह घमासान ज्यादा है क्योंकि उसके नेताओं को लग रहा है कि अगले चुनाव में भाजपा के लिए मौका बन सकता है। कांग्रेस तो किसी तरह से खाता खोलने की कोशिश में है तो उसकी तलाश उसी स्तर की है। वह ऐसा नेता खोज रही है, जिसके चेहरे पर दिल्ली में खाता खुल जाए। देवेंद्र यादव यह काम कर सकते हैं या अजय माकन इसकी बहस है या अलका लांबा टाइप का नया चेहरा लाया जाए, इसकी बहस चल रही है।
दूसरी ओर भाजपा में मुकाबला कांटे का हो गया है। वीरेंद्र सचदेवा, जब से कार्यकारी से पूर्णकालिक अध्यक्ष बने हैं तब से उनकी सक्रियता बहुत बढ़ गई है। पिछले दिनों उन्होंने बेहद प्रदूषित यमुना में डूबकी लगा कर अपनी दावेदारी पेश की। भाजपा विधायक दल के नेता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने अभी तक दावेदारी नहीं छोड़ी है। उनके साथ के काफी नेता थक हार गए हैं। लोकसभा चुनाव लड़ने से वंचित कर दिए गए कम से कम दो नेता, प्रवेश वर्मा और रमेश विधूड़ी अलग से प्रयास कर रहे हैं। ये चारों नेता पंजाबी, वैश्य, गुर्जर और जाट समुदायों का प्रतिनिधित्व करते हैं। दिल्ली के प्रवासियों के प्रतिनिधि मनोज तिवारी भी तीसरी बार सांसद चुने जाने के बाद से सक्रिय हो गए हैं। उनकी जिम्मेदारी आम आदमी पार्टी और कांग्रेस से प्रवासी वोट भाजपा को ट्रांसफर कराने की है। इन पांच के अलावा दो महिलाओं के चर्चा भी है। दिवंगत सुषमा स्वराज की बेटी और नई दिल्ली की सांसद बांसुरी स्वराज और पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को भी दावेदार माना जा रहा है। केजरीवाल से लड़ने से पहले भाजपा को यह फैसला करना है कि इन सात में से किसी का चेहरा आगे करके लड़ना है या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ना है।