भारतीय राजनीति में कमाल की एक परिघटना देखने को मिल रही है। कांग्रेस के नेता पार्टी छोड़ रहे हैं। बड़े नेता भी पार्टी छोड़ कर भाजपा या उसकी सहयोगी पार्टियों में शामिल हो रहे हैं लेकिन पार्टी में टूट नहीं हो रही है। कांग्रेस के विधायक पार्टी नहीं छोड़ रहे हैं। अब आगे क्या होगा यह नहीं कहा जा सकता है लेकिन अभी तक की स्थिति यह है कि कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने की सारी कोशिशें नाकाम हो रही हैं। महाराष्ट्र से लेकर बिहार और झारखंड या मध्य प्रदेश तक हर जगह कहा जा रहा था कि कांग्रेस के विधायक बड़ी संख्या में टूट रहे हैं लेकिन कांग्रेस नहीं टूटी। उसके सारे विधायक साथ रहे।
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महाराष्ट्र में अशोक चव्हाण के छोड़ने पर चर्चा थी कि कम से कम छह विधायक कांग्रेस छोड़ रहे हैं। कांग्रेस के साथ साथ शिव सेना उद्धव ठाकरे गुट के भी कुछ और विधायकों के संपर्क में होने का दावा था और इसी दम पर राज्यसभा का एक अतिरिक्त उम्मीदवार उतारने की भी चर्चा थी। लेकिन अंत में भाजपा और उसकी महायुति ने अतिरिक्त उम्मीदवार नहीं दिया। राज्य में छह सीटें खाली हुई थीं और चार पार्टियों की ओर से छह उम्मीदवार ही उतारे गए, जिससे सब निर्विरोध जीत गए। कांग्रेस छोड़ने वाले अशोक चव्हाण भी जीते हैं।
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सबसे ज्यादा चर्चा बिहार में थी, जहां पाला बदल तक नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ सरकार बनाई थी। कहा जा रहा था कि कांग्रेस के 12 विधायक जदयू और भाजपा के संपर्क में हैं। इन चर्चाओं की वजह से ही कांग्रेस के सभी 19 विधायकों को हैदराबाद ले जाकर रखा गया था। राज्य में नीतीश सरकार के बहुमत परीक्षण से एक दिन पहले सभी विधायक पटना लाए गए। सबसे दिलचस्प स्थिति तब देखने को मिली, जब सबसे ताकतवर और अनुशासित पार्टी भाजपा के विधायक गैरहाजिर हो गए।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी के विधायक गैरहाजिर हुए। लालू प्रसाद की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के तीन विधायक पाला बदल कर सरकार की ओर चले गए। लेकिन कांग्रेस के 19 विधायक एकजुट रहे और विश्वास मत के खिलाफ वोट किया। इसका नतीजा हुआ है कि 21 अतिरिक्त वोट होने के बावजूद भाजपा और जदयू वे राज्यसभा का अतिरिक्त उम्मीदवार नहीं उतारा और कांग्रेस के अखिलेश प्रसाद सिंह सहित सभी छह उम्मीदवार निर्विरोध जीते।
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यही स्थिति झारखंड में है, जहां पिछले करीब साढ़े चार साल में कम से कम तीन बार कांग्रेस के विधायकों के टूटने की चर्चा हुई। महाराष्ट्र के लोग लगे रहे। असम के लोग लगे रहे। स्थानीय लोगों ने भी प्रयास किए लेकिन कामयाबी नहीं मिली। अभी माना जा रहा था कि हेमंत सोरेन के गिरफ्तार होने के बाद भगदड़ मचेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और बहुमत परीक्षण में सारे विधायक साथ रहे। बाद में कहा गया कि मंत्रिमंडल विस्तार के बाद कांग्रेस टूटेगी। लेकिन वह भी नहीं हुआ। कांग्रेस के कुछ विधायक नाराज जरूर हुए लेकिन पार्टी आलाकमान से मिलने के बाद सब अपने अपने क्षेत्र लौट गए। मध्य प्रदेश में कमलनाथ और के टूटने की खबर थी और साथ ही 15 से 25 विधायकों के टूटने की खबर थी। लेकिन न कमलनाथ पार्टी छोड़ कर गए और न कोई विधायक टूटा।