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स्मृति की जगह कंगना आ गईं

भारतीय जनता पार्टी में पता नहीं रणनीति के तहत होता है या स्वाभाविक रूप से होता है कि उसके कट्टरपंथी नेताओं के उदार होने और फिर नए कट्टरपंथी नेताओं के उभरने का चक्र चलता रहता है। जैसे अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी एक जैसे नेता थे। इनमें से वाजपेयी उदार और आडवाणी कट्टरपंथी हो गए। फिर जब नरेंद्र मोदी आए तो मोदी कट्टरपंथी हो गए और आडवाणी उदार हो गए। मोदी और अमित शाह में आगे हो सकता है कि मोदी उदार और शाह कट्टरपंथी हो जाएं और फिर शाह उदार और योगी आदित्यनाथ कट्टरपंथी नेता की जगह लें। यह क्रम महिला नेताओं में भी चलता है। सुषमा स्वराज उदार चेहरा थीं तो उमा भारती कट्टरपंथी थीं। फिर उमा भारती उदार हो गईं या राजनीति से बाहर हो गईं और उनकी जगह स्मृति ईरानी ने ली। अब लोकसभा का चुनाव हारने के बाद स्मृति ईरानी उदार हो गई हैं और उनकी जगह कंगना रनौत ने ले ली है।

लोकसभा चुनाव हारने के बाद स्मृति ईरानी का पहली बार एक लंबा इंटरव्यू आया, जिसमें वे बहुत वस्तुनिष्ठ तरीके से राहुल गांधी की राजनीति का विश्लेषण कर रही हैं। वे जो कह रही हैं उसे तर्क और तथ्यों की कसौटी पर कसने की जरुरत है लेकिन पहली बार दिखा कि उनकी बातों में राहुल गांधी के लिए नफरत नहीं थी। लेकिन उनकी जगह ले रहीं कंगना रनौत ने हाल में दिए अपनी फिल्म के प्रमोशन के लिए कई इंटरव्यू दिए तो सिर्फ नफरत का प्रदर्शन किया है। उन्होंने पहले किसानों के प्रति नफरत जाहिर की और कहा कि किसान आंदोलन में बलात्कार हो रहे थे, लाशें लटकी हुई थीं और अगर सरकार मजबूत नहीं होती तो बांग्लादेश बन जाता। इसके बाद उन्होंने इंदिरा गांधी के प्रति नफरत दिखाते हुए कहा कि जब बांग्लादेश का विभाजन हुआ तब इंदिरा गांधी देश भी बांटना चाहती थीं। उन्होंने राहुल गांधी के प्रति अपनी नफरत जाहिर करते हुए एक न्यूज चैनल के एंकर से पूछ दिया कि आखिर राहुल ने नेता विपक्ष बनने लायक किया क्या है? जब एंकर ने 99 सीटों का हवाला दिया तो कंगना एंकर से ही नाराज हो गईं। उन्होंने जाति गणना पर भी अपनी राय दी है। पहले इस तरह की बातें स्मृति ईरानी कहा करती थीं। अब ऐसा कहने की जिम्मेदारी कंगना रनौत की है।

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