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अमेरिका में कहानी बदली?

डेमोक्रेटिक पार्टी का राष्ट्रीय सम्मेलन (डीएनसी) सचमुच एक थ्रिलर था। उसमें नाटकीयता थी, उल्लास था, दुःख और खुशी के आंसू थे और खूब शोर-शराबा तथा कोलाहल था। और मीम्स, रील्स और जीआईएफ्स के लिए ढेर सारा मसाला भी। सेलिब्रिटीज और राजनीतिज्ञों की मौजूदगी के बावजूद बहुत से आम लोग भी डीएनसी के मंच पर आए। उन्होंने अपनी पीड़ा और व्यथा, अपनी उम्मीदें और अरमान जाहिर किए। गाजा के लोगों के समर्थन में हो रहे प्रदर्शनों की पृष्ठभूमि में संगीतकार एवं गायक स्टीव वंडर ने वहां मौजूद लोगों से कहा, “गुस्से की बजाय आनंद का वरण करें।” सही में अर्श से लेकर फर्श तक असली प्रजातंत्र का सम्मेलन में मजा था।

आज डेमोक्रेटिक पार्टी का चार-दिवसीय सम्मेलन समाप्त होगा। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक टिम वाल्ज़ जोशीले भाषण के बाद, तालियों की गड़गड़ाहट के बीच पार्टी के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार का नामांकन स्वीकार कर चुके थे। आज ही देर रात कमला हैरिस भी जोश एवं जबरदस्त उम्मीदों से लबरेज सभाकक्ष में राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी स्वीकार करेंगीं। इसके बाद व्हाईट हाउस के लिए दौड़ आधिकारिक रूप से प्रारंभ होगी। यह डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए एक नई सुबह जैसा होगा। एक माह पहले तक जो पार्टी कमजोर, विभाजित और अस्त-व्यस्त नजर थी और लग रहा था कि वह डोनाल्ड ट्रंप से मुकाबले में बहुत पिछड़ रही है, वह इन चार दिनों के पुनर्जीवित होती और उत्साह भरी लग रही है। स्थिति में आया यह जबरदस्त सुधार, जो बहुत जरूरी था, अद्भुत और विलक्षण है।

डेमोक्रेट्स नें आखिकार ट्रम्प कैंप पर ज़ोरदार हमला बोल दिया। डीएनसी की इन चार रातों में काफी मजबूती से  डोनाल्ड ट्रंप पर तीखे प्रहार हुए।

राष्ट्रपति बाइडन की राजनैतिक पारी की अश्रुपूर्ण और भावुकतापूर्ण विदाई के साथ-साथ सम्मेलन में कई अनुभवी और पुराने नेताओं की तीखी टिप्पणियां सुनने को मिलीं – हिलेरी से लेकर बराक और बिल तक की, जिन्होंने ट्रम्प के परखच्चे उड़ने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। उनके हमले तीखे होते हुए भी विनोदपूर्ण थे; उनके कटाक्ष ट्रम्प को आईना दिखने वाले थे। सम्मेलन में ट्रंप पर जोरदार और पूरी ताकत से हमला बोला गया। इन पुराने नेताओं ने ट्रम्प का जम कर मखौल बनाया और हाल के अन्दर और बाहर के लोगों ने इसका भरपूर मज़ा लिया।

बराक ओबामा अब भी जीक्यू (अमेरिका की एक प्रसिद्ध फैशन पत्रिका) के मुखपृष्ठ पर छपने लायक दिख रहे थे। उन्होंने जब ट्रम्प के “भीड़ के आकार के प्रति सनक की हद तक कि आसक्ति” का ज़िक्र किया, तो भीड़ लगभग पागल हो गई। जब 78 वर्षीय बिल क्लिंटन (जो आज भी उतने ही स्फूर्ति भरे हैं जितने 40-45 की उम्र में थे) ने मजाकिया लहजे में कहा कि वे अभी भी डोनाल्ड ट्रंप से कम उम्र के हैं, तो सभा भवन ठहाकों में डूब गया और सबसे जोरदार ठहाके युवाओं के थे। उन्होंने क्लिंटन के इस कथन पर सिर हिलाकर सहमति दर्शाई, कि “जब आप अगली बार ट्रंप को भाषण देते हुए सुनें तो उनके झूठों को मत गिनना बल्कि यह गिनना कि वे कितनी बार ‘मैं‘ कहते हैं”। जब मिशेल ओबामा ने कहा ‘‘उन्हें यह कौन बताएगा कि वे इस समय जो पद हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं, उस पर अश्वेतों का हक है” तो भीड़ ने जबरदस्त नारेबाजी करके अपनी सहमति व्यक्त की। लेकिन सबसे ज़ोरदार तालियाँ तब बजीं जब हिलेरी क्लिंटन ने कहा कि कमला हैरिस अमेरिका की पहली महिला राष्ट्रपति बनकर एक मज़बूत दीवार को धराशायी करेंगी।

प्रतिद्वंद्वी पर किए गए इन हमलों के साथ ही कमला हैरिस-वेल्ज़ के प्रति सर्वसम्मत और दृढ़ समर्थन का इजहार भी है। हर डेमोक्रेट ने वाकपटुता के साथ कमला हैरिस की योग्यताओं और व्यक्तित्व, अर्थव्यवस्था संबंधी उनकी योजनाओं और स्वास्थ्य सेवाओं व गर्भपात जैसे मसलों, जिन पर पार्टी को जनता का व्यापक समर्थन हासिल है, की चर्चा की।

शिकागो से उत्सर्जित हो रही ऊर्जा ने दिल्ली के मेरे कमरे को टेलीविज़न से निकल रहे नीले और लाल रंगों से सराबोर कर दिया। कमला हैरिस के राष्ट्रपति बनने की सम्भावना से भीड़ उन्मादित लग रही थी। ऐसा लग रहा था मानों सबको यह विश्वास था कि दुनिया के सबसे पुराने प्रजातंत्र की सबसे पुरानी पार्टी मुकाबले के लिए पूरी तरह तत्पर और तैयार है।

शिकागो खुशी का माहौल बना हुआ है। इसी शहर में 1968 में हुए अराजकतापूर्ण सम्मेलन की कहानी दुहराए जाने का भय लगभग खत्म है। तब की कड़वाहट और मतभेदों के विपरीत इस बार एकता और उत्साह नजर आ रहा है। बुजुर्ग और पुराने नेताओें ने बहुत खूबसूरती और परिष्कृत ढंग से वह किया जिसे करने की अपेक्षा उनसे लंबे समय से की जा रही थी। उन्होंने अपने समय के हास-परिहास और हल्के-फुल्के माहौल को पुनर्जीवित कर दिया जो निराशा, असंतोष और घबराहट के बीच कहीं गुम हो गया था। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि 1968 के इसी शहर में हुए उथल-पुथल भरे सम्मेलन की कहानी इस बार न दुहराई जाए। उन्होंने पार्टी और उसके युवा मतदाताओं और समर्थकों को उत्साह से भरने और उनमें नई उम्मीदें जगाने वाली टिप्पणियां कीं। मगर उम्मीद के साथ सावधान रहने की ज़रुरत पर भी बल दिया गया और जीत सुनिश्चित मान कर घर बैठने के खिलाफ चेताया गया।

डीएनसी से अमेरिका के आने वाले 75 दिन कैसे होंगे, इसका प्रीव्यू दे दिया है। वे रोमांचक और उत्तेजक होंगे और उम्मीद भरे व कष्टपूर्ण भी। कटु हमले होंगे, दोनों पक्ष एक-दूसरे पर हमलावर होंगे, पुराने को त्यागा जायेगा और नए को गले लगाया जायेगा। माहौल सनसनी भरा होगा। जो बाइडन की उम्मीदवारी से जुड़ा विषाद समाप्त हो चुका है क्योंकि ओपिनियन पोल्स स्विंग वाले राज्यों में हैरिस को रिपब्लिकन उम्मीदवार ट्रंप से थोड़ा आगे बता रहे हैं। हैरिस का समर्थन करने वालों की संख्या बढ़ रही है।

मगर यह सवाल है कि क्या उत्साह कायम रहेगा? राजनीति में कुछ भी हो सकता है। लेकिन एक बात निश्चित है यह चुनाव अन्य चुनावों से अलग होगा। और इसका नतीजा आश्चर्यजनक होगा, जो बहुत लंबे समय से नहीं हुआ है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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