कांग्रेस के ऊपर किसी प्रादेशिक पार्टी की तरह परिवारवाद करने का आरोप लगता है लेकिन ऐसा लगता है कि कांग्रेस इसकी कोई परवाह नहीं करती है। इसके उलट वह ज्यादा खुल कर परिवारवाद करती है। एक तरह से उसने इस आलोचना का जवाब यह निकाला है कि पहले से ज्यादा परिवारवाद किया जाए तो अपने आप यह मुद्दा खत्म हो जाएगा। इसी सोच में वह परिवारवाद के आरोप में पलटवार करती है तो भाजपा पर भी परिवारवाद करने के आरोप लगाती है और उसके बाद कुछ और नए परिवारों के सदस्यों को राजनीति में आगे बढ़ा देती है। अगर इसी तरह चलता रहा तो कांग्रेस में सांसदों, विधायकों, पूर्व सांसद और पूर्व विधायकों के परिवार के अलावा किसी और को टिकट नहीं मिलेगी।
इस बार का उपचुनाव इसकी बड़ी मिसाल है। पंजाब में चार सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं, जिनमें कांग्रेस ने दो सीटों पर नया परिवारवाद शुरू कर दिया है। गिद्दरबाह सीट पर पिछली बार राजा अमरिंदर सिंह वारिंग चुनाव जीते थे। इस बार वे लोकसभा का चुनाव जीत गए तो सीट खाली हो गई। उपचुनाव की घोषणा हुई तो कांग्रेस ने बिना कोई दिमाग लगाए राजा अमरिंदर सिंह वारिंग की पत्नी अमृता वारिंग को उम्मीदवार बना दिया। इसी तरह सुखजिंदर सिंह रंधावा का मामला है। वे गुरदासपुर से सांसद हो गए तो उनकी डेरा बाबा नानक विधानसभा सीट खाली हुई। इस सीट पर कांग्रेस ने उपचुनाव में उनकी पत्नी जतिंदर कौर को टिकट दे दिया। सोचें, जिन नेताओं को पार्टी ने लोकसभा में भेज दिया उनकी विधानसभा सीट पर भी पार्टी अपने मन से फैसला नहीं कर सकती है। इसी तरह राहुल गांधी की सीट खाली हुई है तो उस पर लड़ने के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा केरल के वायनाड गई हैं।