अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के ऊपर जबरदस्त दबाव की राजनीति की है। उसने असम में तीन सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा के बाद अब कांग्रेस को अपमानित करते हुए कहा है कि उसकी हैसियत दिल्ली में एक भी सीट लेने की नहीं है क्योंकि दो चुनावो से उसके जीरो सांसद और जीरो विधायक हैं और सिर्फ नौ पार्षद हैं। इसके बावजूद पार्टी दया करके उसके लिए एक सीट छोड़ सकती है। सवाल है कि जब आम आदमी पार्टी पहले कांग्रेस को तीन सीट देने के लिए राजी हो गई थी तो अब अचानक उसने एक सीट का राग क्यों शुरू कर दिया? पंजाब का मामला सबको पता है कि वहां रणनीति के तहत दोनों पार्टियां अलग अलग लड़ रही हैं लेकिन दिल्ली में चार-तीन का फॉर्मूला केजरीवाल ने क्यों छोड़ा?
जानकार सूत्रों का कहना है कि केजरीवाल दूसरे राज्यों में कुछ सीटें चाहते हैं। उनके चुनाव रणनीतिकार और पंजाब से राज्यसभा सांसद संदीप पाठक ने समझाया है कि पार्टी चंडीगढ़ सीट जीत सकती है लेकिन कांग्रेस किसी हाल में वह सीट नहीं छोड़ेगी। पवन बंसल अब भी वहां से दावेदार हैं। आप को गुजरात की भरूच सीट हर हाल में चाहिए जहां से उसने चैतार वसावा को उम्मीदवार बनाया है। इसी तरह वह हरियाणा में एक या दो सीट चाहती है क्योंकि उसको लग रहा है कि कांग्रेस के कंधे पर सवार होकर वह गुजरात और हरियाणा में पैर जमा लेगी। इसलिए उसने दिल्ली में सिर्फ एक सीट का प्रस्ताव दिया है ताकि मोलभाव के समय एक या दो सीट और देने के बदले दूसरी जगह सीट ली जा सके।