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बाइडन ही है ट्रंप की काट!

जो बाइडन चुनाव मैदान में डटे रहेंगे। उन्होंने साफ़-साफ़ कह दिया है कि वे राष्ट्रपति पद की दौड़ से हटने वाले नहीं हैं। वे रणभूमि से पलायन करने के मूड में कतई नहीं हैं। वे अड़े हुए हैं। और उन्हें पूरा विश्वास है कि वे और केवल वे ही ट्रंप को धूल चटा सकते हैं।

लेकिन डेमोक्रेट, उदारवादी, डेमोक्रेटों को धन उपलब्ध करवाने वाले धन्नासेठ और सिलिकन वैली के शहंशाह घबराए हुए हैं, परेशानहाल हैं। वे चाहते हैं कि बाइडन किसी भी तरह राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी छोड़ दें।

आईये एक क्षण के लिए मान लेते हैं कि जो बाइडन दौड़ से बाहर हो चुके हैं। और डेमोक्रेट पार्टी का कोई और नेता – जिसमें ट्रंप से दो-दो हाथ करने के लिए न तो अक्ल है और न दृढ़ता – बाइडन का स्थान ले चुका है। मान लें कि वह नेता कमला हैरिस हैं। सीएनन-एसएसआरएस द्वारा डिबेट के कुछ दिनों बाद कराए गए जनमत संग्रह से पता लगा कि उपराष्ट्रपति कमला हैरिस, बाइडन की तुलना में ट्रंप का मुकाबला थोड़े बेहतर ढंग से कर पाएंगीं। हालाँकि यह अंतर इतना कम है कि वह कैलकुलेशन में गलती के कारण भी हो सकता है। मगर फिर भी वे ट्रंप से पीछे ही रहेंगीं।

उपराष्ट्रपति के तौर पर कमला हैरिस का कार्यकाल बहुत अच्छा नहीं रहा है। उम्मीदों और अनुमानों को झुठलाते हुए, उन्होंने लोगों को निराश किया। लेकिन इससे अधिक अहम मसला यह है कि उनकी अपनी पार्टी में उनकी स्वीकार्यता कितनी है, उन्हें कितना पसंद किया जाता है?  यह माना जा रहा है कि यदि हैरिस को उम्मीदवार बनाया जाता है, तो बड़ी संख्या में डेमोक्रेट पार्टी के सदस्य इसका कड़ा विरोध करेंगे। और विरोध करने वालों में अश्वेत महिलाएं भी शामिल होंगीं, जिनके समर्थन के बिना पार्टी चुनाव में जीतने की उम्मीद नहीं कर सकती।

यहां हमें यह याद रखना चाहिए कि अमेरिका अभी भी एक पितृसत्तामक समाज है, जो लैंगिक समानता की बड़ी-बड़ी बातें तो करता है, मगर उन पर अमल नहीं करता। इसलिए यूएसए को यूनाईटेड हिपोक्रेटिक (पाखंडी) अमरीका’ भी कहा जाता है। इसके अलावा, यदि उम्मीदवार का चयन खुले मुकाबले में होगा तो बहुत गड़बड़झाला होगा। विभिन्न गुटों के बीच जबरदस्त मुकाबला होगा, अहं के टकराव होंगे और डेमोक्रेटिक पार्टी के मतदाताओं की सीधी भागीदारी के बजाए सम्मेलनों में भाग लेने वाले प्रतिनिधि उम्मीदवार का चयन करेंगे।

जहां डेमोक्रेटों के बीच आपसी खींचतान और संघर्ष होगा, एक-दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयास होगा, वहीं दूसरी ओर ट्रंप और उनके समर्थकों के बीच उत्सवी माहौल होगा। ट्रंप अपने प्रतिद्वंद्वियों के आपसी संघर्ष का लाभ अपना समर्थन, स्वीकार्यता और पसंदगी बढ़ाने के लिए करेंगे। डेमोक्रेटस, जो पहले से ही हताशा की स्थिति में हैं, और अधिक हताश हो जाएंगे और इसका नतीजा होगा ट्रंप की जीत। अब सोचिए उन चीज़ों के बारे में जिन्हें करने की बात ट्रंप ने दुबारा राष्ट्रपति बनने पर की है।

वे अफरातफरी के हालात को और खराब कर देंगे। वे अपने पक्के दोस्त पुतिन से मिलने जाएंगे। अमेरिका का साथ मिलने से पुतिन और वहशी हो जाएंगे। उसके बाद ट्रम्प बीबी से मिलने जाएंगे और इजराइल का समर्थन करने की बात करेंगे। जाहिर है कि बीबी की बर्बरता और भयावह रूप ले लेगी। इजराइल के कट्टरपंथी प्रकाशन इजराइल हेयोम को दिए गए एक इंटरव्यू में ट्रंप ने कहा था “आपको काम खत्म करना है, उसे पूरा करना है। और हमें शांति हासिल करनी है”। ट्रम्प के मन में फिलिस्तीनियों के प्रति ज़रा सी भी सहानुभूति नहीं है। फिलिस्तीनी मर रहे हैं, इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। उनकी दुर्दशा से उन्हें कोई मतलब नहीं है।

अब अमेरिका के अन्दर क्या होगा, इस पर कुछ बात कर लें। उनके देश में ट्रम्प अशांति और बैचेनी पैदा करेंगे। उन्होंने पहले से ही अपने वफादारों को चुन रखा है, जिन्होंने उनके एजेंडे पर अमल की विस्तृत योजनाएं तैयार कर ली हैं। यह एजेंडा सत्ता एक व्यक्ति के हाथों में केन्द्रित कर देगा और वह भी एक ऐसे व्यक्ति के हाथों में जिसकी सत्ता की भूख  का कोई अंत नहीं है। क्या भयावह मंजर होगा! क्या बर्बादी का आलम होगा!

अब आज पर वापस लौंटे। इसमें कोई शक नहीं कि बाइडन चुनाव लड़ने के लिए फिट नहीं हैं। और पूर्ण विश्वास से यह नहीं कहा जा सकता कि उनमें अब ट्रंप को हराने की क्षमता है। वे डिबेट के पहले से ही लड़खड़ा रहे थे और यदि वे डिबेट में अपने बुरे प्रदर्शन से उबरने में सफल भी हो गए, तब भी लड़खड़ाते रहेंगे। लेकिन फिर भी अगर दांव ही लगाया जाना है, तो उनसे बेहतर कोई नहीं है। ट्रंप ने जो बर्बादी की थी, अमेरिका में जिस तरह के उथल-पुथल भरे हालात बना दिए थे, उनसे बाइडन ने देश को उबारा।  उन्होंने अमरीकनों को उनका अमेरिका वापस लौटाया।

देश के माहौल को ज्यादा खुला, ज्यादा खुशनुमा और आशाजनक बनाया। उन्होंने अर्थव्यवस्था में नयी जान फूंकी। जब तक नेतन्याहू ने अपनी सत्ता और खुद को बचाने के लिए निर्मम रवैया नहीं अपनाया था, तब तक दुनिया में शांति का राज था। और बाइडन ही वे एकमात्र व्यक्ति हैं जो ट्रंप के विनाशकारी प्रवृत्ति, बदला लेने की उनकी आदत और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उन्हें एक के बाद एक दी जा रही छूटों का डटकर मुकाबला कर सकते हैं।

जैसा कि न्यूयार्क टाईम्स में एक स्तंभकार ने लिखा, “मुझे इस बात की कोई चिंता नहीं है कि एक 81 वर्षीय व्यक्ति, 81 वर्ष के व्यक्ति जैसा दिख रहा है, उसकी तरह व्यवहार कर रहा है। लेकिन मुझे चिंता उन बातों की है जो दुबारा राष्ट्रपति बनने पर ट्रंप कर करेंगे, जिन्हें करने का वादा उन्होंने किया है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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