केरल की कम्युनिस्ट सरकार की नाक में दम करने के बाद अब आरिफ मोहम्मद खान बिहार राजभवन में विराजेंगे। राष्ट्रपति ने उनको केरल से हटा कर बिहार का राज्यपाल बनाया है। केरल के राज्यपाल के रूप में वे पांच साल का कार्यकाल पूरा कर चुके थे। वे छह सितंबर 2019 को केरल के राज्यपाल बने थे और 24 दिसंबर 2024 तक रहे। अब उनको बिहार भेजा गया है तो माना जा रहा है कि उनका नया कार्यकाल शुरू हुआ है। केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद बहुत कम राज्यपाल को यह मौका मिला है कि वे पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद भी राज्यपाल बने रहें।
आनंदी बेन पटेल उनमें से एक हैं और अब आरिफ मोहम्मद खान को भी यह मौका मिला है। परंतु बड़ा सवाल है कि केरल में जिस तेवर में वे राज्यपाल रहे उसे देखते हुए बिहार में उनकी क्या उपयोगिता है? बिहार तो एनडीए की सरकार है। वहां तो राज्य सरकार और राजभवन को परफेक्ट तालमेल के साथ काम करना होता है। क्या बिहार में किसी तरह के बदलाव की जो अटकलें चल रही हैं उनको देखते हुए यह कदम उठाया गया है?
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इन सवालों का जवाब अगले कुछ दिन में मिलेगा। माना जा रहा है कि बिहार में नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यू और भाजपा के बीच सब कुछ ठीक नहीं है। भाजपा सरकार में है लेकिन सरकार की ओर से प्रगति यात्रा अकेले नीतीश कुमार कर रहे हैं। अमित शाह ने पिछले दिनों एक न्यूज चैनल के कार्यक्रम में कह दिया कि बिहार के मुख्यमंत्री का फैसला चुनाव के बाद होगा, इस पर नीतीश और उनकी पार्टी नाराज हैं। वे पूछ रहे हैं कि जब पहले कहा जा चुका है कि अगला चुनाव नीतीश के नेतृत्व में होगा और चुनाव जीतने पर वे ही मुख्यमंत्री बनेंगे तो फिर इस नई बात का क्या मतलब है? इस नाराजगी में जदयू के राजद से भी संपर्क साधने की खबरें आईं।
अगर ऐसा होता है तब तो राजभवन में आरिफ मोहम्मद खान के होने का कोई मतलब बनता है। अगर एनडीए की ही सरकार रहती है तो वहां राज्यपाल के पास ज्यादा कुछ करने को नहीं होगा। यह हो सकता है कि नीतीश कुमार को इसका कुछ फायदा हो क्योंकि वे भाजपा के साथ होते हुए भी मुस्लिम समुदाय को छोड़ते नहीं हैं। मुस्लिम भी कई जगह उनकी पार्टी को वोट देते हैं। इस लिहाज से कह सकते हैं कि मुस्लिम राज्यपाल होने का लाभ जदयू को मिल सकता है।