लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी के निलंबन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का कांग्रेस का आइडिया सही नहीं है। यह सही है कि अधीर रंजन चौधरी को सामान्य सांसद नहीं हैं। वे लोकसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता हैं और इस नाते कई संवैधानिक जिम्मेदारियां उनके पास हैं। वे लोक लेखा समिति के अध्यक्ष हैं, कार्य मंत्रणा समिति के सदस्य हैं और सीबीआई के निदेशक को नियुक्त करने वाली कमेटी के सदस्य भी हैं। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि सदन के अंदर हुए किसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाए। इससे गलत नजीर बनेगी और अदालत पर भी लोगों को सवाल उठाने का मौका मिलेगा।
ध्यान रहे पिछले दिनों लोकसभा से राहुल गांधी की अयोग्यता के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया और उनकी सदस्यता बहाल हुई। वह एक कानूनी प्रक्रिया थी। सर्वोच्च अदालत ने निचली अदालत और हाई कोर्ट के फैसेल पर रोक लगाई। इसके बावजूद उस राहुल गांधी और उससे पहले मणिपुर के मामले में दिए गए दखल को लेकर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और दूसरे जजों को सोशल मीडिया में निशाना बनाया गया। एक जज ने इसकी शिकायत भी चीफ जस्टिस से की लेकिन उन्होंने इसकी अनदेखी करने को कहा। सो, अधीर रंजन का मामला कोर्ट ले जाने से एक बार फिर अदालत पर फोकस बनेगा और दूसरे कांग्रेस के बारे में यह धारणा बनेगी कि वह राजनीतिक लड़ाई लड़ने में सक्षम नहीं है। कांग्रेस को राजनीतिक लडाई ही लड़नी चाहिए क्योंकि वैसे भी लोक लेखा समिति में या कार्य मंत्रणा समिति में या सीबीआई निदेशक की नियुक्ति वाली समिति में विपक्ष के नेता के पास अब कोई काम नहीं रह गया है।