अमेरिका का प्रांत हवाई! और दृश्य और तस्वीरें,बर्बादी ह्रदय विदारक। नीले और सफेद रंगों से सराबोर रहने वाले इस द्वीप में विनाशकारी आग की लपटों से बहुत बड़ा इलाका जल कर खाक हो गया है। उन्नीसवीं सदी के हवाइयन साम्राज्य की राजधानी लहेना लगभग पूरी तरह नष्ट है।
जंगल में लगी आगने लहेना की सुंदरता छीन ली है। यह आग अमेरिका में पिछले सौ सालों में सबसे भयावह थी। इस दुनिया को अलविदा कहने से पहले जिन जगहों पर हम जाना चाहते हैं, जिन्हें देखना और अनुभव करना चाहते हैं, ऐसी जगहों की हम सब की सूची में हवाई का नाम ज़रूर होता है। पर यह सूची छोटी होती जा रही है। और इसका मुख्य कारण है मौसम। हर बीतते दिन के साथ मौसम ख़राब, और ख़राब होता जा रहा है, अधिकाधिक विनाशकारी होता जा रहा है। ऐसे बहुत से स्थान जहां हम-आप जाना चाहते हैं, क्लाइमेट चेंज का दुष्प्रभाव झेल रहे हैं। इस साल इटली में गर्मी का प्रकोप हमारी दिल्ली से भी ज्यादा था। ग्रीस में भी असहनीय गर्मी है। वहीं ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, अमरीका और चीन के कई भागों में अनवरत बारिश ने तबाही मचा रखी है। खबरों को देखकर और लेख पढ़कर कर यह सोचना पड़ रहा है कि कौनसी जगह जाने लायक बची है। बहुत सी जगहें जंग के कारण इस सूची से बाहर हो गई हैं और अब बहुत सी जलवायु संबंधी उथलपुथल के कारण हो रही हैं।
हवाई और लहेना में भी यही हुआ। लगभग पूरा हवाई पिछले एक साल से सूखे से जूझ रहा है और माउई में हालात पिछले कुछ हफ़्तों में और बुरे हो गए हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, दुनिया भर में बढ़ते तापमान और सूखे ने हवाई के कुछ इलाकों को सूखे भूसे का के ढेर में तब्दील कर दिया है, जिसे आग पकड़ते देर नहीं लगती। नजदीकी इलाके में आए एक तूफान के कारण चली तेज हवाओं ने हालात और बदतर बना दिए। इस इलाके में गर्मी और सूखे का प्रकोप इतना ज्यादा था कि माउई के किहेइ नाम के शहर में धूप की गर्मी से खम्भों पर लगीं ट्रेफिक लाईटें तक पिघल गईं!
एक अन्य वजह यह थी कि लहेना के पास बड़ी कृषि भूमि को खाली छोड़ दिया गया था। चूंकि इस भूमि की देखभाल करने वाला कोई नहीं था इसलिए इस पर घास, झाड़ियां आदि ऊग आईं जो जल्दी आग पकड़ती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार खेती या पशुपालन की ज़मीन को खाली छोड़ देने पर वह ज्वलनशील बन जाती है। अमरीका और भूमध्य सागर क्षेत्र में हाल में हुए घातक अग्निकांडों के पीछे यही मुख्य कारण था।
हवाई में लोगों को इस बात की जानकारी थी। हवाई के अधिकारियों ने गत वर्ष एक रपट जारी की थी जिसमें प्राकृतिक आपदाओं को वहां के निवासियों के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया गया था। इनमें सूनामी, भूकंप और ज्वालामुखी प्रमुख थे। इस बहुरंगी चार्ट में स्टेट इमरजेंसी मैनेजमेंट एजेंसी ने जंगल की आग से मानव जीवन को उत्पन्न होने वाले खतरे का जिक्र सबसे अंत में करते हुए उसे ‘लो’ माना था।
इन पंक्तियों के लिखे जाने तक मृतकों की संख्या 89 हो चुकी है और इसमें बढ़ोत्तरी होना निश्चित है। वहीं लहेना के पुननिर्माण पर 5.52 अरब डॉलर का खर्च होने का अनुमान है। एक वजह लापरवाही भी थी। लोगों को आग के खतरे की चेतावनी देने के लिए जो सायरन लगाए गए थे वे बजे ही नहीं। आपात स्थिति के जो संदेश मोबाइल फोनों पर और टीवी व रेडियो पर प्रसारण हेतु भेजे किए गए वे बिजली कटने की वजह से पहुंच ही नहीं सके।
सूखे, ज्वलनशील पदार्थों की अधिक मौजूदगी, तेज हवाओें और लापरवाही – इन सबको त्रासदी का कारण माना जा रहा है। लेकिन क्या हम इससे कुछ सबक लेंगे? विनाशकारी आगें अब आम होती जा रही हैं – अमेजन वनों से लेकर सरिस्का तक, लगभग हर महाद्वीप में तापमान बढ रहा है, और सूखे के हालात लगभग हमेशा रहते हैं। भविष्य लपटों भरा है! हमारे शहरों में तो खतरा और ज्यादा है। सभ्यताएं और इतिहास उजड़ रहे हैं, भविष्य में क्लाइमेट चेंज का असर कई गुना बढ़ने वाला है, लेकिन हमें क्या इसकी जरा सी भी फिक्र है? (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)