केंद्रीय विश्वविद्यालयों में दाखिले के लिए हुई सीयूईटी की परीक्षा के नतीजे आने में देरी का नुकसान किसको हुआ यह सबको पता है। सब जानते हैं कि इसका नुकसान छात्रों को हुआ है। लेकिन फायदा किसको हुआ है, इसकी चर्चा नहीं हो रही है। इसके नतीजों में देरी का फायदा सीधे तौर पर निजी विश्वविद्यालयों को हुआ है। गौरतलब है कि सीयूईटी की परीक्षा के नतीजे 30 जून तक जारी होने थे। नियमों के मुताबिक इससे एक हफ्ते या 10 दिन पहले परीक्षा की आंसर शीट जारी होनी थी ताकि छात्र उसका मिलान कर सकें और कोई गड़बड़ी हो तो उसे चुनौती दे सकें। लेकिन जून के पहले हफ्ते में नीट यूजी परीक्षा में हुई गड़बड़ी के विवाद के बाद नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने सीयूईटी के नतीजे टाल दिए।
एनटीए ने एक महीने की देरी से 28 जुलाई को इसके नतीजे जारी किए। इस एक महीने की देरी का निजी विश्वविद्यालयों ने जम कर फायदा उठाया। उन्होंने आवेदन करने वाले छात्रों पर दबाव बनाया कि वे दाखिला कराएं अन्यथा बाद में मौका नहीं मिलेगा। ऐसे छात्र जो सीयूईटी की परीक्षा में अपने प्रदर्शन को लेकर बहुत भरोसे में नहीं थे या जिनको लग रहा था कि अच्छा करने पर भी किसी बड़े केंद्रीय विश्वविद्यालय में दाखिला नहीं मिलेगा वे निजी विश्वविद्यालयों में फीस जमा कराने लगे। फीस का बड़ा हिस्सा नॉन रिफंडेबल था। कई निजी विश्वविद्यालयों ने पढ़ाई शुरू करा दी। इस दबाव में भी छात्रों के अभिभावक वहां दाखिला लेने लगे। निजी विश्वविद्यालयों को लाभ पहुंचाने का काम अनजाने में हुआ या आपदा को अवसर बना कर जान बूझकर किया गया यह पता नहीं है लेकिन आगे से ऐसा न हो इसका ध्यान रखना चाहिए।
एमवीए में सीएम चेहरे पर सस्पेंश
महाराष्ट्र के विपक्षी गठबंधन महा विकास अघाड़ी यानी एमवीए में मुख्यमंत्री पद को लेकर विवाद शुरू हो गया है। दिलचस्प बात यह है कि इस विवाद में सिर्फ विपक्षी गठबंधन की पार्टियां ही शामिल नहीं हैं, बल्कि दूसरी पार्टियों के नेता भी शामिल हैं। जैसे पिछले दिनों वंचित बहुजन अघाड़ी के नेता प्रकाश अंबेडकर ने कहा कि असली शिव सेना एकनाथ शिंदे की है क्योंकि लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी का स्ट्राइक रेट उद्धव से बेहतर था और उनकी पार्टी को उद्धव की शिव सेना से ज्यादा मत प्रतिशत मिला। सोचें, प्रकाश अंबेडकर को उद्धव ने कांग्रेस और शरद पवार के विरोध के बावजूद महा विकास अघाड़ी में शामिल करने का प्रयास किया था। लेकिन अब वे उद्धव की दावेदारी को कमजोर करने के लिए लोकसभा चुनाव में मिले वोट का गणित समझा रहे हैं! तथ्यात्मक रूप से यह बात सही है लेकिन चुनाव सिर्फ तथ्यों के आधार पर नहीं लड़ा जाता है, बल्कि धारणा के आधार पर ज्यादा लड़ा जाता है।
बहरहाल, प्रकाश अंबेडकर ने जो कहा उसे आधार बना कर कांग्रेस और शरद पवार की एनसीपी के भी कई नेता उद्धव ठाकरे के नेतृत्व पर सवाल उठाने लगे हैं। हालांकि यह बात खुल कर नहीं कही जा रही है। परंतु उद्धव ठाकरे की कई दिन की दिल्ली यात्रा के बाद यह विवाद बढ़ा है। कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने साफ किया कि महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री का चेहरा प्रोजेक्ट करके चुनाव लड़ने की परंपरा नहीं रही है। उन्होंने कहा कि किसी भी चुनाव में कोई भी पार्टी सीएम का चेहरे पेश करके चुनाव नहीं लड़ी है। चव्हाण ने यह भी कहा कि सत्तारूढ़ महायुति में भी सीएम का चेहरा घोषित नहीं किया गया है। हालांकि उधर एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री हैं और माना जा रहा है कि वे चुनाव का नेतृत्व करेंगे। लेकिन भाजपा ने भी अपनी ओर से उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस को आगे किया है और एनसीपी की ओर से उसके सुप्रीमो अजित पवार का चेहरा है ही। माना जा रहा है कि पृथ्वीराज चव्हाण का बयान उद्धव ठाकरे की दावेदारी को रोकने या उसे कमजोर करने के लिए आया है। उद्धव ठाकरे गुट ने भी इस बात को समझा है लेकिन वे अभी लड़ने के मूड में नहीं हैं।
उद्धव ठाकरे की ओर से राज्यसभा सांसद और पार्टी के प्रवक्ता संजय राउत ने कहा है कि मुख्यमंत्री का चेहरा प्रोजेक्ट करने के बारे में फैसला समय आने पर किया जाएगा। अनौपचारिक बातचीत में शिव सेना के नेता कह रहे हैं कि कांग्रेस को भी उद्धव ठाकरे के चेहरे से परेशानी नहीं है। असल में कांग्रेस के अंदर कई नेताओं के बीच खींचतान चल रही है। पार्टी के अंदर मराठा, पिछड़े और दलित नेता सीएम पद की दावेदारी कर रहे हैं। प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले अपने को सबसे स्वाभाविक दावेदार मान रहे हैं तो बालासाहेब थोराट और पृथ्वीराज चव्हाण भी दावेदार हैं। लोकसभा का चुनाव जीतीं मुंबई क्षेत्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष वर्षा गायकवाड़ के समर्थक भी उनके नाम का हल्ला बनाए हुए हैं। ये सारे नेता चाहते हैं कि सीएम पद का मुद्दा अभी नहीं उठाया जाए। उनको पता है कि अगर उद्धव ठाकरे के नाम की घोषणा हो गई तो गठबंधन के चुनाव जीतने के बाद उनको बनाना होगा। अगर नहीं घोषणा होती है तो चुनाव के बाद सबके लिए मैदान खुला रहेगा। विधानसभा सीटों की गणित के हिसाब से फैसला होगा। दूसरी ओर उद्धव खेमा अभी घोषणा इसलिए चाहता है ताकि चुनाव के बाद सीटें कम भी आएं तो विवाद नहीं हो और अगर विवाद हो तो वे इसे आधार बना कर गठबंधन से अलग हो सकें। गठबंधन के बड़े नेताओं खास कर सोनिया व राहुल गांधी और शरद पवार को यह विवाद सुलझाना होगा।
उद्धव का अकेला चेहरा और हमला!
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले उद्धव ठाकरे की शिव सेना के नेता वह सारे प्रयास कर रहे हैं, जिससे लगे कि राज्य में एकमात्र नेता उद्धव ठाकरे हैं और सभी पार्टियों के साथ उनका ही मुकाबला है। यह धारणा बनवाने के लिए सारे प्रयास किए जा रहे हैं। दूसरी पार्टियों के नेताओं को भी इसमें कुछ फायदा दिख रहा है इसलिए उन्होंने भी अपना निशाना सिर्फ उद्धव पर लगाया है। ताजा मामला संभाजीनगर में उद्धव ठाकरे के काफिले पर गाय का गोबर, चूड़ियां आदि फेंक कर हमला करने का है। यह हमला राज ठाकरे की पार्टी एमएनएस के नेताओं ने किया। इसके बाद उद्धव ठाकरे की पार्टी के नेताओं ने कहा कि यह हमला ‘दिल्ली के अहमद शाह अब्दाली’ के इशारे पर हुआ है। गौरतलब है कि उद्धव ठाकरे ने पिछले दिनों केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के लिए कहा था कि वे अहमद शाह अब्दाली हैं। अब उनकी पार्टी के नेता इसी संबोधन का प्रयोग कर रहे हैं।
इससे पहले जब अमित शाह महाराष्ट्र के दौरे पर गए थे तब उन्होंने उद्धव ठाकरे को औरंगजेब फैन क्लब का सदस्य बताया था। इसके जवाब में उद्धव ने शाह को अहमद शाह अब्दाली कहा। गौरतलब है कि मराठा इतिहास में औरंगजेब और अब्दाली दोनों की बड़ी ग्रंथि है। छत्रपति शिवाजी की लड़ाई औरंगजेब से हुई थी तो उसके बहुत समय बाद अब्दाली की फौज से मराठा सेना की लड़ाई हुई थी, जिसमें मराठाओं की हार हुई थी। बहरहाल, अमित शाह और राज ठाकरे दोनों पर उद्धव की पार्टी का हमला यह दिखाने के लिए है कि महाराष्ट्र में विपक्ष की कमान उद्धव के हाथ में है। इसी तरह उद्धव ने महाराष्ट्र में भाजपा के नंबर एक नेता देवेंद्र फड़नवीस को निशाना बनाया। उद्धव ने कहा कि यहां तक कहा कि ‘अब राज्य की राजनीति में या तो फड़नवीस रहेंगे या हम’। सो, चाहे फड़नवीस हों या एकनाथ शिंदे और चाहे अमित शाह हों या राज ठाकरे, सबके साथ मुकाबला उद्धव का दिखाया जा रहा है। इससे विपक्षी गठबंधन की दोनों पार्टियों कांग्रेस और शरद पवार की एनसीपी पर भी दबाव बन रहा है।
भाजपा खोजेगी अन्नामलाई का विकल्प
तमिलनाडु में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के अन्नामलाई से पार्टी के शीर्ष नेताओं का मोहभंग हो गया है। लोकसभा चुनाव में पार्टी ने उन पर बहुत भरोसा किया था। पूर्व आईपीएस अधिकारी अन्नामलाई ने अपने हिसाब से राज्य की राजनीति का नैरेटिव सेट करने का प्रयास भी किया। लेकिन उनको कामयाबी नहीं मिली। भाजपा का खाता नहीं खुला। वे खुद कोयंबटूर जैसी आसान माने जानी वाली सीट से चुनाव हार गए। चुनाव हारने के बाद ऐसा लग रहा है कि उनका खुद का भी मोहभंग हो गया। तभी कहा जा रहा है कि उन्होंने पार्टी आलाकमान से तीन महीने की छुट्टी मांगी और लंदन जाकर कोई शॉर्ट टर्म कोर्स करने की इच्छा जताई। हालांकि उन्हें इसकी मंजूरी नहीं मिली लेकिन उनका रुख देख कर पार्टी को उनका विकल्प खोजना पड़ रहा है।
इस बीच वे धीरे धीरे पार्टी की लाइन से अलग हट कर स्टैंड लेने लगे हैं। उन्होंने हिंडनबर्ग रिसर्च के ताजा आरोप पर ऐसा बयान दिया है, जिससे पार्टी के नेता परेशान हुए हैं। अन्नामलाई ने कह दिया है कि हिंडनबर्ग की ओर से सेबी प्रमुख माधवी बुच के खिलाफ लगाए गए आरोपों की जांच होनी चाहिए। हालांकि उन्होंने हिंडनबर्ग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया लेकिन सेबी प्रमुख की जांच की बात करके उन्होंने अपनी ही पार्टी को परेशानी में डाल दिया। तभी कहा जा रहा है कि उनकी विकल्प खोजने के प्रयास तेज हो गए हैं। लेकिन साथ ही पार्टी के शीर्ष नेता यह नहीं चाहते हैं कि कड़वाहट के साथ अन्नामलाई की विदाई हो। पार्टी को आगे की राजनीति में भी उनका महत्व दिख रहा है।
जेएमएम और कांग्रेस में सीटों की अदला बदली?
झारखंड में विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो गई हैं। चुनाव कब होगा इसका सस्पेंस कायम है लेकिन दोनों पार्टियां यह मान कर चल रही हैं कि सितंबर के अंत में या अक्टूबर में चुनाव हो जाएगा। तभी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने सभी जिला कमेटियों को संभावित उम्मीदवारों के नाम भेजने को कहा है। उन्होंने जिला अध्यक्षों को कहा है कि वे हर सीट पर चुनाव लड़ने के इच्छुक उम्मीदवारों के आवेदन मंगाएं और उनके बारे में विस्तृत ब्योरा प्रदेश कमेटी को अगले 15 दिन में भेजें।
इस बीच कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टी जेएमएम के बीच सीटों की अदला बदली की खबरें आने लगी हैं। बताया जा रहा है कि जेएमएम के नेता मान रहे हैं कि भाजपा ने कांग्रेस की सीटों पर ज्यादा ध्यान देना शुरू किया है। भाजपा को लग रहा ह कि कांग्रेस को हराना अपेक्षाकृत आसान है। तभी करीब एक दर्जन ऐसी सीटों की पहचान की गई है, जहां कांग्रेस के मुकाबले जेएमएम के जीतने की संभावना ज्यादा है। ऐसी सीटें जेएमएम के खाते में जा सकती हैं और बदले में कांग्रेस को दूसरी सीटें मिल सकती हैं। कहा जा रहा है कि आदिवासी बहुल इलाकों में जेएमएम को ज्यादा सीटें लड़ने के लिए दी जाएंगी।
पिछले चुनाव में कांग्रेस ने राज्य की 81 में से 31 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इस बार पार्टी 33 सीटें मांग रही है क्योंकि भाजपा के मांडू विधायक जेपी पटेल और जेवीएम के पोड़ौयाहाट के विधायक प्रदीप यादव कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। बहरहाल, बताया जा रहा है कि रांची के आसपास की दो सीटों कांके और तोरपा के अलावा धनबाद की निरसा और सिंदरी सीट भी जेएमएम को दी जा सकती है। इसके अलावा कोडरमा की बरकट्ठा, राज धनवार और जमुआ सीटों की अदला बदली की भी चर्चा है। इसी तरह भवनाथपुर सीट भी बदलने की चर्चा है तो बाहर से आए दोनों विधायकों जेपी पटेल और प्रदीप यादव की सीट पर भी जेएमएम चुनाव लड़ना चाहती है। दोनों पार्टियां जल्दी ही इस पर फैसला करने के लिए बैठक करने वाली हैं।