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नीतीश को निपटाने में कौन लगा है?

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बिहार में नीतीश कुमार के राजकाज के सिस्टम में एक या एक से अधिक लोग ऐसे हैं, जो किसी खास मकसद से नीतीश से ऐसे फैसले करा रहे हैं, जिसका बड़ा राजनीतिक नुकसान है। ये कौन लोग हैं, उनका मकसद क्या है और उनकी प्रतिबद्धता कहां है, यह पता लगाना जनता दल यू के नेताओं का काम है लेकिन इतना साफ दिख रहा है कि एक के बाद एक विवादित फैसलों से सरकार मुख्य विपक्षी पार्टी राजद और बिहार की राजनीति में तेजी से उभर रहे तीसरे खिलाड़ी प्रशांत किशोर को अवसर दे रही है। जमीन सर्वेक्षण और स्मार्ट मीटर लगाना ये दो फैसले ऐसे हैं, जिनसे नीतीश का वोट बैंक भी खराब हो रहा है और आम लोगों में भी सरकार के प्रति नाराजगी बढ़ रही है।

किसी को समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर चुनाव से पहले सरकार ने भूमि सर्वेक्षण शुरू कराने का फैसला क्यों किया? यह बहुत विवादित काम है, जिससे हर गांव और हर घर में विवाद शुरू हो गया है। लोगों की समस्याएं अलग बढ़ी हैं। जो लोग बिहार से बाहर हैं उनको गांव लौटने की मजबूरी हो रही है और अगर नहीं लौटते हैं तो यह खतरा है कि परिवार के जो लोग गांव में हैं वे जमीन अपने नाम से करा सकते हैं। बिहार के 45 हजार गांवों की सारी जमीन का डिजिटल दस्तावेज उपलब्ध नहीं है और सर्वेक्षण में जमीन अपने नाम कराने के लिए जो 12 दस्तावेज मांगे जा रहे हैं उसकी भी उपलब्धता नहीं है। दस्तावेज लेने के लिए लोग कार्यालयों के चक्कर लगा रहे हैं और बेहिसाब रिश्वतखोरी शुरू हो गई है। सरकार ने हवाईजहाज में जियो टैगिंग उपकरण लगवा कर जमीन का नक्शा बनवाया है। उस नक्शे के हिसाब से किसी की जमीन कम तो किसी की ज्यादा हो रही है। इससे पड़ोसियों के झगड़े बढ़ रहे हैं। परिवारों में झगड़े इसलिए बढ़ रहे हैं कि दादा के जमाने से वंशावली बन रही है और दादा की बहन के बेटे, पोते जमीन पर दावा करने पहुंच रहे हैं। बिहार के लोगों के पास जो भी कामकाज हैं उसे ठप्प करके वे भूमि सर्वेक्षण में लगे हैं। सरकार के अंदर भी इस पर विवाद है और सत्तारूढ़ गठबंधन के नेता मान रहे हैं कि इसे नहीं रोका गया तो सरकार डूबेगी।

इसी तरह बिहार सरकार ने स्मार्ट प्री पेड मीटर लगाने का काम जोरदार तरीके से शुरू किया है। यह काम भी चुनाव से ठीक पहले हो रहा है। बिहार में स्मार्ट मीटर लगाने की रफ्तार दिल्ली,  मुंबई, हैदराबाद, चेन्नई से भी तेज है। पूरे देश में एक करोड़ 16 लाख स्मार्ट मीटर लगे हैं, जिनमें से 30 लाख अकेले बिहार में लगे हैं। लोग इसके खिलाफ बुरी तरह से आंदोलित हैं। उनका कहना है कि स्मार्ट मीटर में उनका बिल कई गुना बढ़ गया है और प्री पेड होने की वजह से कभी भी उसका रिचार्ज खत्म हो जा रहा है और बिजली कट जा रही है। बिहार में ज्यादातर गांवों में बूढ़े बचे हैं। उनके बच्चे बाहर पढ़ने या कमाने गए हैं। बूढ़े और कम पढ़े लिखे लोगों के लिए मोबाइल ऐप चलाना और प्री पेड मीटर रिचार्ज करना मुश्किल हो रहा है। सो, इसके खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया है। लोग मीटर निकाल कर फेंकने लगे है और मीटर सप्लाई करने वाली निजी कंपनी के कर्मचारियों का घेराव कर रहे हैं। बिहार के हर गांव, कस्बे और शहर में इसके खिलाफ आंदोलन छिड़ा है। अगर सरकार पोस्ट पेड स्मार्ट मीटर लगवाती तो इतना विवाद नहीं होता। लेकिन अब इसे संभालना भी सरकार के लिए मुश्किल हो रहा है।

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