नए साल की शुरूआत खराब है। तिब्बत में भूकंप आया, दक्षिणी अमेरिका में बर्फीले तूफानों का प्रकोप हुआ तो पैसिफिक पैलिसेड्स (लॉस एंजेल्स या एलए) में जंगलों में आग का तांडव है। उत्तर भारत में धुंध भरी कड़कड़ाती सर्दी पड़ ही रही है। जलवायु परिवर्तन के भयावह नतीजे लगातार सामने आ रहे हैं।
मनुष्यों ने जब से तापमान नापना सीखा है, तबसे लेकर आज तक 2024 सबसे गर्म साल रहा है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा है, “हम पिछले एक दशक से घातक गर्मी का सामना कर रहे हैं”। जापान, भारत, इंडोनेशिया, चीन, ताईवान, जर्मनी और ब्राजील, सभी में अधिकतम तापमान के नए रिकार्ड कायम हुए। यह बढ़ती गर्मी अब पृथ्वी के वाटर साइकिल पर असर डालने लगी है। सन् 2024 में पानी से जुड़ी त्रासदियों और संकटों के कारण कम से 8,700 लोगों ने अपनी जानें गंवाईं, चार करोड़ लोग विस्थापित हुए और 550 अरब डालर से अधिक का माली नुकसान हुआ।
लास एंजिल्स इसलिए जल रहा है क्योंकि पिछले नौ महीनों के दौरान कोई खास बारिश नहीं हुई। तेज हवाएं सात जनवरी को कई जंगली आगों का कारण बनीं। इसी तरह, वैश्विक तापमान में वृद्धि से उत्तरी अमेरिका में बर्फीले तूफानों की संख्या बढ़ती जा रही है। अत्यंत ठंडी हवा का जो बवंडर सामान्यतः उत्तरी ध्रुव के आसपास आर्कटिक तक सीमित रहता है, आगे बढ़ने लगा है जिससे अमेरिका, यूरोप और एशिया में भयानक सर्दी पड़ने लगी है। इस बीच हमारे अपने देश में अभी दो धूप भरे दिनों का जश्न मनाया गया। किसी को भी इस बात अहसास नहीं है कि हालांकि उत्तर भारत का कोहरे की चादर में लिपट जाना और यहां ठिठुरन भरी सर्दी पड़ना सामान्य है लेकिन जो हो रहा है वह सामान्य नहीं है।
आंकड़ों के मुताबिक, 2024 के शुरूआती नौ महीनों में 90 प्रतिशत से अधिक दिनों में भारत में कम से कम एक “अत्यंत गंभीर जलवायु संबंधी घटना” जैसे बाढ़ या तूफान आना घटित हुई। उपलब्ध रिकार्डों के अनुसार, जुलाई से अक्टूबर तक की अवधि में 1901 के बाद का सर्वाधिक न्यूनतम तापमान दर्ज किया गया। दिल्ली के बाद अब मुंबई, पुणे और बंगलौर जैसे शहरों सहित दूसरे और तीसरे दर्जे के शहरों में भी हवा ज़हरीली हो रही है।
भारत में आगे चलकर जलवायु के हालात और बिगड़ने वाले हैं। भारत वैश्विक औसत से अधिक गर्म है। यह दुनिया का अपेक्षाकृत निर्धन इलाका है जहाँ 140 करोड़ लोग रहते है। आने वाले समय में ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्जन का वैश्विक स्तर चाहे जो भी हो और मोदी सरकार ने भले ही प्लास्टिक, बीएस तीन और बीएस चार वाहनों पर रोक लगा दी हो मगर आने वाले सालों में जलवायु संकट की स्थिति और बिगड़ना तय है। इंस्टिट्यूट फॉर ह्यूमन सेटलमेंट्स नाम की एक शोध संस्था के मुताबिक, जलवायु संबंधी परियोजनाओं पर होने वाला खर्च, जो 2015 में जीडीपी का 3।7 प्रतिशत था, 2021 में बढ़कर 5।6 प्रतिशत हो गया है। लेकिन इसे बहुत कम माना जा रहा है।
लेकिन भारत के लिए खर्च से अधिक महत्वपूर्ण है राजनीतिक इच्छाशक्ति और नई और पुरानी तकनीकों का अधिकाधिक इस्तेमाल। मगर हमारे यहाँ धार्मिक और क्षेत्रीय आधारों पर राजनीति की जा रही है और जानकारियों की जगह प्रोपेगेंडा ने ले ली है। कोई नहीं जानता कि 2024 की गर्म हवाओं में कितने लोगों ने अपनी जानें गवाईं, सिवाए इसके कि चुनावों के दौरान उत्तरप्रदेश में एक ही दिन में 33 मतदान अधिकारी इसके शिकार हुए। लेकिन जनता ऊंचे पहाड़ों और समुद्रों में स्थित धार्मिक स्थलों के पर्यटन में व्यस्त है। इस समय ठिठुरन भरी सर्दी चिंता का मुद्दा नहीं है बल्कि आप देख सकते हैं कि लोग ट्रेनों और बसों में लगभग एक दूसरे के ऊपर चढ़कर महाकुंभ में पहुंचने में जुटे हुए हैं।
ऐसा माना जा रहा है कि 2025 भी उतना ही गर्म होगा, जितना गुजरा साल था। शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि 2025 की मौसम संबंधी भविष्यवाणियों और वर्तमान स्थितियां यह संकेत कर रही हैं कि उत्तरी दक्षिण अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका और एशिया के कुछ हिस्सों में सूखे के हालात और बदतर होंगे। सहेल और यूरोप के अधिक वर्षा वाले इलाकों में बाढ़ का खतरा बढेगा। बल्कि शायद 2025, पिछले साल से भी अधिक झुलसानेवाला साल साबित हो सकता है। प्रशांत महासागर के ला नीना चरण में पहुंचने के बावजूद, जिसमें समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से कम रहता है और कुल मिलाकर अपेक्षाकृत ठंडक रहती है, तापमान अधिक रहने की संभावना है।
मगर भारत में जलवायु जनसरोकार नहीं है। लोगों को तूफानों, ठिठुराने वाली सर्दी और जलाने वाली गर्मी की कोई चिंता नहीं है। और अब जबकि 20 जनवरी को डोनाल्ड ट्रंप सत्ता संभालने जा रहे हैं, जलवायु संबंधी प्रयासों को बड़ा धक्का लगना निश्चित है। ट्रंप पहले ही कह चुके हैं कि उनका इरादा यह है कि अमेरिका को पेरिस समझौते से अलग कर दिया जाए। पेरिस समझौता जलवायु परिवर्तन संबंधी संयुक्त राष्ट्रसंघ के झंडे तले किया गया कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौता है। 2025 में युद्ध भी बढ़ेंगे, एक और सीओपी का आयोजन होगा- शायद अमेरिका के बिना – जहां केवल तस्वीरें खींची जाएंगीं, और इसी दौरान अमेजन सूखती जाएगी, प्रशांत महासागर के द्वीप गायब होते जाएंगे और आप और मैं चिलचिलाती गर्मी का शिकार होते रहेंगे। मौसम के ये मिजाज़ हमें बता रहे हैं कि हम क़यामत की और बढ़ते जा रहे हैं। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)