बिहार में राजनीति दिलचस्प होती जा रही है। चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने अपने जन सुराज अभियान को राजनीतिक दल में बदलने का ऐलान कर दिया है। कुछ समय पहले पटना में एक बड़ा कार्यक्रम करके उन्होंने इसकी घोषणा की। उसके बाद से राज्य में हलचल मची है। प्रशांत किशोर यानी पीके अगला विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। करीब दो साल पहले दो अक्टूबर 2022 को जब पीके ने बिहार में पदयात्रा शुरू की तो उनके साथ जो लोग जुड़ रहे थे उनको देख कर कहा जा रहा था कि पीके की मुहिम भाजपा को नुकसान पहुंचाएगी। उनके साथ अगड़ी जातियों के युवा और सरकारी नौकरियों से रिटायर हुए लोग जुड़ रहे थे। पीके जो भाषण देते हैं उससे लगता है कि वे लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव की पार्टी को नुकसान पहुंचाएंगे क्योंकि उनको ज्यादा अटैक इन दोनों पर ही होता है। उन्होंने अत्यंत पिछड़ी जातियों के 70 उम्मीदवार उतारने की बात कही तो लगा कि वे नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यू को नुकसान पहुंचाएंगे क्योंकि जदयू का आधार अति पिछड़ा जातियों में ही है।
सो, कुल मिला कर पीके की राजनीति भाजपा, राजद और जदयू तीनों के लिए नुकसान पहुंचाने वाली दिख रही है। लेकिन सबसे पहले बेचैनी जाहिर की है कि राष्ट्रीय जनता दल ने। लालू प्रसाद की पार्टी राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने एक सार्वजनिक चिट्टी लिखी है, जिसमें उन्होंने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को जन सुराज से नहीं जुड़ने को कहा है। उन्होंने कार्यकर्ताओं और नेताओं को समझाया है कि जन सुराज एक राजनीतिक दल है और उसके साथ नहीं जुड़ना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि पीके भाजपा को मजबूत करने की राजनीति कर रहे हैं साथ ही उन्होंने अपने लोगों को कार्रवाई करने की चेतावनी भी दी। इसका जवाब देते हुए जन सुराज की टीम ने कहा कि भय और अपराध की राजनीति राजद की फितरत है और दावा किया कि जन सुराज से बिहार की सबसे मजबूत पार्टी घबरा गई है। असल में जब से पीके ने पार्टी बना कर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है सभी पार्टियों के नेता और कार्यकर्ता उनके साथ जुड़ने लगे हैं। राजद को लग रहा है कि अगला चुनाव उसके लिए बहुत अच्छा अवसर है। इसलिए उसकी चिंता ज्यादा बढ़ी है।