दुनिया को बदलाव के दौर के लिए अपनी कमर कस लेनी चाहिए। डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति चुने जा चुके हैं और वे व्हाइट हाउस के नए किरायेदार बनते ही “पूरे घर को बदल डालूँगा” के अंहकार में काम करने का निश्चय किए हुए है।
वे कईयों को नाराज़ करेंगे, उथल-पुथल मचाएंगे और शायद इजराइल व रूस को मनमानी करने देंगे। यूरोप बहुत परेशान रहेगा।, दुनिया में अति दक्षिणपंथियों का हौसला बढ़ेगा। दुनिया के शक्ति संतुलन में बदलाव आएगा। ट्रंप मार्का आर्थिकी की वापसी होगी। अंतर्राष्ट्रीय रिश्ते पहले से ज्यादा इस हाथ दे, उस हाथ ले पर आधारित हो जाएंगे। जलवायु की स्थिति बदतर होगी। ट्रंप ने पहले ही साफ़ कर दिया है कि वे अमेरिका को क्लाइमेट चेंज संबंधी समझौतों से बाहर निकाल लेंगे। वे पेट्रोलियम और कोयले का उपयोग बढाएंगे। इससे दुनिया के तापमान में इज़ाफे को 1.5 डिग्री सेल्सियस से कम रखने की उम्मीदों पर पानी फिर जाएगा।
ट्रंप सत्ता से बेइंतिहा मोहब्बत करते हैं। जाहिर है ऐसा व्यक्ति खुशामादखोरों को पसंद करता है। वह कब क्या निर्णय लेगा, यह अंदाज़ा लगाना मुश्किल होता है। इस बार सीनेट पर उनका नियंत्रण होगा और इस बात की अच्छी-खासी संभावना है कि हाऊस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स पर भी उनका कब्ज़ा हो। सुप्रीम कोर्ट उन्हें उनकी मनमानी करने की इज़ाज़त दे देगा। उनके सर्वेसर्वा होने पर एक बार फिर भरोसा कायम हो जाएगा। वे मतदाताओं की क्षुद्रतम प्रवृत्तियों को प्रश्रय देंगे। उन्हें रोकने वाले ‘समझदार’ लोगों की संख्या बहुत कम होगी।
उनकी जीत का जश्न मनाने के लिए आयोजित कार्यक्रम का नज़ारा दरबार जैसा था, ना कि कैबिनेट जैसा। एलन मस्क जबरदस्त राजनैतिक प्रभाव रखने वाले उद्योगपति नजर आ रहे थे। यह अपेक्षित है कि उनके समर्थक अपनी-अपनी योजनाओं अमल करेंगे। अमेरिका, गॉडफादर और आजाद दुनिया का जरूरी व भरोसेमंद देश नहीं रह जाएगा। बल्कि अगले चार सालों में यह भी हो सकता है कि वह सबका प्रतिद्वंद्वी बन जाए।
हालांकि यह सब आने वाले समय का पूर्वानुमान मात्र हैं क्योंकि ट्रंप ने कभी भी विदेश नीति संबंधी अपनी योजनाओं और विचारों की स्पष्ट व्याख्या नहीं की है। वे दुनिया भर में किस प्रकार हस्तक्षेप करेंगे, यह बहस का मुद्दा है। उनकी अपनी पार्टी में विभिन्न समूह अलग-अलग नजरिया रखते हैं। कुछ संयम रखने के पक्षधर हैं और चाहते हैं कि अमेरिका न्यूनतम हस्तक्षेप करे। कुछ कुछ का जोर इस बात पर है कि अमेरिका को पूरी दुनिया का शहंशाह बना रहना चाहिए।
लेकिन ट्रंप की अस्थिर मति और उनके अहंकार के कारण अव्यवस्था होना अवश्यम्भावी है। ट्रंप इस बात पर गर्व करते हैं कि उनकी छवि एक शक्तिशाली व्यक्ति की है। उनके चार साल के कार्यकाल के दौरान कोई युद्ध नहीं हुआ। लेकिन उनके डावांडोल रवैये के चलते कई नए युद्ध प्रारंभ हो सकते हैं, अस्थिरता और अराजकता उत्पन्न हो सकती है। इसकी सबसे अधिक संभावना ईरान के सन्दर्भ में है। यदि ईरान परमाणु अस्त्र संपन्न शक्ति बनने का प्रयास करता है, तो वह अमेरिका की सख्त प्रतिक्रिया की अपेक्षा कर सकता है। ट्रंप, ईरान के ऐसा फैसला करने के पहले ही इजराइल की मदद से उस पर हमला कर सकते हैं। अब जबकि बाइडन – जिन्होंने ईरान से जंग टालने का हर संभव प्रयास किया – पद छोड़ने जा रहे हैं, ईरान काफी कमजोर दिख रहा है। तेहरान को एक ऐसे अमेरिकी राष्ट्रपति का सामना करना पड़ेगा जिसकी हत्या का प्रयास करने का उस पर आरोप है और जिसने चार साल पहले भी – जब ईरान अभी की तुलना में अधिक शक्तिशाली था – यह साफ कर दिया था कि उसे ईरान से युद्ध का जरा सा भी भय नहीं है।
इस बीच दुनिया के अन्य हिस्सों में लोकलुभावन रवैये वाले नेता पुनर्जीवित होने लगेंगे। उदारवादी लोकतंत्रों की घेराबंदी होगी और दादागिरी करने वालों का बोलबाला होगा। विभिन्न देश परिणाम की परवाह किए बिना अपने पड़ोसियों से आर्थिक व सैन्य दृष्टि से धौंस-धपट करने में अधिक समर्थ होंगे। अमेरिका से मदद की उम्मीद न होने की वजह से इन पड़ोसी देशों के समझौता करने या झुकने की संभावना बढ़ जाएगी।
ट्रंप ने वॉल स्ट्रीट जर्नल के संपादक मंडल से अक्टूबर में कहा था उन्हें ताईवान के मसले को लेकर चीन को अमेरिका द्वारा सैन्य शक्ति का इस्तेमाल करने की धमकी नहीं देनी पड़ेगी क्योंकि “शी जिन पिंग मेरी इज्जत करते हैं और जानते हैं कि मैं सनकी हूं”।
इसी तरह उनका दावा है कि उन्होंने रूसी राष्ट्रपति पुतिन से कहा था, “व्लादिमीर, अगर आपने यूक्रेन को निशाना बनाया तो मैं आप पर इतना ज़ोरदार प्रहार करूंगा जिसकी आप कल्पना तक नहीं कर सकते। मैं मास्को के केन्द्रीय इलाके पर हमला करूंगा”।
वर्तमान बाइडन प्रशासन कई वैश्विक संकटों को अनसुलझा – और कुछ को पूरे जोरशोर से जारी – छोड़कर जा रहा है। इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि ट्रंप राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी महत्वपूर्ण पदों पर किन व्यक्तियों को नियुक्त करते हैं। लेकिन एक बात निश्चित है, जो एक बात उनके 45वें राष्ट्रपति रहने और अब 47वें राष्ट्रपति बनने पर अपरिवर्तित रहेगी, और वह यह कि राष्ट्रपति के रूप में उनके क्रियाकलापों में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होगी, उनके सलाहकारों की नहीं। और उनकी विदेश नीति यही होगी कि जो देश सुरक्षा चाहता है वह अमेरिका को रंगदारी टैक्स चुकाए।
सन् 2016 की दुनिया में आपका दुबारा स्वागत है। आपको आने वाला समय 2016 से बहुत अलग महसूस नहीं होगा, सिवाए इसके कि वह अधिक उथल-पुथल भर और पहले से ज्यादा बुरा होगा। आज की जोखिम, कल के प्राणलेवा बन जाएंगे। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)