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थाईलैंड का करतबी नेता थाकसिन!

थाकसिन शिनवात्रा उस दौर में थाईलैंड के लोकलुभावन नेता थे जब लोकलुभावन बातें करने का फैशन नहीं था। वे एक पुलिस अधिकारी से टेलिकॉम सेक्टर के शहंशाह बने और फिर राजनीतिज्ञ। थाकसिन शिनवात्रा ने एक पार्टी बनाई – थाई रेक थाई (थाई लोग थाई लोगों से प्यार करते हैं) – और वे बहुत जल्दी गांवों में रहने वाले गरीबों और दबे-कुचलों में लोकप्रिय हो गए। सन् 2001 में उन्होंने एक बड़ी चुनावी जीत के जरिए सत्ता हासिल की। लेकिन 2006 में सेना ने उनका तख्ता पलट दिया और वे देश छोड़कर जाने को मजबूर हो जाए। लेकिन उनकी लोकप्रियता कायम रही। 

थाकसिन का कार्यकाल आर्थिक समृद्धि और बेहतरी के लिए जाना जाता है। उन्होंने ऐसी नीतियां लागू कीं जिनसे ग्रामीण क्षेत्र के निवासियों का जीवन स्तर बेहतर हुआ। उन्होंने सबके लिए स्वास्थ्य देखभाल योजना लागू की, विकास को प्रोत्साहन देने के लिए गांव के स्तर पर धन उपलब्ध करवाया और उद्यमिता को बढ़ावा देने वाली योजनाएं लागू कीं जिनसे देश को एशियाई आर्थिक संकट से उबरने में सहायता मिली। उनके कार्यकाल में ही थाईलैंड आईएमएफ का ऋण तय तारीख से पहले चुकाने में सफल रहा। वे जनता में सबसे अधिक लोकप्रिय थे किन्तु देश के दो प्रमुख सत्ता केन्द्र – सेना और राजपरिवार – उन्हें नापसंद करते थे। 

इसका नतीजा यह हुआ कि वे दिन पर दिन बाटों और राज करों की की पैतरेबाजी करने लगे।  थाकसिन और सेना व राज परिवार में उनके विरोधियों के बीच टकराव हुआ। थाईलैंड एक बंटा हुआ देश बन गया।  राजनैतिक उथलपुथल शुरू हुई। उनके कंज़रवेटिव आलोचकों ने उन पर भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरूपयोग के आरोप लगाए। उन पर सिद्धांतहीन होने और राजवंश को ज़रूरी इज्ज़त न देने का आरोप भी लगा। यह भी कहा गया कि उनसे राजपरिवार की सत्ता को खतरा है। 

तभी सेना ने दो बार तख्तापलट कर सत्ता कब्जाई। अदालतों ने बार-बार राजनीतिक दलों को भंग किया। कई नेताओं के राजनीति में भाग लेने पर पाबंदी लगा दी गई। लंबे समय तक बैंकाक की सड़कों पर विरोध प्रदर्शन होते रहे। सेना की कार्यवाहियों में थाकसिन के 90 से अधिक समर्थक मारे गए। 

थाकसिन को 2006 में हुए तख्तापलट में सेना ने सत्ता से हटाया। फिर वे कानूनी कार्यवाहियां से बचने के लिए 2008 में देश छोड़ बाहर जा बसे। लेकिन देश से बाहर रहने के बावजूद उनका प्रभाव बना रहा। सन् 2001 के बाद हुए हर चुनाव में उनसे जुड़ी पार्टियों ने सबसे ज्यादा सीटों पर जीत हासिल की – केवल इस साल हुए चुनाव को छोड़कर, जब लोकतंत्र समर्थक मूव फारवर्ड पार्टी ने सभी को चौंकाते हुए सबसे अधिक वोट हासिल किए। लेकिन जीत के बावजूद सेना की धांधली के चलते मूव फारवर्ड, सरकार नहीं बना सकी। काफी गतिरोध और अनिश्चितता के दौर के बाद 22 अगस्त को श्रेथा थाविसिन, जो प्रॉपर्टी के बड़े व्यवसायी और थाकसिन की फेऊ थाई पार्टी के उम्मीदवार थे, को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। सीधे शब्दों में सेना और थाकसेन की पार्टी के बीच ‘साझा सर्वसम्मति’ बनी ताकि नए दौर का प्रतिनिधित्व करने वाली मूव फारवर्ड पार्टी (हालांकि वह फिलहाल मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई है) को राजनीति और सत्ता से दूर रखा जा सके।

थाकसिन, जो पहले सत्ता प्रतिष्ठान के आलोचक थे, ने दो सबसे बड़े फौजी दलों से गठबंधन कर लिया है। उन्होंने ठीक वही किया है जिसे कभी न करने की कसम फेऊ थाई ने खाई थी। 22 अगस्त को ही – जिस दिन नए प्रधानमंत्री की नियुक्ति की गई – थाकसिन ने 15 साल के निवार्सन के बाद थाईलैंड की भूमि पर कदम रखा। आते ही उन्होंने पहला काम सम्राट की प्रतिमा के सामने सर झुकाने का किया।  उसके बाद उन्हें लंबे समय पहले लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार कर लिया गया, जिसमें उन्हें आठ साल की जेल की सजा सुनाई जा चुकी है। लेकिन अनुमान है कि उन्हें शीघ्र ही सम्राट द्वारा क्षमादान दे दिया जाएगा। 78 वर्षीय थाकसिन का कहना है कि वे थाईलैंड इसलिए वापस आए हैं ताकि वे अपने नाती-पोतों के साथ रह सकें। लेकिन नई सरकार के गठन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका, उसके बाद उनका वापस आना, और ‘सम्राट के क्षमादान’ की अपेक्षा – इन सबसे उनकी राजनीति और सत्ता में वापसी के संकेत मिलते हैं।

हालांकि थाकसेन को आज भी पहले जितना समर्थन हासिल है, विशेषकर बुजुर्गों और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वालों का – जो विमानतल पर भी देखा गया, किंतु ऐसे बहुत से लोग हैं जो उनकी अवसरवादिता से नाराज हैं। कुछ समर्थकों का कहना है कि वे समझते हैं कि पिछले तख्तापलट के बाद खड़ी की गई चुनावी बाधाओं से पार पाने के लिए पार्टी का यह करना जरूरी था। दूसरा मत यह है कि यह इस बात का संकेत है कि पार्टी ने अपने लोकतांत्रिक मूल्यों को त्याग दिया है, और यह सवाल भी पूछा जा रहा है कि क्या यह कदम थाकसिन के वापस आने के लिए किए गए समझौते का एक हिस्सा है?

लेकिन लोगों को उनकी वापसी से बहुत उम्मीदें हैं। उनका आर्थिक समृद्धि हासिल करने का रिकार्ड है, इसलिए थाईयों को आशा है कि उनकी पार्टी सेना के चंगुल में नहीं फंसेगी और सोच-समझकर, बिना डरे अपने पूरे कार्यकाल तक सरकार चलाएगी। परन्तु एक समस्या यह है कि थाई लोगों के पास अब विकल्प है।  मूव फारवर्ड ने युवाओं में काफी लोकप्रियता हासिल कर ली है और वह थाईलैंड का सबसे लोकप्रिय दल बन गया है। तभी देखना है कि थाकसेन की पार्टी, जो पहले सबसे लोकप्रिय थी, अपना पुराना समर्थन दुबारा हासिल कर पाएगी या नहीं। या फिर मूव फारवर्ड पार्टी अपने युवा प्रमुख के नेतृत्व में थाईयों के लिए एक नई आशा की किरण बनेगी। कुछ भी हो थाईलैंड की राजनीति, जो पहले अनिश्चिततापूर्ण थी, थाकसिन शिनात्रा की वापसी के अब दिलचस्प हो गई है क्योंकि पहले से बनी हुई विभाजन की स्थिति अब और अधिक विभाजित होने जा रही है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)  

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By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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