बिहार की मीडिया में और देश भर की सोशल मीडिया में इस बात को लेकर चर्चा हो रही है कि अगले चुनाव में कितने सांसदों की टिकट कट जाएगी। एक सूची भी सोशल मीडिया में वायरल हो रही है, जिस पर कई लोकप्रिय यूट्यूब चैनलों में चर्चा हुई। जो सूची चर्चा में है उसमें भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री व पूर्वी चंपारण के सांसद राधामोहन सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री और पटना साहिब सीट के सांसद रविशंकर प्रसाद, केंद्रीय मंत्री व बक्सर के सांसद अश्विनी चौबे, केंद्रीय मंत्री और आरा के सांसद आरके सिंह, शिवहर की सांसद रमा देवी, केंद्रीय मंत्री और बेगूसराय के सांसद गिरिराज सिंह आदि के नाम हैं। अपनी सुविधा के हिसाब से कुछ लोग इसमें नाम जोड़ या घटा रहे हैं।
लेकिन भाजपा के जानकार सूत्रों का कहना है कि इनमें से ज्यादातर या लगभग सभी सांसदों को फिर से टिकट मिलेगी। अगर किसी की टिकट कटती है तो उसकी सीट पर उसकी पसंद से उम्मीदवार तय किया जाएगा। कई जगह नेताओं के बेटे या बेटियों को टिकट देने की चर्चा है। बक्सर के सांसद अश्विनी चौबे अपने बेटे शाश्वत के लिए टिकट चाहते हैं। उम्र या परफॉरमेंस के आधार पर उनकी टिकट कटती है तो उनके बेटे को टिकट मिल सकती है। इसी तरह बाकी सीटों पर भी भाजपा को एडजस्टमेंट करनी है।
ऐसी इसलिए नहीं होगा कि पार्टी को इन सांसदों के चेहरे बहुत पसंद हैं या इन्होंने बहुत अच्छा काम किया है। इसका कारण मजबूरी है। अगर नीतीश कुमार का भाजपा के साथ तालमेल बना रहता तब निश्चित रूप से इन सबकी टिकट कट जाती। फिर भाजपा जिसको चाहती उसको उम्मीदवार बनाती और वह नरेंद्र मोदी व नीतीश कुमार नाम पर जीत जाता। लेकिन अब नीतीश कुमार की पार्टी भाजपा के साथ नहीं है। वह 2014 की तरह अलग भी नहीं लड़ रही है, बल्कि राजद और कांग्रेस के साथ तालमेल करके लड़ रही है। इसलिए आमने सामने की लड़ाई में भाजपा एकाध सीटों को छोड़ कर ज्यादातर सीटों पर अपने किसी भी पुराने नेता की टिकट काटने की हिम्मत नहीं कर पाएगी।
बिहार भाजपा के सामने मुश्किल है कि उसके पास स्वतंत्र रूप से या अपने दम पर लड़ने वाले नेताओं की कमी है। विकल्प की कमी के कारण वह सांसदों की टिकट काटने में असमर्थ है। भाजपा के एक जानकार नेता का कहना है कि अगर कोई लहर होती तो किसी की टिकट काटने से फर्क नहीं पड़ता। लेकिन बिहार में कोई लहर नहीं है। राजद, जदयू, कांग्रेस और लेफ्ट के गठबंधन के मुकाबले भाजपा को अपनी छोटी गठबंधन सहयोगियों के साथ एक एक सीट पर मुश्किल लड़ाई लड़नी है। इसलिए वह पुराने, मंजे हुए और सक्षम नेताओं की टिकट नहीं काट सकती है। उसकी मजबूरी है कि वह अपने दम पर लड़ सकने वाले मजबूत नेताओं को टिकट दे। रविशंकर प्रसाद, आरके सिंह जैसे दो चार नेता अपवाद हैं, जिनकी जमीनी राजनीति पर पकड़ नहीं है लेकिन बाकी नेता मजबूत जमीनी पकड़ वाले हैं। वे हारें या जीतें यह अलग बात है लेकिन किसी नए नेता के मुकाबले उनकी स्थिति मजबूत रहेगी।