चुनाव रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर अब बिहार में राजनीति कर रहे हैं। वैसे ही जैसे भारत के सबसे शुरुआती चुनावी विश्लेषक रहे योगेंद्र यादव ने हरियाणा में किया। दोनों में एक समानता यह भी है कि योगेंद्र यादव राजनीति में उतरे तो उन्होंने स्वराज अभियान से शुरुआत की और प्रशांत किशोर सुराज अभियान चला रहे हैं। बहरहाल, चुनाव रणनीतिकार से नेता बनते ही प्रशांत किशोर को देखने का नजरिया भी बदल जाता है। कुछ दिन पहले तक वे अपनी हर सभा में कहते थे कि अगर नीतीश कुमार महागठबंधन में यानी कांग्रेस और राजद के साथ मिल कर लड़े तो लोकसभा में उनको पांच सीटें नहीं मिलेंगी। अब उन्होंने कहना शुरू किया है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ होने के बावजूद नीतीश को 20 सीट से ज्यादा नहीं मिल पाएगी।
ध्यान रहे इससे पहले 2020 में जब जनता दल यू और भाजपा एक साथ लड़े थे तब भाजपा को 75 और जदयू को 43 सीटें आई थीं। भाजपा 54 से बढ़ कर 75 पहुंची थी, जबकि नीतीश की पार्टी 71 से घट कर 43 पर आ गई थी। लेकिन इसका कारण चिराग पासवान थे, जिन्होंने एनडीए में रहते हुए नीतीश के खिलाफ बगावत कर दी। उन्होंने उन तमाम सीटों पर उम्मीदवार उतारे, जिन पर नीतीश चुनाव लड़ रहे थे। वे अपने को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान बता रहे थे और नीतीश के खिलाफ लड़ रहे थे। भाजपा के कई दिग्गज नेता उनकी पार्टी की टिकट से चुनाव लड़े। इसी का नतीजा था कि नीतीश की पार्टी 43 सीटों पर सिमट गई। अब प्रशांत किशोर 20 सीट से ज्यादा नहीं मिलने की भविष्यवाणी कर रहे हैं तो लग रहा है कि वे चिराग पासवान वाली राजनीति करेंगे। उन्होंने ऐलान किया है कि वे 2025 का विधानसभा चुनाव लड़ेंगे और अति पिछड़ी जाति के 75 उम्मीदवार उतारेंगे। ध्यान रहे अति पिछड़ी जाति को नीतीश का कोर वोट माना जाता है। उसमें सेंध लगाने की तैयारी पीके कर रहे हैं।