राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

उबाऊ चुनाव में लौटा जोशो-खरोश!

क्या अमेरिका एक नई पटकथा लिखने जा रहा है? क्या ‘क्वीन ऑफ कमबैक’ कमला हैरेस, ‘कमबैक’ कर सकेंगी? क्या वे एक नस्लवादी, स्त्री-द्वेषी बुजुर्ग को हराने लायक जनसमर्थन जुटा सकेंगी?

उम्मीद तो है। और वह उम्मीद कुछ हद तक इच्छा से उभरी है। अर्थात हम वह होने की उम्मीद कर रहे हैं, जो हम चाहते हैं!

कमला हैरेस ने एक उबाऊ चुनाव में जोशो-खरोश और उत्साह फूँक दिया है। दो बड़े मियांओं की कुश्ती में किसे दिलचस्पी होगी? ऐसी कुश्ती में न तो मज़ा होता है और ना रोमांच, केवल बोरियत होती है। लेकिन कमला हैरेस के मैदान में उतरने से चुनाव दिलचस्प हुआ है। आखिरकार वे ‘क्वीन ऑफ कमबैक’ हैं और ‘कमबैक’ दिलचस्प और नाटकीय तो होता ही है।

मगर अति-उत्साह में हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि वे अभी डोनाल्ड ट्रंप से मुकाबले करने के लिए डेमोक्रेटिक पार्टी की संभावित उम्मीदवार ही हैं। अगस्त में होने वाले पार्टी के सम्मेलन तक बहुत कुछ बदल सकता है। मगर उम्मीदवार बनने में उनकी असफलता भी देखने लायक होगी।

59 साल की हैरेस कैलिफोर्निया से हैं और पेशे से वकील हैं। उनके माता-पिता अप्रवासी शिक्षाविद थे – पिता जमैका से और मां भारत से। वे बहुत महत्वाकांक्षी थी। वे पहले अपने राज्य की एटार्नी जनरल बनी और अंततः सीनेटर। वे अमेरिका की उपराष्ट्रपति बनने वाली पहली महिला, पहली अश्वेत अमेरिकी और पहली दक्षिण-एशियाई मूल की अमेरिकी है। उनकी पहचान, उनकी विरासत और उनका जीवन – सफलताओं और सिर्फ सफलताओं से भरपूर रहा है। हम बराक ओबामा के शानदार करियर के साक्षी हैं। लेकिन इस बात की संभावना कम है कि कमला का सफर उतना ही सुहावना होगा। उनके देर से हुए विवाह, उनकी मिश्रित नस्ल, उनकी चाल-ढाल और व्यवहार, उनका मुखरता से अपनी बात कहने का अंदाज, बे एरिया का उनका अतीत, जो दक्षिणपंथियों के नज़र में गंदगी और दुराचार से भरा है – इस सबको फेंटकर इस अश्वेत, एशियाई, महिला डेमोक्रेट उम्मीदवार की एक डरावनी मनोलैंगिक छवि बनाई जाएगी।  ट्रंप ने पहले ही उनकी पहचान को लेकर टीका-टिप्पणी करना शुरू कर दिया है – और यह अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने इसकी शुरूआत कैसे की होगीः हैरेस को यौन रिश्तों में शालीनता और नस्लीय व्यवस्था के लिए खतरा बताकर। इसी माह की शुरूआत में ट्रंप ने ट्रूथ सोशल पर पोस्ट करते हुए हैरेस के खिलाफ चलाए जाने वाले चुनावी अभियान का ट्रेलर दिखाते हुए इंटरनेट पर पहले चले इस घृणित दुष्प्रचार का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि हैरेस ने प्रभावशाली लोगों से शारीरिक संबंध स्थापित कर राजनीति में सफलता हासिल की।

उपराष्ट्रपति पद पर उनके कार्यकाल को लेकर भी उन्हें कटघरे में खड़ा किया जाएगा, जबकि वे इस दौरान ज्यादा नजर नहीं आईं। एक निष्प्रभावी उपराष्ट्रपति की उनकी छवि से वे चिंताएं एक बार फिर बढ़ गई हैं जो डेमोक्रेटिक पार्टी का नामांकन हासिल करने के लिए 2020 में किए गए उनके पहले प्रयास के दौरान उत्पन्न हुईं थीं – कि वे बाइडन की सर्वोत्तम और स्वाभाविक उत्तराधिकारी नहीं हैं। उपराष्ट्रपति के रूप में उनके पूरे कार्यकाल के दौरान उनकी एप्रूवल रेटिंग नीची रही और उन्हें अप्रवासी संकट (पिछले कुछ सालों में लाखों लोग अमेरिका आये हैं) के मूल कारणों जैसे राजनैतिक रूप से जटिल मुद्दों से निपटना पड़ा है। गर्भपात और अपराधों संबंधी घरेलू मसलों में उनकी नीतियां विभाजनकारी रही हैं।

इन मुद्दों पर होने वाले हमलों पर हैरेस की प्रतिक्रिया कैसी होती है और वह उनका मुकाबला किस तरह से करती हैं, यह देखना दिलचस्प होगा। वे अपने मन की बात खुलकर और बिना लाग-लपेट के कहने के लिए जानी जाती हैं। और यह सब मिलकर मसालेदार समाचार बनाएंगे।

यह माना जाता है हैरेस मीम्स के लिए बढ़िया विषय हैं। यह तब तक तो चल गया जब बाइडन, युवा मतदाताओं का समर्थन हासिल करने की जद्दोजहद में उलझे थे। मगर 2020 में डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति उम्मीदवार के चुनाव के लिए हुई प्राइमरीज में हैरेस का प्रचार अभियान एकदम सत्यानाशी था। ऐसा बताया जाता है कि इसका एक कारण यह था कि उनके युवा सहयोगियों ने ट्विटर को प्रचार का मुख्य जरिया बना दिया जबकि अधिकांश अमरीकी ट्विटर का इस्तेमाल नहीं करते।

हैरेस दुस्साहसी हैं। रो बनाम वेड मामले ने उन्हें चर्चा का विषय बनाया। फिलेडेल्फिया में उन्होंने यह रेखांकित किया कि कैसे सर्वोच्च न्यायालय का गर्भपात के मामलों में संरक्षण हटा देने का अनुपातहीन दुष्प्रभाव अश्वेत महिलाओं पर पड़ा। उन्होंने ध्यान दिलाया कि ‘‘प्रजनन योग्य आयुवर्ग की आधी से अधिक अश्वेत महिलाएं, जो महिलाओं की कुल संख्या का एक तिहाई हैं, ऐसे राज्य में रहती हैं जहां गर्भपात पर पाबंदी है – और जो पाबन्दी ट्रम्प ने लगाई है”। इस बात की प्रबल संभावना है कि उन्हें अरब-अमेरिकियों का समर्थन हासिल होगा जो गाजा युद्ध में इजराइल का समर्थन करने के लिए बाइडन से नाराज हैं। बाइडन के विपरीत हैरेस का रवैया फिलिस्तीनियों के प्रति अधिक सहानुभूतिपूर्ण है।

कुल मिलाकर हैरेस भले ही एक प्रभावशाली नेता न हों, देश को चलाने के संबंध में उनके पास अपनी कोई योजना न हो (क्योंकि वह योजना बाइडन की नीतियों का ही विस्तार होगी), उनका व्यक्तित्व करिश्माई न हो और वे नजरों से ओझल रही हों, लेकिन वे ट्रंप और बाइडन दोनों से बेहतर विकल्प बेहतर साबित होंगीं। जैसे बराक ओबामा ने जार्ज डब्ल्यू बुश के आठ साल के कार्यकाल में हाशिये पर धकेल दिए गए वर्गों का समर्थन हासिल किया था, उसी तरह वे उन लोगों को गोलबंद कर सकतीं हैं जो ट्रम्प के चार साल के कार्यकाल से खफा हैं।

जो अमेरिका हताशा से राष्ट्रपति पद के लिए दो वृद्धों के बीच चल रही टक्कर देख रहा था, की दिलचस्पी चुनाव में बढ़ गई है। रंगमंच पर हैरेस के आने से अमेरिकियां में एक नई ऊर्जा आ गई है, जो अपने मताधिकार क्षरण, एफिरमेटिव एक्शन के तहस-नहस होने और महिलाओें के अधिकारों में गिरावट के प्रत्यक्षदर्शी रहे हैं।2020 के चुनावों में 8 करोड़ 10 लाख अमेरिकियों ने हैरेस के पक्ष में मत देकर उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी थी कि यदि किसी भी कारण से राष्ट्रपति देश का नेतृत्व करने के लिए उपलब्ध न हों तो वे ऐसा करें। हो सकता है वे उनकी पहली पसंद न रही हों, लेकिन दुबारा जनता का समर्थन मांगने वाले नेता को जनता पसंद करती है। यदि वे जीतती हैं, तो यह कई अर्थों में ऐतिहासिक घटना होगी: वे देश का सर्वोच्च पद संभालने वाली पहली महिला, पहली अश्वेत महिला और एशियाई मूल की पहली व्यक्ति होंगीं। यही नहीं, वे ट्रंप को दूसरी बार दूसरे कार्यकाल से वंचित करेंगीं, और देश की लोकतंत्र-विरोधी शक्तियों पर प्रहार करने वाली सबसे महत्वपूर्ण राजनैतिक हस्ती बन जाएंगीं। और यह ओबामा के राष्ट्रपति बनने के बाद से, अमेरिका के लिए प्रसन्न होने और गर्व करने का एक और अवसर होगा। हम जानते हैं कि अमेरिका को नयापन और नयी कहानियां कितनी पसंद हैं। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें