यह बड़ी हैरान करने वाली बात है कि एक तरफ एनसीपी के नेता और महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजित पवार को लेकर यह चर्चा है कि वे भाजपा गठबंधन से बाहर हो सकते हैं और फिर अपने चाचा शरद पवार के साथ लौट सकते हैं तो दूसरी ओर यह खबर है कि राज्यपाल की ओर से मनोनीत होने वाले विधान परिषद सदस्यों में अजित पवार को तीन सीटें मिल सकती हैं। अगर ऐसा होता है तो यह बहुत बड़ी बात होगी। फिर कैसे यह माना जाए कि वे महायुति छोड़ कर अलग हो रहे हैं? अगर उनको अलग होना होता तो भाजपा क्यों उनको एमएलसी की तीन सीटें देती? गौरतलब है कि राज्य विधान परिषद में 12 सीटें मनोनीत श्रेणी की हैं। उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार के समय तब के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने सरकार की सिफारिशें लटका कर रखी थीं और तब से ये सीटें खाली हैं।
अब खबर है कि भाजपा, शिव सेना और एनसीपी ने सीटें आपस में बांट ली हैं। भाजपा को छह सीट मिली है और शिव सेना व एनसीपी को तीन तीन सीटें मिलेंगी। श्राद्ध खत्म होते ही इसकी घोषणा हो सकती है। सरकार तीनों पार्टियों से नाम लेकर राज्यपाल को भेजेगी। उससे पहले गठबंधन की तीनों सहयोगी पार्टियों के बीच विधानसभा की सीटों का बंटवारा भी हो रहा है। तभी ऐसा लग रहा है कि अजित पवार परिवार व पार्टी तोड़ने पर अफसोस जताने या बारामती सीट से चचेरी बहन सुप्रिया सुले के खिलाफ अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार को खड़ा करने को गलत फैसला बताने का नाटक पवार समर्थकों को मैसेज देने के लिए कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव से उनको अंदाजा हो गया है कि मराठा वोटर शरद पवार के साथ है। इसलिए वे गलती मान कर या अफसोस जता कर उन मतदाताओं को मैसेज दे रहे हैं कि परिवार में सब कुछ पहले जैसा करने की कोशिश हो रही है।