सब कुछ वैसा ही हुआ, जैसा सोचा जा रहा था। उर्सुला वॉन डेर लेन ने फिर से यूरोपीय आयोग यानी ईसी के अध्यक्ष के रूप में पांच साल का दूसरा कार्यकाल हासिल कर लिया है। यूरोपीय संसद ने 284 के मुकाबले 401 वोट से उनके नाम पर मुहर लगाई। 15 सदस्य गैरहाजिर रहे। अब तक ईसी का कोई अध्यक्ष दूसरी बार निर्वाचित नहीं हुआ था। हालांकि उनकी राह में बाधाएं थीं। 27 ईयू नेताओं का समर्थन उनको पहले से हासिल था। लेकिन यूरोपीय संसद के अनुमोदन की उन्हें आवश्यकता थी। और वहां हालात उनके अनुकूल नहीं थे। लेकिन गुरुवार को हुए मतदान में उन्होंने वहां अनुमोदन हासिल कर लिया।
उर्सुला, जो एक जर्मन राजनेता हैं, को गुरूवार को होने वाले मतदान में संसद के 720 सदस्यों में से आधे से ज्यादा, मतलब कम से कम 361, के समर्थन की जरुरत थी और उनको 401 वोट मिले। तीन राजनीतिक समूहों के समर्थन की उम्मीद उनको पहले से थी। इन तीनों को संयुक्त रूप से पिछले महीने हुए चुनाव में बहुमत हासिल हुआ था और इन समूहों ने 2019 में भी उनका समर्थन किया था। ये हैं उनकी स्वयं की मध्य-दक्षिणपंथी यूरोपियन पीपुल्स पार्टी या ईपीपी, जिसकी 188 सीटें हैं, सोशलिस्ट, जिसकी 136 सीटें हैं और उदारवादी रिन्यू, जिनकी 77 सीटें हैं।
लेकिन राजनीतिक उठापटक जोरों पर थी।
तीनों समूहों के कई सांसदों ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि वे वॉन डेर लेन का समर्थन नहीं करेंगे। इनमें ईपीपी समूह की फ्रांस की रूढ़िवादी कंजरवेटिव रिपब्लिकन पार्टी, जर्मनी, आयरलैंड और रोमानिया के उदारवादी तथा फ्रांस और इटली के सोशलिस्ट और कुछ अन्य सांसद शामिल थे। साथ ही, चूंकि मतदान गोपनीय होता है इसलिए इस बात की भी संभावना थी कि कुछ सांसद सार्वजनिक रूप से उनका समर्थन करेंगे मगर स्ट्रासबर्ग में मतदान के समय ‘नो’ का बटन दबाएंगे।
असल में सैद्धांतिक तौर पर अधिकांश देशों के नेता उर्सुला वॉन डेर लेन को पसंद करते हैं। उन्होंने कई देशों द्वारा संयुक्त रूप से दिए गए ऋण से पोस्ट पैनडेमिक रिकवरी फंड बनाकर दक्षिण यूरोपीय देशों को संतुष्ट कर दिया, वहीं उत्तरी यूरोप के देशों की क्लाइमेट चेंज सम्बंधी चिंताओं की ओर भी ध्यान दिया। पूर्वी यूरोप के देश, यूक्रेन के प्रति उनके दृढ़ समर्थन से खुश हैं। जर्मनी के ओलाफ स्कोल्ज, विरोधी पार्टी के होने के बावजूद अपनी हमवतन का समर्थन करेंगे। जो एकमात्र नेता उनकी जबरदस्त खिलाफत करते आ रहे हैं वे हैं हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान। कई नेता कुछ अन्य मुद्दों के चलते उर्सुला वॉन डेर लेन के खिलाफ हैं, जैसे पोलैंड के डोनाल्ड टस्क, जो उनके ही समूह के हैं लेकिन जिन्हें हाल में उनके द्वारा करवाया गया अप्रवासियों संबंधी समझौता पसंद नहीं आया। स्पेन के पेड्रो सांचेज भी उनके इजराइल समर्थक रवैए के कारण उनके खिलाफ हैं।
परंतु उर्सुला में विचारधारात्मक दृढ़ता का अभाव उन्हें खतरनाक बनाता है। सन 2019 में ईयू के नेता यूरोपीय संसद पर उन्हें इसलिए थोप सके थे क्योंकि उस समय वे एक अनजान व्यक्ति थीं। मगर अब ऐसा नहीं है। ईसी में अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान उन्होंने जलवायु सम्बंधी मुद्दों सहित अन्य मामलों में वामपंथ की ओर झुकाव दिखाया। मगर फिर वे दक्षिणपंथ की ओर झुक गईं और उन्होंने ईयू की अप्रवासी नीति में अप्रवासियों को रवांडा रवाना करने जैसी योजनाओं का समर्थन किया। उनके गुण और उनकी कमियां सबके सामने हैं। कोविड महामारी के दौरान उनकी कमियां सामने आईं तो रूस के यूक्रेन पर हमले के मामले में उनके गुण। उर्सुला निःसंदेह यह दावा कर सकतीं हैं कि उन्होंने कई सफलताएं हासिल की हैं, खासतौर पर इसलिए क्योंकि उनका अधिकांश कार्यकाल संकटों का मोचन करने में बीता। वे हर संकट पर प्रतिक्रिया देती रहीं हैं और कई मामलों में उन्होंने संकट से निपटने की ज़िम्मेदारी यूरोपीय आयोग में शामिल विभिन्न राष्ट्रों के नेताओं पर छोड़ दी, जिससे आयोग के अध्यक्ष चार्ल्स मीशेल से उनकी प्रतिद्वंदिता हो गई। यह उनके लिए नुकसानदायक है।
फिर दुनिया में चल रहे दो युद्धों के मामले में उनका रुख का मसला भी है। वे यूक्रेन के मामले में जेलेंस्की का समर्थन कर रही हैं मगर गाजा युद्ध के मामले में वे पूरी तरह नेतन्याहू के साथ हैं। इस कारण भी उनकी आलोचना हुई।
मगर दुनिया और उनके पुनर्निर्वाचन के बारे में व्याप्त अनिश्चितता से उन्हें फायदा हुआ। डोनाल्ड ट्रम्प की अमेरिका के राष्ट्रपति के तौर पर वापसी की सम्भावना है, यूक्रेन का युद्ध समाप्त होने का नाम नहीं ले रहा है, यूरोप में अति-दक्षिणपंथियों का दबदबा बढ़ रहा और एक आर्थिक ताकत के रूप में यूरोपीय संघ कमजोर हो रहा है। ऐसे में यूरोप एक नए नेता को चुनने की जोखिम नहीं ले सकता था।
तभी इस बात की काफी सम्भावना थी कि उर्सुला वापस आ जाएंगी। मगर इससे ईयू के अंदर व्याप्त अनिश्चितता और असंतोष खत्म नहीं होगा। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)