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नायडू और स्टालिन की चिंता निराधार

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आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने एक अलग ही विमर्श शुरू कर दिया है। दुनिया के सबसे युवा देश भारत के दो राज्यों के मुख्यमंत्री इस बात को लेकर चिंतित हैं कि दक्षिण भारत के राज्यों में जन्मदर कम हो रही है और बुजुर्ग आबादी बढ़ रही है। इसलिए दोनों मुख्यमंत्रियों ने लोगों से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील की है। चंद्रबाबू नायडू ने तो यहां तक कहा है कि आगे से सिर्फ उन्हीं लोगों को चुनाव लड़ने की इजाजत मिलेगी, जिनके दो बच्चे होंगे। वे इसके लिए कानून लाने की बात कर रहे हैं। यह सही है कि उत्तर और मध्य भारत के मुकाबले वरिष्ठ नागरिकों या बुजुर्गों की संख्या दक्षिण में ज्यादा है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि वहां कामकाजी लोगों की संख्या घट गई है या जनसंख्या का किसी तरह का असंतुलन हो गया है। उत्तर और मध्य भारत के राज्यों के मुताबिक स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर होने और बेहतर जीवन शैली की वजह से दक्षिण में उम्रदराज लोगों की संख्या ज्यादा है।

हां, यह जरूर है कि दक्षिण भारत के राज्यों में जन्मदर राष्ट्रीय औसत से कम है। राष्ट्रीय स्तर पर जन्मदर 2.2 फीसदी है, जो रिप्लेसमेंट रेट के लगभग बराबर है, जबकि दक्षिण के राज्यों का औसत 1.6 फीसदी है। इसका मतलब है कि चीन की तरह दक्षिण भारत में सिंगल चाइल्ड वाली स्थिति नहीं है। दूसरे, एमके स्टालिन ने परिसीमन के बाद राजनीतिक ताकत कम होने की जो आशंका जताई है वह भी बहुत ठोस नहीं है। वे यह मान कर चल रहे हैं कि सिर्फ जनसंख्या के आधार पर परिसीमन होगा। लेकिन ऐसा नहीं है। अगर सिर्फ जनसंख्या का पैमाना होगा तो अकेले उत्तर प्रदेश में एक सौ से ज्यादा सांसद हो जाएंगे। इसको युक्तिसंगत बना कर ही लोकसभा सीटों की संख्या में कमीबेशी की जाएगी। किसी राज्य का राजनीतिक वजन कम करना परिसीमन का मकसद नहीं हो सकता है। इसलिए परिसीमन का भय दिखा कर समय का पहिया उलटा घुमाने और लोगों को आबादी बढ़ाने के लिए प्रेरित करना ठीक नहीं है। इस तरह का कोई भी कदम नुकसानदेह ही साबित होगा।

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