भारत की सबसे बड़ी कम्युनिस्ट पार्टी में सबसे लचीले और सबको साथ लेकर चलने वाले नेता सीताराम येचुरी थे, जिनका पिछले दिनों निधन हो गया। यह संयोग है कि सबसे समावेशी नेता येचुरी के सीपीएम महासिचव रहते वाम मोर्चे में सबसे ज्यादा बिखराव हुआ। पश्चिम बंगाल से लेकर त्रिपुरा और केरल तक पार्टी पूरी तरह से हाशिए में गई वह एक बात है लेकिन इसके साथ साथ वामपंथी पार्टियों का मोर्चा भी बिखर गया। येचुरी सबको साथ लेकर नहीं चल सके या कमजोर होने की वजह से मोर्चा बिखरा यह विश्लेषण का विषय है लेकिन अब खबर है कि सीपीएम की ओर से सभी वामपंथी पार्टियों को एक साथ लाने की कोशिश हो रही है। इसका प्रयास शुरू होने वाला है। अगले साल अप्रैल में सीपीएम की पार्टी कांग्रेस होगी, जिसमें नया महासचिव चुना जाएगा। उससे पहले पार्टी कांग्रेस का एजेंडा और राजनीतिक प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है, जिसमें वाम एकता की बातें प्रमुखता से शामिल की जाएंगी। असल में पिछले कुछ सालों में किसी मसले पर सभी पार्टियों की राय एक नहीं रही। इजराइल के फिलस्तीन पर हमले को छोड़ दें तो किसी मसले पर साझा राय देखने को नहीं मिली।
गौरतलब है कि येचुरी के निधन के बाद पार्टी के पूर्व महासचिव और वैचारिक शुचिता के प्रति सबसे ज्यादा कट्टर माने जाने वाले प्रकाश करात पार्टी की कमान संभाल रहे हैं। वैसे भी येचुरी के रहते भी करात की लॉबी यानी केरल लॉबी ही प्रमुख थी। लेकिन अब करात सीधे कमान में हैं। उनकी सबसे बड़ी चिंता वामपंथ के इकलौते बचे हुए गढ़ केरल को बचाने की है। केरल में सीपीएम के नेतृत्व वाला लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी एलडीएफ लगातार दो बार चुनाव जीता है। उसने 2016 में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल किया था और 2019 में लोकसभा की एक छोड़ कर सारी सीटें हार जाने के बाद भी 2021 में लेफ्ट मोर्चा फिर से जीत गया। अब 2024 के लोकसभा चुनाव में वाम मोर्चा सारी सीटें हार गया है। तभी करात को लग रहा है कि किसी तरह से केरल का गढ़ बचाना होगा। ध्यान रहे केरल में सीपीएम और सीपीआई के बीच सब ठीक नहीं चल रहा है। उनको अगले साल पार्टी कांग्रेस तक सब कुछ ठीक करना है ताकि बचे हुए एक साल में चुनाव की बेहतर तैयारी हो। करात की समस्या सीपीआई के साथ साथ सीपीआई माले की भी है, जिसका आधार बिहार में है। कहा जा रहा है कि केरल में एकजुटता बनाने के बाद बाकी देश में इसका प्रयास होगा।