कांग्रेस पार्टी ने छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव से पांच महीने पहले टीएस सिंहदेव को उप मुख्यमंत्री नियुक्त किया है। संविधान में उप मुख्यमंत्री किस्म का कोई पद नहीं होता है। हां, राजनीतिक रूप से यह माना जाता है कि जो उप मुख्यमंत्री है वह सरकार में नंबर दो है। लेकिन सवाल है टीएस सिंहदेव के बारे में पहले से यह मैसेज था कि वे नंबर दो हैं फिर उप मुख्यमंत्री बनाने की क्या मजबूरी हो गई और इससे क्या हासिल हो जाएगा? चुनाव में क्या होगा यह अभी से नहीं कहा जा सकता है। कांग्रेस पार्टी बहुत भरोसे में है कि वह छत्तीसगढ़ में जीतने जा रही है। लेकिन चुनाव से पांच महीने पहले कांग्रेस ने पहला बलंडर किया है। उप मुख्यमंत्री की नियुक्ति बहुत बड़ी गलती है, जिसका खामियाजा भुगतना होगा।
सबसे पहले तो कांग्रेस ने पता नहीं क्यों इस बात का संज्ञान नहीं लिया कि चुनाव से पहले उठाए जाने वाले इस तरह के डेस्पेरेट कदम हमेशा नुकसानदेह होते हैं। कई राज्यों में, कई पार्टियों के ऐसे प्रयोग विफल हुए हैं। सिंहदेव को उप मुख्यमंत्री नियुक्त करने से कांग्रेस के साथ न तो कोई नया वोट जुड़ने वाला है और न टूटते हुए वोट को उनके नाम से रोका जा सकेगा। उलटे इस कदम से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की ऑथोरिटी को चुनौती मिली है। अब तक वे प्रदेश के सबसे बड़े नेता और सरकार के सुप्रीमो की तरह काम कर रहे थे। उन्होंने कोई दो साल पहले सत्ता संघर्ष में टीएस सिंहदेव को निर्णायक मात दी थी। उससे उनका कद बढ़ा था। उन्होंने राज्य की पिछड़ी, दलित और आदिवासी समूहों के बीच उनके एक नेता के तौर पर स्थापित किया है। लेकिन अब उनके मजबूत, निर्णायक और सर्वोच्च नेता की छवि को नुकसान होगा।
अंततः कांग्रेस को भी इसका नुकसान होगा। इस फैसले से अगले पांच महीने सरकार का कामकाज प्रभावित होगा। फैसलों में खींचतान होगी और टिकट बंटवारे के समय नया संघर्ष होगा। सो, सिंहदेव को उप मुख्यमंत्री बनाने की बजाय कांग्रेस उनको पार्टी छोड़ने देती तो उसमें ज्यादा फायदा था। सत्ता विरोधी वोट बंटता, जिसका नुकसान भाजपा को हो सकता थी। वैसे भी वे भाजपा के वोट को ही नुकसान पहुंचाते। यह भी एक तथ्य है कि उनकी पारिवारिक कंपनियों की अदानी समूह के साथ साझेदारी है।