बिहार में एक बार फिर नीतीश कुमार के पलटी मारने की संभावना बढ़ गई है। राजद और जदयू के बीच तनाव बढ़ा रहा है तो नीतीश किसी न किसी तरीके से भाजपा के प्रति सद्भाव दिखा रहे हैं। विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की बैठक में उन्होंने हिंदी के प्रति जो प्रेम दिखाया वह एक संकेत था। इतना ही नहीं उन्होंने देश के नाम के तौर पर भारत का इस्तेमाल करने का सुझाव भी दे दिया। बैठक के तुरंत बाद उन्होंने 29 दिसंबर को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाने का ऐलान कर दिया। बताया जा रहा है कि इस बैठक में राजद और कांग्रेस गठबंधन से अलग होने का फैसला हो सकता है। हालांकि पार्टी के कुछ जानकार नेताओं का यह भी कहना है कि पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में फैसला नहीं होगा। उसमें सिर्फ राष्ट्रीय अध्यक्ष बदलने का फैसला होगा। राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह की जगह खुद नीतीश कुमार अध्यक्ष बनेंगे। गौरतलब है कि ललन सिंह को भाजपा के साथ जाने के फैसले का विरोधी बताया जा रहा है लेकिन असल में वे भी नीतीश कुमार के फैसले के साथ जाएंगे।
बताया जा रहा है कि राजद से तालमेल तोड़ कर भाजपा के साथ जाने का फैसला हो चुका है और उस पर अमल होगा 14 जनवरी के बाद। असल में नीतीश कुमार को अपनी पार्टी की चिंता सता रही है। जिस तरह से एचडी देवगौड़ा ने अपनी पार्टी का अस्तित्व बचाने के लिए भाजपा से तालमेल किया उसी तरह नीतीश भी अस्तित्व बचाने के लिए भाजपा के साथ जाएंगे। उनको एक तरफ राजद से चिंता है तो दूसरी ओर भाजपा से भी चिंता है। बताया जा रहा है कि उनके आठ से नौ सांसद भाजपा के संपर्क में हैं। उनको पता है कि जदयू और राजद साथ रहे तो उनकी टिकट कटेगी। इसके अलावा राजद की ओर से नीतीश को लेकर दुष्प्रचार का सिलसिला शुरू हो गया है और सार्वजनिक रूप से कहा जाने लगा है कि नीतीश की पार्टी का विलय राजद में हो जाएगा। इससे जदयू के तमाम बड़े नेता चिंतित हैं। जदयू के एक बड़े यादव नेता के घर पर 14 विधायकों के जुटने की खबर आई और कहा गया कि ये लोग तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने के लिए समर्थन दे सकते हैं। यह आंकड़ा भी बताया गया कि जदयू को हटा दें तब भी राजद, कांग्रेस और लेफ्ट को मिला कर 115 की संख्या पूरी होती है। उसके बाद सिर्फ सात विधायकों की जरुरत होगी। इन सब खबरों के बीच नीतीश के फिर पलटने का फैसला होने की खबर है।