सात जनवरी को चुनाव आयोग ने दिल्ली के विधानसभा चुनाव का ऐलान किया और कहा कि पांच फरवरी मतदान होगा। चुनाव की घोषणा के 10 दिन भी नहीं हुए कि केंद्र सरकार ने कैबिनेट की बैठक में आठवें वेतन आयोग के गठन को मंजूरी दे दी। सवाल है कि क्या केंद्र सरकार इस बात का इंतजार कर रही थी कि दिल्ली के विधानसभा चुनाव की घोषणा हो तो आठवें वेतन आयोग का ऐलान किया जाए? केंद्र सरकार यह घोषणा पहले भी कर सकती थी। अगर एक जनवरी 2026 से इसकी सिफारिशें लागू होनी हैं तो घोषणा निश्चित रूप से पहले होनी चाहिए थी। लेकिन पहले यह संकेत दिया जा रहा था कि अब कोई वेतन आयोग नहीं बनेगा और केंद्र सरकार अपने कर्मचारियों के वेतन व भत्तों के पुनरीक्षण का कोई दूसरा मॉडल बनाएगी।
लेकिन अचानक वेतन आयोग का ऐलान कर दिया गया। सबको पता है कि दिल्ली में केंद्रीय कर्मचारियों की अच्छी खासी संख्या है और वे चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं। यह भी कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार ने इसकी घोषणा से पहले चुनाव आयोग से मंजूरी लेने या उसको इसकी सूचना देने की जरुरत भी नहीं समझी। कहा गया कि यह पूरे देश के लिए है इसलिए इस पर आचार संहिता की बंदिशें लागू नहीं होती है। गौरतलब है कि पिछले कुछ दिनों से यह ट्रेंड भी साफ दिखने लगा है कि राज्यों के चुनावों के बीच केंद्र सरकार बड़े नीतिगत फैसले करने लगी है। हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड चुनाव के बीच भी फैसले हुए थे। बहरहाल, इस फैसले का सबसे ज्यादा असर नई दिल्ली सीट पर हो सकता है, जहां से अरविंद केजरीवाल चुनाव लड़ रहे हैं। नई दिल्ली सीट पर सरकारी कर्मचारियों की संख्या सबसे ज्यादा है।