यह भारत का दुर्भाग्य है कि जितने बिना राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले और बिना जनाधार वाले कथित तौर पर पढ़े-लिखे, पूर्व अधिकारी, पूर्व कारोबारी भारत की राजनीति में आए वे सब अनर्गल बयानबाजी के लिए मशहूर हुए। इनमें मौजूदा केंद्र सरकार के कई मंत्री हैं, जो पूर्व अधिकारी होने या बड़े कारोबारी होने की वजह से पद पर हैं लेकिन कभी भी समझदारी की बात नहीं करते हैं। ऐसे नेताओं का मानना है कि एपल कंपनी भारत को बदनाम कर रही है। यहां तक कहा गया कि उसको जवाब देना होगा। गौरतलब है कि एपल कंपनी के आईफोन यूजर्स को, जिसमें लगभग सभी विपक्षी पार्टी के नेता हैं, उनको 31 अक्टूबर को मैसेज आया कि सरकार समर्थित हैकर्स ने उनका फोन हैक करने का प्रयास किया है। हालांकि बाद में कंपनी ने बताया है कि इस तरह के मैसेज कई बार गलत या अधूरे भी होते हैं। कंपनी ने यह भी बताया कि ऐसे मैसेज डेढ़ सौ देशों के लोगों को भेजे गए हैं।
तभी एपल के रिस्पांस के आधार पर पहले सरकार की ओर से कहा गया कि कंपनी ने सफाई दे दी है और इस तरह के मैसेज डेढ़ सौ देशों में भजे गए हैं लेकिन सिर्फ भारत का विपक्ष इसका मुद्दा बना रहा है। फिर कहा गया कि केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल को भी इस तरह का मैसेज आया है। इसके बाद ही सरकार के मंत्रियों की ओर से कहा गया कि इस तरह के मैसेज भारत को बदनाम करने की साजिश का हिस्सा हैं। सोचें, जब कंपनी कह चुकी है कि सरकार समर्थित हैकर्स का मतलब सरकारी हैकर नहीं है और यह रूटीन का मैसेज है फिर भी इसमें सरकार की बदनामी का पहलू जोड़ा गया। इसके बाद इसे भारत को बदनाम करने की साजिश बता दिया जाएगा। ऐसा हर अंतरराष्ट्रीय संस्था की रिपोर्ट के बाद भी कहा जाता है। सोचें, जिस एपल को लेकर तीन-चार दिन पहले ही केंद्रीय सूचना व प्रौद्योगिकी मंत्री ने दावा किया कि आईफोन अब भारत में बनेगा उसी पर अब सरकार को बदनाम करने का आरोप लगाया जा रहा है। इसका मतलब है कि सरकार कहीं से अपनी कमी स्वीकार नहीं करेगी, उससे बचने के लिए चाहे जिस पर जो इल्जाम लगाना पड़े।