तमाम चुनाव विश्लेषक और राजनीतिक जानकारी अखबारों में लिख कर बता रहे हैं कि भाजपा की स्थिति में दिल्ली में चमत्कारिक सुधार नहीं हो रहा है और वह चुनाव जीतने की उम्मीद तभी कर सकती है, जब कांग्रेस पार्टी उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन करे। इसके बावजूद भाजपा के नेता दावा कर रहे हैं कि इस बार दिल्ली में जीत मिल रही है। भाजपा के नेता तमाम अनुमानों को खारिज करते हुए कह रहे हैं कि हरियाणा और महाराष्ट्र में भी कहा जा रहा था कि भाजपा हार रही है लेकिन भाजपा पहले से ज्यादा वोट और सीटों के साथ जीती। सचमुच इन दोनों राज्यों में चमत्कार हुआ था। एकाध अपवादों को छोड़ दें तो हर ओपिनियन पोल और हर एक्जिट पोल में भाजपा के हारने और कांग्रेस या उसके गठबंधन की बड़ी जीत का अनुमान लगाया गया था। लेकिन नतीजे तमाम अनुमानों के विपरीत आए।
भाजपा के नेता ऐसे ही चमत्कार का दावा दिल्ली में कर रहे हैं। सवाल है कि इस दावे का क्या आधार है? महाराष्ट्र और हरियाणा में माइक्रो प्रबंधन के दम पर भाजपा ने गणित बदला था। बड़ी संख्या में निर्दलीय उम्मीदवार उतारे गए थे और उसके प्रदेश की दो पार्टियों, इनेलो और जजपा का बहुजन समाज पार्टी व आजाद समाज पार्टी के साथ तालमेल हुआ था और ये दोनों गठबंधन भी चुनाव लड़ रहे थे। लेकिन दिल्ली में ऐसा कुछ नहीं हो रहा है। दिल्ली में बसपा जरूर चुनाव लड़ रही है लेकिन वह अब कई ताकत नहीं रह गई है। जहां तक माइक्रो प्रबंधन की बात है तो वह भी बहुत ज्यादा सीटों पर नहीं दिख रहा है। हां, यह जरूर है कि कुछ हाई प्रोफाइल सीटों पर जरूर दिलचस्प मुकाबला हो गया है। जैसे अरविंद केजरीवाल का नई दिल्ली सीट पर सबसे ज्यादा 25 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। सबसे कायदे से कांग्रेस के संदीप दीक्षित लड़ रहे हैं। आम आदमी पार्टी के नेता उनका नाम लेने से बच रहे हैं। उनका सारा हमला भाजपा के प्रवेश वर्मा पर है। लेकिन जमीनी रिपोर्ट यह है कि अगर केजरीवाल के मुकाबले लड़ाई में संदीप दीक्षित दिखाई देते हैं तो भाजपा समर्थक उनकी भी मदद कर सकते हैं। ऐसे ही मनीष सिसोदिया की जंगपुरा सीट पर और अवध ओझा की पटपड़गंज सीट पर मुकाबला बहुत दिलचस्प हो गया है।