भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा चुनाव में जो झटका लगा था वह उससे पूरी तरह से नहीं फिर भी काफी हद तक उबर गई है। लोकसभा के साथ और उसके बाद हुए राज्यों के चुनावों ने भाजपा को वह झटका झेलने की ताकत दी। तभी अब वह आगे की राजनीति के लिए नई रणनीति बनाने में जुटी है। जानकार सूत्रों का कहना है कि भाजपा को राज्यों के चुनावों की उतनी चिंता नहीं है, जितनी लोकसभा चुनाव की है। उसमें भी अगर 2029 में लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते तो ज्यादा चिंता करने की जरुरत नहीं थी। परंतु ऐसा लग रहा है कि सब कुछ ठीक रहा तो एक साथ चुनाव 2034 में हो पाएगा। तभी भाजपा 2029 के चुनाव की रणनीति बनाने में जुटी है। ध्यान रहे आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू कह चुके हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगला चुनाव जीतने की योजना बना ली है और उस पर काम शुरू हो गया है। यह भी लगभग तय है कि मोदी 75 साल पूरे करने पर रिटायर नहीं होने वाले हैं। मिन्हाज मर्चेंट जैसे दक्षिणपंथी स्तंभकारों ने मोदी के 83 साल तक शासन में रहने का अनुमान जताना शुरू कर दिया है।
बहरहाल, 2029 के लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा की एक मुख्य रणनीति पुराने सहयोगी पार्टियों को साथ लाने की बताई जा रही है। कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों के एक गठबंधन बना कर चुनाव लड़ने से भाजपा को 2024 के चुनाव में नुकसान हुआ था। भाजपा का नुकसान खासकर उन राज्यों में हुआ, जहां उसकी पुरानी सहयोगी पार्टियां अलग लड़ीं। जहां उसने पुरानी सहयोगी पार्टियों से तालमेल कर लिया, जैसे बिहार, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश आदि तो वहां उसको फायदा हो गया। भाजपा के नेता मान रहे हैं कि अगर तमिलनाडु में अन्ना डीएमके या पंजाब में अकाली दल का साथ होता तो विपक्षी गठबंधन को इतना फायदा नहीं हो पाता।
तभी जानकार सूत्रों का कहना है कि भाजपा नए साल में अपनी पुरानी सहयोगी पार्टियों के साथ तालमेल की पहल करेगी। यह भी कहा जा रहा है कि एक स्तर पर इसकी पहल हो चुकी है और अब उसे मजबूत करना है। जैसे तमिलनाडु में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के अन्नामलाई ने अपनी जिद छोड़ कर कह दिया है कि भाजपा अगला चुनाव अन्ना डीएमके से तालमेल करके लड़ने को तैयार है। हालांकि अन्ना डीएमके अभी इसके लिए तैयार नहीं है लेकिन एक बार सिद्धांत रूप में सहमति बन जाने पर आगे पहल करने में दिक्कत नहीं होगी। इसी तरह पंजाब में अकाली दल को फिर से साथ लाने की पहल हो रही है। कैप्टन अमरिंदर सिंह और सुनील जाखड़ से भाजपा को फायदा नहीं हुआ है और पार्टी को लग रहा है कि रवनीत सिंह बिट्टू भी बहुत उपयोगी नहीं साबित होंगे। अगर अकाली दल से तालमेल हो जाए तो कांग्रेस और आप के बीच की लड़ाई का फायदा मिल सकता है। हरियाणा में इस बार तो भाजपा अकेले विधानसभा का चुनाव जीत गई लेकिन लोकसभा को लेकर पार्टी बहुत भरोसे में नहीं है। तभी अगर सब कुछ ठीक रहा तो अगले कुछ दिन में इंडियन नेशनल लोकदल के साथ भाजपा के तालमेल की पहल हो सकती है। गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रदेश की पांच सीटें हार गई थी। अगले चुनाव में वह इस किस्म का जोखिम नहीं ले सकती है। हालांकि ओमप्रकाश चौटाला के निधन के बाद चौटाला परिवार में एकता बनाने की पहल हुई है और परिवार के सदस्यों को लग रहा है कि अगर इनेलो व जजपा साथ आ जाते हैं तो जाट राजनीति में पुराना वर्चस्व बन सकता है।