सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने एक अगस्त को अनुसूचित जाति के आरक्षण में वर्गीकरण का फैसला सुनाया था। उसके तुरंत बाद तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने कहा था कि इस फैसले को सबसे पहले लागू करने वाला राज्य तेलंगाना होगा। लेकिन उसके बाद तीन महीने बीत चुके हैं और अभी तक रेड्डी सरकार ने कोई फैसला नहीं किया है। इस बीच हरियाणा की नायब सिंह सैनी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने का आदेश दे दिया है। कांग्रेस की कर्नाटक सरकार ने भी वर्गीकरण लागू करने का फैसला किया है। कैबिनेट की बैठक में 28 अक्टूबर को इसका फैसला हुआ लेकिन वहां भी पार्टी में एक राय नहीं है।
कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने हाई कोर्ट के रिटायर जज की अध्यक्षता में एक सदस्यीय आयोग बनाने का फैसला किया है, जो यह सुझाव देगा कि इस फैसले को कैसे लागू किया जाए। तेलंगाना की रेवंत रेड्डी सरकार ने भी यही फैसला करके मामले को टाला है। असल कारण यह बताया जा रहा है कि दोनों राज्यों में कांग्रेस के मजबूत दलित नेता इसके पक्ष में नहीं हैं। मजबूत दलित जातियों का प्रतिनिधित्व करने वाले कांग्रेस नेताओं को लग रहा है कि वर्गीकरण का फैसला लागू हुआ तो उनको नुकसान होगा। दूसरी ओर कांग्रेस यह तय नहीं कर पा रही है कि उसे मजबूत दलित जातियों की राजनीति करनी है कि दलित समाज की कमजोर जातियों की राजनीति करनी है। जैसे भाजपा ने हरियाणा में तय कर लिया कि उसे आरक्षण के लाभ से वंचित रही ज्यादा कमजोर दलित जातियों की राजनीति करनी है। कांग्रेस ऐसा फैसला नहीं कर पा रही है और इसलिए दुविधा में है।