यह कमाल सिर्फ अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी ही कर सकती है। वे पहले किसी मसले पर फैसला कर लेते हैं। उसकी घोषणा कर देते हैं और उसके बाद पार्टी कहती है कि इस पर जनमत संग्रह कराया जाएगा। पिछले दिनों जब ईडी के समन पर अरविंद केजरीवाल उसके सामने हाजिर नहीं हुए और चुनाव प्रचार से लौटे से उन्होंने अपनी पार्टी के विधायकों की बैठक बुलाई। इस बैठक में विधायकों ने एक राय से तय किया कि अगर ईडी कार्रवाई करती है और केजरीवाल को गिरफ्तार कर लेती है तब भी वे विधायक दल के नेता बने रहेंगे।
यानी पार्टी ने साफ कर दिया कि वह नया नेता नहीं चुनेगी और केजरीवाल ही मुख्यमंत्री बने रहेंगे। उनकी पार्टी के प्रवक्ताओं और सरकार के मंत्रियों ने सार्वजनिक रूप से कहा कि गिरफ्तारी के बाद केजरीवाल तिहाड़ जेल से सरकार चलाएंगे और वहीं कैबिनेट की बैठक होगी। यह फैसला करने के बाद पार्टी ने ऐलान किया है कि वह इस बात पर जनमत संग्रह कराएगी कि केजरीवाल को इस्तीफा देना चाहिए या नहीं देना चाहिए। सोचें, जब विधायक और पार्टी पहले तय कर चुके हैं कि इस्तीफ नहीं देना और वे मुख्यमंत्री बने रहेंगे तब इस पर जनमत संग्रह कराने का क्या मतलब है? सबको पता है कि आम आदमी पार्टी की ओर से कराए जाने वाले हर जनमत संग्रह में वही नतीजा आता है, जो पार्टी पहले से तय करती है। दूसरा ड्रामा यह है कि केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बने रहें या नहीं इस पर पार्टी पूरे देश में जनमत संग्रह कराएगी।