लोकसभा चुनाव, 2024 के नतीजों के बाद बिहार में एक नई राजनीतिक संस्कृति की शुरुआत होती दिख रही है। पहली बार ऐसा हो रहा है कि जीते हुए सांसदों ने या पार्टियों के नेताओं ने खास जाति या समुदाय को निशाना बना कर कहना शुरू कर दिया है कि उन्होंने उनको वोट नहीं दिया है इसलिए वे उनका काम नहीं करेंगे या उनको अमुक जाति या समुदाय का वोट नहीं चाहिए। सांसदों ने खुल कर यह बात कही है और दूसरे नेताओं ने इसका समर्थन किया है। शुरुआत जनता दल यू के सांसद देवेश चंद्र ठाकुर ने की, जिसके बाद भाजपा के नेता व केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने भी बयान दिया और भाजपा के पूर्व सांसद हरि मांझी ने इसका समर्थन किया।
बिहार की सीतामढ़ी सीट से चुनाव जीते देवेंश चंद्र ठाकुर ने कहा कि यादवों और मुसलमानों ने उनको वोट नहीं दिया है इसलिए वे उनका काम नहीं करेंगे। सांसद ने कहा कि मुस्लिम और यादव उनके यहां आएंगे तो उनको बैठाएंगे, चाय-पानी पिला देंगे लेकिन काम नहीं करेंगे। बताते हैं कि एक मुस्लिम ने वोट नहीं देने का कारण यह बताया कि जदयू के चुनाव चिन्ह यानी तीर का बटन दबाने से पहले भी उसमें नरेंद्र मोदी का चेहरा दिखता है इसलिए उसने वोट नहीं दिया। इस पर देवेश ठाकुर ने कहा कि उनको भी उनके चेहरे में लालू प्रसाद का चेहरा दिखता है इसलिए वे काम नहीं करेंगे। ध्यान रहे देवेश ठाकुर खूब पढ़े लिखे इंजीनियर हैं और मुंबई में रह कर कामकाज करने के बाद बिहार आए। वे करीब 24 साल से विधान पार्षद थे और सांसद बनने से पहले विधान परिषद के सभापति थे।
इस बयान की राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा हुई। हालांकि उनकी बात को संदर्भ से अलग करके देखा गया। उनका कहना था कि मुस्लिम और यादव ने उनको वोट नहीं दिया है इसलिए वे उनका कोई व्यक्तिगत काम नहीं करेंगे। लेकिन सामुदायिक कामकाज में भेदभाव नहीं करेंगे। उनका कहना है कि बहुत से लोग निजी काम के लिए आते हैं, अगर वे ऐसे व्यक्ति का निजी काम करेंगे, जिसने उनका विरोध किया है तो यह बात समर्थकों को बुरी लगेगी। इसलिए वे विरोधियों का निजी काम नहीं करेंगे। बाद में केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने एक बयान देकर कहा कि मुसलमानों का वोट उनको भी नहीं चाहिए। हालांकि उन्होंने यह नहीं कहा कि वे मुस्लिमों का काम नहीं करेंगे। जब इन दोनों बयानों पर चर्चा तेज हुई तो भाजपा के नेता और गया के पूर्व सांसद हरि मांझी ने कहा कि देवेश चंद्र ठाकुर या गिरिराज सिंह के बयान में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है। उन्होंने इस विचार का समर्थन किया कि चुनाव में जो विरोध करे उसका काम नहीं करना चाहिए। बहरहाल, निजी हो या सामुदायिक किसी भी तरह के काम के बहाने यह नई राजनीति शुरू हुई है। इससे राजनीतिक विभाजन तो और स्पष्ट होगा कि सामाजिक विभाजन भी बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा।