केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार को संविधान में 129वें संशोधन का बिल पेश किया तो उसके समर्थन में 263 और विरोध में 198 वोट पड़े। पहले तो जब इलेक्ट्रोनिक वोटिंग हुई तो यह संख्या और भी कम थी लेकिन पर्ची से वोटिंग होने पर संख्या बढ़ी। इसके बाद कहा गया बिल विचार के लिए स्वीकार कर लिया गया। लेकिन कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियां अब भी इस पर सवाल उठा रही हैं। उनका कहना है कि बिल स्वीकार करने के लिए भी विशेष बहुमत की जरुरत होती है।
कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों का कहना है कि संविधान संशोधन का बिल साधारण बहुमत से स्वीकार नहीं किया जा सकता है, उसके लिए विशेष बहुमत की जरुरत होती है। दूसरी ओर सरकार का कहना है कि बिल स्वीकार कराने के लिए विशेष बहुमत नहीं चाहिए, पास कराने के लिए विशेष बहुमत चाहिए। उनके मुताबिक साधारण बहुमत से बिल स्वीकार किया जा सकता है।
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कांग्रेस सांसद मणिक्कम टैगोर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि लोकसभा में मौजूद और वोट करने वाले 461 सांसदों में से सरकार को बिल स्वीकार कराने के लिए दो तिहाई यानी 307 वोट की जरुरत थी, जबकि उसे सिर्फ 263 वोट मिले और विपक्ष में 198 वोट पड़े। इस आधार पर उन्होंने कहा कि ‘एक देश, एक चुनाव’ का प्रस्ताव विफल हो गया। दूसरी ओर सरकार का कहना है कि 461 में से बिल स्वीकार कराने के लिए 232 चाहिए थे, जबकि 263 वोट पड़े।
संविधान के जानकारों की राय भी इस पर बंटी हुई है। कुछ जानकारों का कहना है कि बिल स्वीकार कराने के लिए दो तिहाई बहुमत नहीं चाहिए। लोकसभा के पूर्व महासचिव पीटीडी आचार्य इस राय के हैं। लेकिन दूसरी ओर कई जानकारों का कहना है कि संविधान संशोधन बिल को हर चरण में विशेष बहुमत यानी दो तिहाई वोट की जरुरत होती है। इसका मतलब है कि बिल स्वीकार करने, उसे जेपीसी में भेजने और पास कराने के तीनों चरण में दो तिहाई वोट चाहिए। इस वजह से बहुत दिलचस्प स्थिति बन गई है।