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क्या डेमोक्रेटस कमला के पीछे एकजुट?

क्या चुनाव की दौड़ से जो बाइडन के हटने से, डेमोक्रेटिक पार्टी जीत की दौड़ में आगे है? क्या डेमोक्रेट अपनी अंदरूनी खींचतान से ऊबर पाएंगे? क्या कमला हैरेस के पीछे पूरी पार्टी एकजुट खड़ी होगी

ये सब कठिन मगर महत्वपूर्ण प्रश्न हैं। डेमोक्रेट्स के लिए पिछला एक महीना काफी उथलपुथल भरा रहा है। उनमें आपसी फूट थी। अंदरूनी  झगड़े थे। जहां रिपब्लिकन पार्टी डोनाल्ड ट्रंप को दुबारा राष्ट्रपति बनाने के लक्ष्य के प्रति एकजुट और दृढ़ संकल्पित थी वहीं डेमोक्रेटस आपसी विवादों और अनिश्चितता में थे। 

जो बाइडन ने इन विवादों, अनिश्चितताओं और परेशानियों पर विराम लगा दिया है। उन्होंने अपनी भूमिका निभा दी है। उन्होंने मैदान छोड़ दिया है। इस मौके का फायदा उठाकर हालात को पटरी पर लाने का काम अब डेमोक्रेटस को करना है। बीते कल की उथलपुथल का दुष्प्रभाव भविष्य पर न हो यह उन्हें सुनिश्चित करना होगा। राष्ट्रपति जो बाइडन की पसंद कमला हैरेस हैं। ऐसा लग रहा है कि कमला ने कई अन्य डेमोक्रेटस का समर्थन भी हासिल कर लिया है और यह मान कर चला जा सकता है कि वे ही डेमोक्रेटिक पार्टी की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार होंगीं। बाइडन की मैदान छोड़ने की घोषणा के कुछ घंटों के अंदर ही हैरेस और डेमोक्रेटिक पार्टी ने आनलाइन चंदे और बड़े दानदाताओं के चंदा देने के वायदों के रूप में करीब 25 करोड़ डालर पाए है।  खबरों के मुताबिक, करीब नौ लाख छोटे दानदाताओं ने हैरेस के चुनाव अभियान के लिए चंदा दिया है।

जिस तरह हैरेस को बड़े पैमाने पर समर्थन मिल रहा है, उससे यह तो साफ है कि डेमोक्रेटस उनके साथ हैं। लेकिन उससे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि अंततः पार्टी ने डोनाल्ड ट्रंप का एकजुट होकर मुकाबला करने का संकल्प और उत्साह दर्शाया है। बाइडन, बिल क्लिंटन और कांग्रेस की ब्लैक काकस उनके नाम का अनुमोदन कर चुके हैं। लेकिन फिर भी उम्मीदवार चुनने के लिए पार्टी के सम्मलेन मे भाग लेने वालों को यह तो उम्मीद होगी ही कि उन्हें मनाया जाया, उनकी थोड़ी-बहुत खुशामद हो।

ऐसे में एक खुले अधिवेशन के आयोजन का आईडिया ठीक है। पार्टी के कई बड़े और प्रमुख नेताओं, जिनमें सीनेटर चार्ल्स शूमर और हकीम जेफ्रीज से लेकर पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा तक शामिल हैं, ने अभी तक चुप्पी साध रखी है। बराक ओबामा ने बाइडन के समर्थन में तो बयान जारी किए लेकिन हैरेस के नाम का अनुमोदन नहीं किया। उद्यमी और इन्वेस्टर विनोद खोसला ने एक्स पर ठीक ही लिखा हैं, ‘‘मैं चाहता हूं कि एक खुला अधिवेशन हो ना कि सीधे राज्याभिषेक कर दिया जाए। यक्ष प्रश्न यही है कि ट्रंप को हराने में सबसे सक्षम कौन है।”

अगले कुछ दिन डेमोक्रेट्स के लिए दिक्कत भरे हो सकते हैं। हालांकि एसोसिएटेड प्रेस द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार हैरेस को इतनी संख्या में डेमोक्रेटिक पार्टी के डेलिगेटों का समर्थन मिल चुका है कि वे ही डोनाल्ड ट्रंप के विरूद्ध उनकी पार्टी की उम्मीदवार होंगी। लेकिन अभी भी उनकी राह में एक बाधा है। विशेषज्ञों का मानना है कि कुछ प्रमुख डेमोक्रेट नेताओं द्वारा अभी तक उनके नाम का अनुमोदन न किए जाने का कारण यह नहीं है कि उन्हें हैरेस की काबिलियत को लेकर शंकाएं हैं या उन्हें लगता है कि कोई अन्य नेता उनकी उम्मीदवारी को चुनौती दे सकता है, बल्कि उसकी वजह यह है कि वे एक ऐसी दौड़ के नतीजे को प्रभावित करते नजर नहीं आना चाहते जो लड़ाई के अंतिम दौर में, बहुत देरी से हो रही है। 

ऐसा लगता है कि डेमोक्रेटिक पार्टी का सम्मेलन, जो संभवतः अगले माह होगा, में 1968 का घटनाक्रम दुहराया जाएगा। तब भी तत्कालीन राष्ट्रपति लिंडन बी. जॉनसन ने चुनावी मैदान से हटने का फैसला किया था और अपने उपराष्ट्रपति के नाम का अनुमोदन किया था – लेकिन उन्होंने ऐसा बाइडन की तुलना में चुनाव से कई महीनों पहले किया था। उस साल सीनेटर ह्यूबर्ट हम्फ्री ने शिकागो में अगस्त में हुए पार्टी के सम्मेलन में आसानी से पार्टी का नामांकन हासिल कर लिया लेकिन पार्टी एकजुट होकर उनके साथ नहीं थी। पार्टी सम्मेलन में उनकी जीत, वियतनाम युद्ध के संबंध में पार्टी के नजरिए को लेकर मची खींचतान और सम्मेलन स्थल के बाहर सड़कों पर हो रही हुई हिंसा के सामने फीकी पड़ गई। 

डेमोक्रेट नहीं चाहेंगे कि यह इतिहास दुहराया जाए, विशेषकर जब राष्ट्रपति पद की दौड़ पर एक नहीं बल्कि दो युद्धों का प्रभाव पड़ रहा है। वे 2020 में और फिर 2024 की शुरूआत में की गई गलती को नहीं दुहराना चाहेंगे जब उन्होंने यह मान लिया था कि ट्रंप को बाइडन ही हरा सकते हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि उपराष्ट्रपति के रूप में हैरेस का प्रदर्शन काफी फीका था। वे बाइडन जितनी ही अलोकप्रिय हैं। रायशुमारियों से पता लगता है कि ट्रंप का मुकाबला करने में वे बाइडन से बेहतर रही हैं लेकिन ट्रंप को जो छोटी सी बढ़त हासिल है वे उसे भी खत्म नहीं कर पाईं हैं – और चुनावी नतीजों को पलटने की क्षमता रखने वाले राज्यों में उनका प्रदर्शन और ज्यादा खराब रहा है। रिपब्लिकन अभी से अमेरिका की सीमा से जुड़े मसलों में उनकी भूमिका के लिए और अपने बॉस की कमजोरियों को छिपाने के लिए कमला पर हमलावर हैं।   

अमेरिकी लोकतंत्र का हित इसी में है कि कोई तीसरा, एकदम नया डेमोक्रेटिक उम्मीदवार दौड़ में शामिल हो जाए। इससे न केवल जोश और उत्तेजना बढ़ेगी और ट्रंप पर से लोगों का ध्यान कुछ हद तक हटेगा, बल्कि इससे एक सशक्त उम्मीदवार उभरेगा जो ट्रंप की चालबाजियों का मुकाबला बेहतर ढंग से कर सकेगा। 

जो बाइडन ने जो किया, वह लोकतान्त्रिक सिद्धांतों के अनुरूप था। क्या यह भी लोकतंत्र के हित में नहीं होगा कि डेमोक्रेटिक पार्टी लोकतंत्र को सशक्त करने के लिए लोकतांत्रिक तरीके से अपना उम्मीदवार चुने? सेकंड चांस में यदाकदा ही असफलता का मुंह देखना पड़ता है। डेमोक्रेटस को इस मौके का फायदा उठाना चाहिए। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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