यह बड़ी हैरानी की बात है कि कांग्रेस छोड़ने वाले लगभग सभी नेता किसी न किसी रूप में इस बात का जिक्र कर रहे हैं कि कांग्रेस राम मंदिर का विरोध करती थी और उसने अपने नेताओं को राम मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम में जाने से मना किया था। कांग्रेस छोड़ते हुए सभी नेता कह रहे हैं कि वे भगवान राम का अपमान बरदाश्त नहीं कर सकते इसलिए पार्टी छोड़ रहे हैं। सबसे ताजा मामला कांग्रेस की नेता राधिका खेड़ा का है। वैसे वे पार्टी की कोई बड़ी पदाधिकारी या नेता नहीं थीं लेकिन प्रवक्ता के नाते वे मीडिया और सोशल मीडिया में काफी सक्रिय थीं। उन्होंने कांग्रेस छोड़ते हुए कई और बातों के साथ कहा कि कांग्रेस भगवान राम की अनदेखी कर रही थी इसलिए वे कांग्रेस में नहीं रह सकती थीं। यही बात कांग्रेस के प्रवक्ता रहे गौरव वल्लभ ने कही थी। प्रमोद कृष्णम भी पार्टी से निकाले जाने के बाद ऐसी ही बातें कर रहे हैं। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के नेताओं को छोड़ दें तो मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र आदि के जितने नेताओं ने पार्टी छोड़ी है सबने यही बात कही है।
अब सवाल है कि क्या सचमुच कांग्रेस ने अपने नेताओं को अयोध्या जाने से मना किया था? हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। कांग्रेस के जितने नेता राम मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम में गए या उसके बाद रामलला के दर्शन किए गए, कांग्रेस में उनकी पूछ बढ़ी है। कांग्रेस ने ऐसे नेताओं को पूरी तरजीह दी है। मिसाल के तौर पर हिमाचल प्रदेश सरकार के मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने कहा था कि उनके पिता की इच्छा थी राम मंदिर के उद्घाटन में जाने की इसलिए वे जरूर जाएंगे। वे गए भी और रामलला के दर्शन किए। इसके बाद वे मंत्री भी बने रहे और पार्टी ने उनको मंडी सीट से लोकसभा की टिकट भी दी है। इसी तरह कांग्रेस प्रवक्ता और उत्तर प्रदेश के नेता अखिलेश प्रताप सिंह भी दर्शन करने गए पार्टी ने उनको देवरिया सीट से लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाया है। ऐसे ही अजय राय पार्टी के कई पदाधिकारियों के साथ दर्शन करने गए। वे उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष हैं और कांग्रेस ने उनको सबसे हाई प्रोफाइल वाराणसी सीट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ उम्मीदवार बनाया है। इस बात की कोई मिसाल नहीं है कि किसी को अयोध्या जाने के लिए कांग्रेस में कोई सजा दी गई हो।