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भारत रत्न से बदलेगी बिहार की राजनीति

महान समाजवादी नेता जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न सम्मान दिए जाने के बाद हिंदी और अंग्रेजी के सभी अखबारों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक लेख छपा है, जिसमें उन्होंने दावा किया है कि उनकी सरकार कर्पूरी ठाकुर के मॉडल पर काम करती है। हालांकि इससे पहले 10 साल में उन्होंने या उनकी सरकार के किसी मंत्री ने कर्पूरी ठाकुर के बारे में बात नहीं की थी। बहरहाल, सरकार कर्पूरी मॉडल पर काम करे या नहीं करे लेकिन राजनीति जरूर उनके बनाए मॉडल पर होगी। बिहार में नीतीश कुमार पहले से यह राजनीति कर रहे हैं और अब भाजपा उसी राजनीति में उतरी है। हालांकि बिहार से बाहर भाजपा पहले से अत्यंत पिछड़ी जातियों को अपने साथ जोड़े हुए है।

कर्पूरी ठाकुर को उनकी सौवीं जयंती के मौके पर सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न देने उसके बाद प्रधानमंत्री के लेख लिखने और फिर कर्पूरी ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर से बात करने के बाद बड़ा सवाल है कि बिहार में भाजपा अब अकेले राजनीति करने के लिए तैयार है या यह किसी डिजाइन का हिस्सा है? जानकार सूत्रों का यह भी कहना है कि नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यू को साथ लाने की योजना के तहत कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिया गया है। ध्यान रहे उनके बेटे रामनाथ ठाकुर जनता दल यू में हैं और लगातार दूसरी बार राज्यसभा के सांसद हैं। हो सकता है कि नीतीश इस बार भी उनको राज्यसभा भेजें। केंद्र सरकार की इस घोषणा के बाद दोनों तरह की बातें कही जा रही है। एक तरफ जहां यह कहा जा रहा है कि इससे भाजपा और नीतीश करीब आएंगे तो दूसरी ओर यह भी कहा जा रहा है कि दोनों में दूरी बढ़ेगी।

भारत रत्न सम्मान की घोषणा के बाद नीतीश कुमार ने जो पहला ट्विट किया उसमें उन्होंने प्रधानमंत्री का जिक्र नहीं किया। लेकिन थोड़ी देर के बाद ही उन्होंने ट्विट को सुधारा और प्रधानमंत्री को धन्यवाद दिया। इससे पहले दिन में नीतीश कुमार अपने सबसे करीबी मंत्री विजय चौधरी को लेकर राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर से मिलने राजभवन गए थे। इसके बारे में कहा गया कि पांच कुलपतियों की नियुक्ति के सिलसिले में यह मुलाकात हुई थी। इस मुलाकात के बाद कुलपतियों की सूची भी जारी हुई। हालांकि जानकार सूत्रों का कहना है कि यह मुलाकात राजनीतिक थी, जिसका असर आने वाले दिनों में दिखाई देगा।

गौरतलब है कि बिहार में हुई जाति गणना के आंकड़ों के मुताबिक अति पिछड़ी जातियों की आबादी 36 फीसदी है। इसमें आठ फीसदी मुस्लिम अति पिछड़ी जातियां भी हैं। पिछले ढाई दशक से नीतीश कुमार इस वोट की राजनीति करते रहे हैं। लालू प्रसाद के मुस्लिम-यादव समीकरण के खिलाफ उन्होंने लव-कुश यानी कोईर-कुर्मी का समीकरण बनाया था और उसमें अति पिछड़ी जातियों को जोड़ा था। पिछले 20 साल की उनकी चुनावी सफलता का राज यही समीकरण है। इसे राजनीति का कर्पूरी फॉर्मूला कह सकते हैं। कर्पूरी ठाकुर पहले नेता था, जिन्होंने पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों के दो समूह बनाए और उनके लिए अलग अलग आरक्षण का प्रावधान किया। नीतीश ने भी इसी फॉर्मूले के आधार पर आरक्षण लागू किया है।

By NI Desk

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