बिहार में भारतीय जनता पार्टी के नेता इन दिनों इस बात का हल्ला मचाए हुए हैं कि उन्होंने नीतीश कुमार और उनकी पार्टी पर बड़े अहसान किए। भाजपा ने नीतीश को कई बार मुख्यमंत्री बनवाया। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने कहा कि भाजपा कार्यकर्ताओं ने कंधे पर उठा कर नीतीश को मुख्यमंत्री बनवाया। इसके बाद पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह लखीसराय में रैली करने गए तो उन्होंने कहा कि नीतीश को भाजपा का लिहाज करना चाहिए क्योंकि भाजपा के कारण वे मुख्यमंत्री बने। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भाजपा के साथ गठबंधन करके नीतीश की पार्टी लड़ी थी और तभी राज्य की सत्ता मिली थी। लेकिन उसी गठबंधन की वजह से तो भाजपा को भी सत्ता मिली थी।
अगर वस्तुनिष्ठ तरीके से देखें तो नीतीश की पुरानी समता पार्टी और बाद में बनी जनता दल यू ने भाजपा को ज्यादा फायदा पहुंचाया है। यह भी एक तथ्य ध्यान में रखने की जरूरत है कि नीतीश कुमार भाजपा के बिना भी मुख्यमंत्री बने हैं या रहे हैं। नीतीश ने 2013 में भाजपा से गठबंधन तोड़ दिया था। उसके बाद वे मई 2014 तक अकेले अपनी पार्टी के दम पर मुख्यमंत्री रहे और फिर जीतन राम मांझी को एक साल के लिए मुख्यमंत्री बनाया। नीतीश 2015 में राजद के साथ चुनाव लड़ कर जीते और मुख्यमंत्री बने। अभी भी वे राजद और कांग्रेस के गठबंधन में मुख्यमंत्री हैं। दूसरी ओर उनके बिना भाजपा सिर्फ एक चुनाव लड़ी 2015 में और बुरी तरह से हारी। इसका मतलब है कि नीतीश भाजपा के बिना भी मुख्यमंत्री बनते रहे हैं लेकिन नीतीश के बिना भाजपा नहीं जीत पाई है।
जहां तक नीतीश के मुख्यमंत्री बनने का सवाल है तो वे सन 2000 में पहली बार सात दिन के लिए मुख्यमंत्री बने थे। दूसरी बार अक्टूबर-नवंबर 2005 में बने और पांच साल रहे थे। लेकिन इससे बहुत पहले नीतीश की समता पार्टी ने 1998 और 1999 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनाने में मदद की थी। भाजपा के नेता जिस भाषा में बोल रहे हैं उसके हिसाब से कहें तो दोनों बार अटल बिहारी वाजपेयी को कंधे पर उठा कर नीतीश की पार्टी ने प्रधानमंत्री बनवाया। 1998 में समता पार्टी को 10 सीटें मिली थीं और 1999 के चुनाव में पार्टी मे 17 सीटें जीती थीं।
यह सही है कि दोनों लोकसभा चुनावों में भाजपा को नीतीश कुमार की पार्टी से ज्यादा सीटें मिली थीं लेकिन वह इस कारण से था कि तब बिहार का विभाजन नहीं हुआ था और भाजपा को झारखंड यानी तब के दक्षिण बिहार से ज्यादा सीटें मिलती थीं। 1998 में भाजपा ने 20 सीटें जीती थीं, जिसमें से 12 सीटें झारखंड की थीं और 1999 में उसको मिली 23 में से 11 सीटें झारखंड की थीं। राज्य के विभाजन के बाद जो पहला चुनाव हुआ उसमें बिहार में भाजपा को सिर्फ चार सीटें मिली थीं। सो, एक तो दिल्ली में भाजपा की सरकार बनवाने में नीतीश की पार्टी ने बड़ी भूमिका निभाई थी और बिहार में भी नीतीश की वजह से भाजपा को सत्ता मिली। कर्पूरी ठाकुर के बाद नीतीश के कंधे पर बैठ कर ही भाजपा तीन बार बिहार की सत्ता में आई।