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केजरीवाल ने विधानसभा क्यों नहीं भंग की?

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सुप्रीम कोर्ट से जमानत हासिल कर जेल से छूटने के बाद अरविंद केजरीवाल ने कम से कम एक बार जल्दी चुनाव की बात कही थी। उसके बाद वे चुप हो गए थे। सवाल है कि क्या केजरीवाल चाहते थे कि दिल्ली में समय से पहले चुनाव हो जाए? जानकार सूत्रों का कहना है कि इस्तीफा देने से पहले उनका इरादा विधानसभा भंग करके समय से पहले चुनाव में जाने का था। इसमें कोई अचरज की बात नहीं होती है। राज्य सरकारें समय से पहले चुनाव कराती रही हैं। तेलंगाना के तत्कालीन मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने 2018 में अचानक विधानसभा भंग कर  दी थी, जबकि विधानसभा का कार्यकाल मई 2019 तक का था। वे नहीं चाहते थे कि लोकसभा के साथ चुनाव हो। इसलिए उन्होंने विधानसभा भंग कर दी और नवंबर 2018 में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के साथ वहां चुनाव हुए थे।

दिल्ली विधानसभा का कार्यकाल फरवरी के मध्य तक है। ऐसे में अगर जेल से निकलने के बाद यानी 13 सितंबर के बाद किसी दिन केजरीवाल विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर देते तो हो सकता है कि नवंबर में होने वाले दो राज्यों के चुनाव के साथ ही दिल्ली विधानसभा का चुनाव भी हो जाता। गौरतलब है कि नवंबर में महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव होने वाले हैं। विधानसभा भंग करके कार्यवाहक मुख्यमंत्री रहते जल्दी चुनाव कराने की बजाय केजरीवाल सिर्फ एक बार यह बयान देकर चुप हो गए कि जल्दी चुनाव हो। इसके जवाब में भाजपा ने भी कहा है कि वह किसी भी समय चुनाव के लिए तैयार है। लेकिन फिर केजरीवाल ने इस पर कोई बयान नहीं दिया।

आम आदमी पार्टी के जानकार सूत्रों के मुताबिक केजरीवाल जब जेल में थे तब भी उन्होंने जल्दी चुनाव की संभावना पर विचार किया था। वे चाहते थे कि जेल में रह कर ही चुनाव लड़ें और दिल्ली के चुनाव को अपने चेहरे पर जनमत संग्रह में बदल दें। परंतु बाद में उन्होंने इसका इरादा छोड़ दिया। कहा जा रहा है कि हरियाणा के साथ दिल्ली विधानसभा की संभावना देखते हुए उन्होंने यह इरादा छोड़ा। असल में भारतीय जनता पार्टी पहले से इसके लिए तैयार थी कि हरियाणा के साथ दिल्ली का चुनाव कराया जाए। तभी जल्दी चुनाव का केजरीवाल का बयान आने के बाद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने कहा कि पार्टी किसी भी समय चुनाव  के लिए तैयार है। सूत्रों का कहना है कि भाजपा मान रही थी कि अगर हरियाणा के साथ चुनाव होता है तो कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच तालमेल की कोई संभावना नहीं बचेगी। दोनों पार्टियां एक दूसरे के खिलाफ लड़ेंगी और कांग्रेस कुछ ज्यादा वोट काट सकती है। तभी जेल में रहते चुनाव का इरादा केजरीवाल ने छोड़ दिया। जेल से बाहर निकल कर विधानसभा भंग करने की सिफारिश उन्होंने इसलिए नहीं की क्योंकि उनको लगा कि कार्यवाहक सीएम रह कर चुनाव लड़ने पर ज्यादा सहानुभूति नहीं मिलेगी। यह भी आशंका थी कि उप राज्यपाल विधानसभा भंग करने की सिफारिश को लटका दें या देर कर दें। इसके बाद यह संभावना भी थी कि विधानसभा भंग होने के बाद भी चुनाव आयोग समय पर ही यानी फरवरी, 2025 में ही चुनाव कराए। इसलिए केजरीवाल ने सीएम पद छोड़ने, महिला सीएम बनाने और बंगला खाली करने आदि के सहारे भावनात्मक कार्ड खेलने का फैसला किया।

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