congress: दो राज्यों के विधानसभा चुनावों के जो आंकड़े आ रहे हैं उनसे कांग्रेस कमजोर कड़ी साबित हो रही है। यह भी साबित हो रहा है कि कांग्रेस के लिए भाजपा से सीधा मुकाबला करना बहुत मुश्किल है क्योंकि जहां भी भाजपा से उसका मुकाबला होता है वहां उसकी स्ट्राइक रेट बहुत खराब होती है।
कांग्रेस के मुकाबले विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की दूसरी पार्टियों का स्ट्राइक रेट भाजपा के मुकाबले बेहतर होता है। तभी महाराष्ट्र और झारखंड या उससे पहले हरियाणा और जम्मू कश्मीर के चुनाव नतीजों का भी बड़ा सबक कांग्रेस के लिए यह है कि वह भाजपा से लड़ने की रणनीति पर काम करे।
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75 में से कांग्रेस 10 सीट जीत पाई
अगर महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव की बात करें तो वहां कांग्रेस 102 सीटों पर लड़ी थी, जिनमें से 75 सीटों पर उसका सीधा मुकाबला भाजपा के साथ था। इन 75 सीटों में से कांग्रेस सिर्फ 10 सीट जीत पाई।
यानी सिर्फ साढ़े सात फीसदी का स्ट्राइक रेट रहा। वह 65 सीटों पर हारी, जिनमें से सात सीटें तो ऐसी हैं, जिन पर कांग्रेस का उम्मीदवार दूसरे स्थान पर भी नहीं रहा। सोचें, एकदम आमने सामने की लड़ाई में भी सात सीटों पर लोगों ने किसी और पार्टी को या किसी और उम्मीदवार को कांग्रेस से बेहतर माना!
इसके मुकाबला 27 सीटों पर वह भाजपा की सहयोगी पार्टियों के खिलाफ लड़ी और उसमें से भी 10 पर जीत हासिल की। यानी करीब 40 फीसदी का स्ट्राइक रेट रहा।
इसका मतलब है कि भाजपा ने जिस नैरेटिव के जरिए अपने को कांग्रेस से बेहतर पार्टी के तौर पर स्थापित किया है, कांग्रेस को उस नैरेटिव की काट खोजनी पड़ेगी, तभी वह भाजपा से लड़ पाएगी।
झारखंड में जेएमएम-कांग्रेस का गठबंधन जीता(congress)
झारखंड में जेएमएम और कांग्रेस का गठबंधन जीत गया लेकिन वहां भी कमजोर कड़ी कांग्रेस ही थी। कांग्रेस के नेता कह सकते हैं कि पिछली बार की तरह इस बार भी पार्टी 16 सीटें जीत गई है लेकिन वह तर्क नहीं है।
कांग्रेस 30 सीटों पर लड़ी थी, जिसमें से 16 पर जीती। यानी उसने 50 फीसदी से थोड़ी ज्यादा सीटें जीतीं। परंतु झारखंड मुक्ति मोर्चा 41 सीटों पर लड़ी थी और उसने 34 सीटें जीतीं। यानी उसने 80 फीसदी सीटें जीतीं।
जिस तरह से महाराष्ट्र में भाजपा की स्ट्राइक रेट रही वैसी स्ट्राइक रेट जेएमएम की रही। राजद ने भी छह सीटों पर चुनाव लड़ कर चार सीटें जीतीं यानी उसकी भी स्ट्राइक रेट 66 फीसदी रही।
इसका मतलब है कि कांग्रेस को अपनी रणनीति और एजेंडे में सुधार करना चाहिए और साथ ही राज्यों में ज्यादा सीटों पर लड़ने की जिद छोड़नी चाहिए।