यह बड़ा सवाल है कि उत्तर प्रदेश में पुलिस महानिदेशक यानी डीजीपी की नियुक्ति की नियमावली बनाने के पीछे राज्य सरकार का क्या मकसद है? क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अभी तक कार्यवाहक डीजी के तौर पर काम कर रहे 1991 बैच के आईपीएस अधिकारी प्रशांत कुमार को पूर्णकालिक डीजी बनाने की तैयारी कर रहे हैं? यह भी सवाल है कि क्या प्रशांत कुमार को दो साल का निर्धारित कार्यकाल मिलने वाला है? गौरतलब है कि पिछले काफी समय से उत्तर प्रदेश सरकार ने पूर्णकालिक डीजीपी नियुक्त ही नहीं। कार्यकारी डीजीपी से काम चलता है और एक कार्यकारी डीजी रिटायर हो जाने पर दूसरा बना दिया जाता है।
असल में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक पूर्णकालिक डीजी की नियुक्ति के लिए संघ लोक सेवा आयोग यानी यूपीएससी की मंजूरी लेनी होती है। राज्य सरकार को तीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों का नाम भेजना होता है और यूपीएससी की ओर से तय किया जाता है कि इन तीन में से कौन डीजीपी बनेगा। माना जा रहा है कि इस प्रक्रिया से बचने के लिए योगी सरकार ने पहले कार्यकारी डीजी से काम चलाया और अब नई नियमावली बनाई जा रही है, जिससे राज्य सरकार खुद ही डीजी की नियुक्ति करेगी। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और पंजाब ने सर्वोच्च अदालत के आदेश के हिसाब से नियमावली बना दी है और वे खुद नियुक्ति करते हैं। बताया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में हाई कोर्ट के एक रिटायर जज की अध्यक्षता वाली कमेटी होगी, जिसमें यूपीएससी का भी एक प्रतिनिधि होगा और वह राज्य सरकार की ओर से दिए गए पैनल में एक नाम तय करेगा। योगी आदित्यनाथ ने कैबिनेट की बैठक करके नियमावली बनाने की मंजूरी दे दी है। जानकार सूत्रों का कहना है कि योगी को लग रहा है कि यूपीएससी के जरिए नियुक्ति में केंद्र का दखल होगा, जबकि वे अपनी पसंद के अधिकारी को डीजी बनाना चाह रहे हैं। इसलिए उन्होंने यह रास्ता चुना है।