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तो गाजा के फिलीसस्तीनी इंडोनेशिया जाए?

Gaza PalestiniansImage Source: ANI

Gaza Palestinians : गाजा  और फिलिस्तीनी, दोनों का एक ही सवाल है, इनका भविष्य क्या है?

बहुत से फिलिस्तीनी अपने घरों को वापस लौट रहे हैं। हालाँकि वे घर मलबे का ढेर हैं। लोगों के मन में गम है, गुस्सा है पर लाचार है। वे एक ऐसी जगह पर लौट रहे हैं जिसका भविष्य अनिश्चिततापूर्ण है।

यह अनिश्चितता अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इस टिप्पणी से और बढ़ी है कि वे “पूरे मसले को साफ़ कर देना चाहते  हैं”।

ट्रंप का मतलब है कि फिलिस्तीनियों को गाजा छोड़ देना चाहिए ताकि पूरी गाजा पट्टी ‘साफ’ हो जाए। वे चाहते हैं कि इस इलाके पर जोर्डन और मिस्र का नियंत्रण हो।

राष्ट्रपति ने फिलिस्तीनियों के प्रति सहानुभूति व्यक्त करते हुए कहा है कि वे किसी ऐसी जगह बसे जहां वे महफूज हों और चैन से ज़िन्दगी बसर कर सकें।(Gaza Palestinians)

अमेरिकी राष्ट्रपति अपने इस इरादे को अमली जामा पहनाने के प्रति काफी गंभीर नजर आ रहे हैं। ऐसी खबरें हैं कि फिलिस्तीनियों को बसाने के लिए एक विकल्प बतौर इंडोनेशिया के नाम पर विचार है।

मिस्र और जोर्डन राजनैतिक और सुरक्षा संबंधी कारणों से गाजा को अपने नियंत्रण में लेने के इच्छुक नहीं हैं। जोर्डन में पहले से ही दसियों लाख फिलिस्तीनी रह रहे हैं और दसियों हजार फिलिस्तीनी मिस्र में हैं।

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इसलिए ये दोनों देश और अन्य अरब देश भी गाजा में रह रहे फिलिस्तीनियों को अपने यहाँ बसाने के प्रस्ताव को खारिज कर चुके हैं।

मिस्र और जोर्डन यह बात जानते हैं कि अतीत में जब भी इजराइल की कारण फिलिस्तीनियों का विस्थापन हुआ है –  चाहे वह जोर्डन, लेबनान, सीरिया या गाजा कहीं भी किया गया हो – उन्हे फिर कभी भी वापिस नहीं भेजा जा सका है।

यह बात उस युद्ध के बारे में भी सही है जिसके नतीजे में 1948 में इजराइल अस्तित्व में आया था।(Gaza Palestinians)

ट्रंप के प्रस्ताव का इजराइल में ज़ोरदार स्वागत किया जा रहा है। इजराइली दक्षिणपंथी लंबे समय से यही विचार पेश करते आ रहे हैं।

सन् 1967 के छह दिन के युद्ध, जिसमें इजरायली सुरक्षा बलों ने पहली बार गाजा पट्टी पर कब्जा किया था (तब तक वहां मिस्र की फौजी का राज था)  के बाद के दशकों में इजराइली अधिकारी और टिप्पणीकार समय-समय पर इस विचार को आगे बढ़ाते रहे हैं कि गाजा के फिलिस्तीनियों को मिस्र में बसाया जा सकता है।

यह प्रस्ताव हाल में, गाजा युद्ध के प्रारंभ होने के कुछ हफ्ते बाद लीक हुए इजराइल के खुफिया विभाग के एक खुफिया दस्तावेज में भी रखा गया था।

कोई नीति या रणनीति नहीं(Gaza Palestinians)

डोनाल्ड ट्रंप के इस प्रस्ताव से ऐसा लगता है कि इस समस्या से निपटने के लिए उनके पास उनकी अपनी कोई नीति या रणनीति नहीं है।

वे इजराइल की भाषा बोल रहे हैं। वैसे उनकी और इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की मुलाकात अगले हफ्ते होने वाली है।

ट्रंप एक व्यापक समझौता करवाना चाहते हैं जिसका मुख्य लक्ष्य सऊदी अरब और इजराइल के संबंधों को सामान्य बनाना है।

मगर उनकी राह में बाधा खड़ी हो गई है क्योंकि रियाद इस बात पर अड़ा हुआ है कि फिलिस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र का दर्जा दिए जाने की दिशा में निर्णायक कदम उठाए जाएँ।(Gaza Palestinians)

ऐसा कोई भी प्रस्ताव जिसमें गाजा से एक नस्ल को पूरी तरह साफ़ कर देने की बात हो, समझौते के टूटने की वजह बन सकता है।

लेकिन ट्रंप प्रशासन को उम्मीद है कि यदि जबरदस्त दबाव डाला जाए या पर्याप्त अनुदान दिया जाए तो क्षेत्र के अंदर छोटे पैमाने पर या किसी दूरदराज के स्थान में बड़े पैमाने पर विस्थापन संभव हो सकता है।

फिलिस्तीनी अस्थायी विस्थापन के पक्ष में नहीं

मगर फिलिस्तीनी तो पुनर्निर्माण के लिए अस्थायी विस्थापन के पक्ष में भी नहीं है। क्योंकि 1948 में इजराइल के अस्तित्व में आने के बाद से उन्हें बार-बार विस्थापन की त्रासदी से गुजरना पड़ा है।

पन्द्रह माह चले युद्ध में गाजा का 70 प्रतिशत इंफ्ररास्ट्रक्चर तबाह हो चुका है। गाजा के 23 लाख निवासियों को भयावह मानवीय संकट का सामना करना पड़ रहा है।

इस महीने लागू हुए युद्धविराम के पहले तक 47,000 से अधिक लोग मारे जा चुके थे और करीब 90 फीसद रहवासी अपने-अपने घर छोड़ने को मजबूर हुए।

कई को एक से ज्यादा बार अपने घरबार छोड़ने पड़े हैं। यद्यपि अब हजारों फिलिस्तीनी उत्तरी गाजा में वापिस लौट रहे हैं, लेकिन उन्हें अपनी जिंदगी और घरों को पहले की स्थिति में लाने में कई साल लग जाएंगे।

अभी युद्धविराम लागू हुए केवल एक सप्ताह हुआ है और शांति की नाजुक डोर के कभी भी टूटने का खतरा बना हुआ है।(Gaza Palestinians)

फिलिस्तीनियों को एक दीर्घकालीन हल की दरकार है लेकिन क्या उन्हें वह कुछ भी हासिल हो सकेगा जो वे चाहते हैं? (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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