यह लाख टके का सवाल है कि अगर नीतीश कुमार फिर से भाजपा के साथ चले जाते हैं तो नीतीश का विरोध करके भाजपा के साथ गए सहयोगी दलों का क्या होगा? भाजपा के अभी जो सहयोगी हैं उनमें से ज्यादातर ऐसे हैं, जिनको नीतीश पसंद नहीं करते हैं। लोक जनशक्ति पार्टी के दो हिस्से हैं, जिनमें एक का नेतृत्व पशुपति पारस और दूसरे का नेतृत्व चिराग पासवान करते हैं। इनमें से पारस के साथ नीतीश कुमार का सद्भाव है लेकिन चिराग पासवान को वे पसंद नहीं करते हैं। वे कहते हैं कि चिराग ने 2020 के विधानसभा चुनाव में उनकी पीठ में छुरा घोंपा। नीतीश की वजह से ही चिराग पासवान को केंद्र सरकार में जगह नहीं मिली थी और नीतीश ने ही उनकी पार्टी में विभाजन करा कर पारस का अलग गुट बनवाया था।
इसी तरह कुछ दिन पहले ही पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का विवाद हुआ था, जिसके बाद उन्होंने नीतीश कुमार की सरकार से समर्थन वापस ले लिया था और एनडीए में चले गए। उनकी भी चिंता निश्चित रूप से बढ़ी होगी। भाजपा के साथ गठबंधन करने वाले उपेंद्र कुशवाहा भी चिंतित होंगे। उन्होंने अपनी पार्टी का विलय जदयू में कर दिया था लेकिन जब राजद और जदयू का तालमेल हुआ तो उसके थोड़े दिन बाद नीतीश कुमार का साथ छोड़ कर उन्होंने फिर अपनी पार्टी बनाई और एनडीए से तालमेल किया। नीतीश कुमार की पार्टी के नेता मानते हैं कि जब जदयू और भाजपा साथ आ जाते हैं तो फिर किसी की जरुरत नहीं रह जाती है। तभी अगर नीतीश भाजपा के साथ जाते हैं तो यह देखना होगा कि भाजपा अपनी सहयोगी पार्टियों के साथ क्या बरताव करती है। हालांकि भाजपा के जानकार नेताओं का कहना है कि इस बार नीतीश के कहने पर भाजपा अपने किसी सहयोगी को नहीं छोड़ेगी।