राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

सुनील क्षेत्रीः पूत के पांव पालने में दिख गए थे!

लेकिन पिछले बीस सालों में सुनील ने भारतीय फुटबाल को जो कुछ दिया उसका बखान करने की जरूरत नहीं है। चूंकि सुनील को आज भारत के घर घर में जाना पहचाना जाता है, इसलिए हर कोई उसके बारे में किस्से कहानियां गढ़ता मिल जाएगा। उनमें से मैं भी एक हूं। मैने उसकी शुरुआती फुटबाल यात्रा को करीब से देखा परखा है।

इसमें दो राय नहीं कि सुनील क्षेत्री को आसानी से भारत का सर्वकालीन श्रेष्ठ खिलाड़ी आंका जा सकता है। हो सकता है कि कुछ फुटबाल जानकारों को आपत्ति हो, क्योंकि वह उस दौर का भारतीय खिलाड़ी है जब भारतीय फुटबाल जीरो से उठ कर ऊंचाइयां छूने  की कोशिश कर रही है। उन फुटबाल प्रेमियों की असहमति का सामना भी करना पड़ सकता है जिन्होंने भारतीय फुटबाल का स्वर्ण युग जिया है। ओलंपिक फुटबाल में भाग लेने वाले और भारत के लिए 1951 और 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण जीतने वाले महान खिलाड़ियों  और उनके लाखों दीवानों की सोच हट कर हो सकती है।

लेकिन पिछले बीस सालों में सुनील ने भारतीय फुटबाल को जो कुछ दिया उसका बखान करने की जरूरत नहीं है। चूंकि सुनील को आज भारत के घर घर में जाना पहचाना जाता है, इसलिए हर कोई उसके बारे में किस्से कहानियां गढ़ता मिल जाएगा। उनमें से मैं भी एक हूं। मैने उसकी शुरुआती फुटबाल यात्रा को करीब से देखा परखा है। तब  मोती बाग स्कूल के नामी कोच पीएस पुरी, स्वर्गीय बच्ची राम और हम सब मिल कर देवरानी मेमोरियल इंटर स्कूल फुटबाल टूर्नामेंट आयोजित करते थे, जिसमें सुनील धुरंधरों के बीच एक अलग चेहरा बन कर उभर रहा था।  मुझे याद है कि कैसे दिल्ली के आर्मी पब्लिक स्कूल धौला कुआं का  एक 12-14 साल का लड़का स्थानीय स्कूली टूर्नामेंट में बड़े बड़ों का बैंड बजाता था।

उसकी गेम सेंस, बाल कंट्रोल और ड्रिबलिंग काबीले तारीफ थे। उस दौर में ममता मॉडर्न और मोतीबाग जैसे स्कूलों का दबदबा था, जिनके स्टार खिलाड़ियों के सामने सुनील अकेले योद्धा की तरह लड़ता था लेकिन। भले ही उसका स्कूल बड़ी कामयाबी अर्जित नहीं कर पाया लेकिन अनित धूलिया, पीएस पुरी और मेरे अनुरोध पर क्षेत्री सीनियर ने अपने बेटे को दिल्ली के चैंपियन स्कूल ममता मॉडर्न में दाखिले की मंजूरी दे दी और यहीं से सुनील क्षेत्री की असली विकास यात्रा शुरू हुई।

एशियन स्कूल चैंपियनशिप में शानदार प्रदर्शन के बाद उसने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। स्थानीय क्लबों से खेल कर वह दिल्ली का स्टार खिलाड़ी बना और जल्दी ही लंबी ऊंची छलांग लगा कर भारतीय फुटबाल में छा गया। मोहन बागान, जेसीटी और बेंगलुरु एफसी को सेवाएं देने वाले इस खिलाड़ी ने मैच दर मैच और साल दर साल नए कीर्तिमान गढ़े। उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि रोनाल्डो और मैसी जैसे खिलाड़ियों के साथ उसका नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है।

अपनी स्कूली टीम को अकेले दम पर जीत दिलाने वाला एक लड़का अपने हुनर से  देश की फुटबाल को ऊंचाइयों तक ले गया है। गोल जमाने में उसे महारथ हासिल है और इस हुनर ने ने उस भारतीय फुटबाल को दुनियाभर में नाम और पहचान दिलाई है, जिसे सबसे पिछड़े फुटबाल राष्ट्रों में शामिल किया जाता है। सच तो यह है कि सुनील क्षेत्री को एक तरफ कर दें तो भारतीय फुटबाल एक क्लब स्तरीय टीम भर रह जाती है। भले ही टीम खेलों में किसी एक खिलाड़ी को कामयाबी का श्रेय देना न्यायसंगत नहीं है लेकिन सुनील के रिकार्ड, उसका समर्पण, देश के लिए खेलने का जुनून और गोल जमाने की भूख उसे महानतम बनाते हैं। उसके खेल को देखने का लुत्फ उठाने वालों को जैसा आनंद मिला उसकी अनुभूति को समझा जा सकता है। बेशक, हमारी पीढ़ी ने इस पूत के पांव पालने में देख लिए थे।

Tags :

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *