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थाईलैंड कगार पर, लोकतंत्र लौटेगा या…

थाईलैंड के प्रधानमंत्री प्रयुथ चान-ओ-चा ने राजनीति से सन्यास लेने की घोषणा की है। प्रयुथ चान-ओ-चा पूर्व सैनिक जनरल हैं और सन् 2014 में सैनिक विद्रोह के बाद सत्ता पर काबिज हुए थे। उनके नेतृत्व में ही कार्यकर्ताओं और राजनीतिक विरोधियों को गिरफ्तार किया गया। मीडिया पर सेन्सरशिप लागू हुई। बाद में सन् 2019 में संसद ने उन्हें प्रधानमंत्री नियुक्त किया।

किंतु इस साल मई में उनकी पार्टी को अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा।  उनकी पार्टी पांचवे नंबर पर रही – उस नवोदित विपक्षी पार्टी से भी काफी पीछे जिसने सेना को राजनीति से दूर करने का वायदा किया था। राजपरिवार के कट्टर समर्थक और रूढ़िवादी इस नेता ने इस्तीफे की घोषणा करते हुए अपने वक्तव्य में कहा है कि उन्होंने अपनी “प्यारी जनता के हितों की खातिर राष्ट्र, धर्म और राजशाही के संरक्षण के लिए कड़ी मेहनत की”।उनकी सेवानिवृत्ति थाईलैंड की संसद के नए प्रधानमंत्री चुनने के लिए जुटने की घोषणा के बाद हुई। भले ही प्रयुथ पीछे हट रहे हों परन्तु विश्लेषकों का कहना है कि जो अलोकतांत्रिक ढांचा उनके शासनकाल में खड़ा किया गया वह जैसे का तैसा है। थाईलैंड के चुनाव संबंधी कानूनों के अनुसार मूव फारवर्ड पार्टी के नेता पीटा लिमजारोईनरा को निचले सदन के 500 निर्वाचित सांसदों और सीनेट के 250 सदस्यों के बहुमत का समर्थन हासिल करना होगा। सीनेट के सदस्य पिछले तख्तापलट के बाद सेना द्वारा नियुक्त किए गए थे और यह साफ नहीं है कि वे पीटा का समर्थन करेंगे यह नहीं, जिनकी पार्टी मई में हुए चुनाव में पहले नंबर पर पर रही थी।

पीटा लिमजारोईनरा, जो 42 साल के हैं, हार्वर्ड में पढ़े हैं और आईटी टेकी हैं। उन्हें पढ़े-लिखे शहरियों का जबरदस्त समर्थन मिला। उनकी मूव फारवर्ड पार्टी ने राजधानी बैंकाक में लगभग पूरी जीत हासिल की और राष्ट्रीय स्तर पर भी चुनाव जीता। उनकी पार्टी की निर्णायक जीत की प्रशंसा और सराहना हुई। आखिर उसका गठन सन् 2020 में ही तो हुआ था।

गुरूवार को थाईलैंड की संसद इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर निर्णय लेने के लिए मतदान करेगी कि क्या सैनिक विद्रोह  के जरिए सत्ता पर काबिज होकर दस सालों तक राज करने वाले पूर्व सैन्य जनरल के बाद देश के सबसे लोकप्रिय और प्रगतिशील दल के नेता को सत्ता सौंपी जाए या नहीं? यदि पीटा को पर्याप्त वोट नहीं मिले तो राजनीतिक गतिरोध और उनके समर्थकों के विरोध प्रदर्शनों की स्थिति बन जाएगी। और स्थानीय मीडिया की खबरों के अनुसार ऐसा होने पर, मतदान के दौरान लोगों को विरोध प्रदर्शन के लिए संसद के नजदीक निर्धारित स्थान उपलब्ध कराया जाएगा।

इस बीच पीटा बहुमत और प्रधानमंत्री पद हासिल करने के लिए प्रयासरत हैं। उन्होंने सीनेटरों से जनता की इच्छा का सम्मान करने की अपील की है। हाल में जनसमूह को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि वे सीनेटरों से आग्रह कर रहे हैं कि लोकतंत्र के पक्ष में मत दें ताकि आगे बढ़ा जा सके। पीटा की मुख्य समस्या यह है कि वे उस कानून में सुधार करना चाहते हैं जिसके अंतर्गत राजशाही की आलोचना करने पर 15 साल तक जेल की सजा हो सकती है। मज़े की बात यह है कि उनकी जीत में उनके वायदे की प्रमुख भूमिका है। सन् 2020 से इस कानून का उपयोग बच्चों सहित 250 से अधिक लोगों के विरूद्ध किया गया है। उस साल लंबे समय से चली रही इस धारणा को चुनौती देते हुए युवाओं के नेतृत्व में जबरदस्त आंदोलन हुआ था कि राजवंश पूजनीय है और उस पर सवाल नहीं उठाए जाने चाहिए। स्थानीय मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार पीटा कुछ सीनेटरों को अपनी पार्टी का समर्थन करने के लिए राजी करने में सफल हो गए हैं, लेकिन कई सीनेटर अभी भी उनके खिलाफ हैं। कई सीनेटर इस कानून में किसी भी बदलाव के खिलाफ हैं क्योंकि उनका मानना है कि राजवंश की आलोचना राष्ट्रहित में नहीं है और सजा की अवधि घटाने से देश में और अधिक अव्यवस्था उत्पन्न होगी। और गुरूवार का मतदान ही पीटा के समक्ष एकमात्र चुनौती नहीं है। उनके एक रूढिवादी विरोधी ने उनके खिलाफ एक न्यायिक प्रकरण दायर किया है जिसके कारण उन पर जेल की सजा या राजनीति में भाग लेने पर प्रतिबंध की तलवार भी लटक रही है।

पीटा की लोकप्रियता संदेह के परे है। उन्हें पूरे देश के सभी आयु समूहों के लोगों का समर्थन हासिल है। विश्लेषकों का मानना है कि अगर उनके खिलाफ कुछ भी होता है, तो उसके विरोध में थाईलैंड की सड़कों पर तूफानी प्रदर्शन होंगे। कुल मिलाकर थाईलैंड में काफी अनिश्चितत की स्थिति है, और या तो देश आगे बढ़ेगा या फिर अराजकता में फसंकर पीछे जाएगा। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

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By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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