बिहार में लोकसभा के साथ ही विधानसभा का भी चुनाव हो जाए यह आइडिया सिर्फ नीतीश कुमार के दिमाग में घूम रहा है। उनकी पार्टी के नेता नहीं चाहते हैं कि समय से दो साल पहले विधानसभा का चुनाव कराया जाए। उनकी सरकार में शामिल राजद के नेता भी इसके लिए तैयार नहीं हैं और संभावित सहयोगी यानी भारतीय जनता पार्टी ने तो सिरे से इस प्रस्ताव को खारिज किया हुआ है। भाजपा नहीं चाहती है कि किसी भी बड़े राज्य में, जहां भाजपा का आधार मजबूत है वहं लोकसभा के साथ विधानसभा का चुनाव हो। भाजपा को हमेशा इस बात की चिंता रहती है कि विधानसभा के जातीय समीकरण का असर लोकसभा की वोटिंग पर भी पड़ सकता है, जिसका नुकसान भाजपा को हो सकता है। इसलिए बिहार जैसे बड़े राज्य में भाजपा लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव को नहीं जोड़ना चाहती है।
जानकार सूत्रों का कहना है कि नीतीश कुमार ने इस बारे में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद से भी बात की थी। लेकिन लालू प्रसाद ने भी एक साथ चुनाव कराने से मना कर दिया। बताया जा रहा है कि राजद के राजी नहीं होने की स्थिति में नीतीश कुमार ने अकेले चुनाव लड़ने की संभावना पर भी विचार किया था। जानकार सूत्रों के मुताबिक राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह के अध्यक्ष पद से हटने से पहले ही उनसे एक बार बात की थी और कहा था कि क्यों नहीं जनता दल यू अकेले चुनाव लड़ जाए। यह भी बताया जा रहा है कि नीतीश के कैलुकेशन में छोटे छोटे कई क्षत्रप शामिल हैं। उनको लग रहा है कि पशुपति पारस, उपेंद्र कुशवाहा आदि को साथ लेकर वे अकेले चुनाव लड़ सकते हैं। उनकी पार्टी के एक जानकार नेता ने बताया कि वे कांग्रेस से बात करके उसको राजद से अलग करने और जदयू के साथ मिल कर लड़ने के लिए राजी करने की कोशिश भी करेंगे। हालांकि कांग्रेस भी इस आइडिया के पक्ष में नहीं है।
असल में नीतीश कुमार इस बात के लिए बेचैन हैं कि किसी तरह से उनके विधायकों की संख्या में इजाफा हो। उनको पता है कि 45 विधायक लेकर वे बहुत दिन तक बिहार की राजनीति को अपनी शर्तों पर नहीं चला पाएंगे। उनको यह भी लग रहा है कि कुछ विधायक लोकसभा चुनाव की टिकट के लालच में पार्टी और विधायकी छोड़ सकते हैं। उनकी सीटों पर उपचुनाव हुआ तो जदयू की जीत की संभावना अच्छी नहीं रहेगी। दूसरी ओर उनके विधायकों को चिंता है कि अगर साथ में चुनाव हुआ तो उनको अपनी सीट गंवानी पड़ सकती है क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में जदयू और राजद में आमने सामने का मुकाबला हुआ था। अगर दोनों साथ लड़ते हैं तो सीटों का अदला-बदली होगी। अगर राजद और भाजपा की बात करें तो दोनों के नेता नीतीश कुमार को लेकर आशंकित हैं। उनको पता है कि नीतीश कुमार विधानसभा का चुनाव चाहे राजद के साथ लड़ें या भाजपा के साथ लड़ें, उनकी सीटें बढ़ेंगी। और एक बार सीटें बढ़ गईं तो फिर वे किसी के काबू में नहीं रहेंगे। उनकी सीटें बढ़ेंगी तो इसका मतलब होगा कि विधानसभा और त्रिशंकु होगी और तब उनका महत्व और बढ़ेगा। इसलिए दोनों बड़ी पार्टियां नहीं चाहती हैं कि दो साल पहले विधानसभा का चुनाव करा कर नीतीश के हाथ में राजनीति का कंट्रोल दिया जाए।