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टेलिग्राम और अभिव्यक्ति की आजादी

Telegram CEO arrested

क्या किसी सोशल मीडिया प्लेटफार्म के मालिक की गिरफ़्तारी से बोलने की आजादी खतरे में पड़ती है?

कुबेरपति पावेल डुरोव, जो टेलीग्राम के संस्थापक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं, की गिरफ्तारी के बाद दुनिया भर में बोलने की आजादी को लेकर चिंता जताई जा रही है। इस मुद्दे पर बहस की शुरूआत एलन मस्क ने की और अब वही इसका नेतृत्व कर रहे हैं। एक्स पर उन्होंने इस गिरफ्तारी को बोलने की आजादी के लिए अशुभ बताया। एडवर्ड स्नोडेन ने इसे अभिव्यक्ति और संगठित होने के मूलभूत मानवाधिकारों पर हमला कहा।

39 साल के पवेल डुरोव अरबपति हैं, टेकी हैं, रूसी हैं और टेलीग्राम के मालिक हैं। टेलीग्राम भारत में भी उच्च तबके में एक ऐसे एप के रूप में कुख्यात है जो आपकी गुपचुप की गई बातों को गुप्त बनाए रखता है। इस एप की शुरूआत ग्यारह साल पहले पावेल डुरोव ने की थी और दस साल पहले उनके रूस छोड़ने के बाद से यह दुबई से संचालित हो रहा है। दुनिया भर में 90 करोड़ लोग इसका इस्तेमाल करते हैं। भारत इसके बड़े बाजारों में से एक हैं और अगस्त 2021 तक इसे भारत में 22 करोड़ से ज्यादा बार डाउनलोड किया जा चुका था, जो पूरी दुनिया में उसके डाउनलोड्स का 22 फीसद है।

मैं नहीं जानती कि यह एप कैसे काम करता है क्योंकि मैं इसका इस्तेमाल नहीं करती। टेलिग्राम के बारे में मैंने जितना पढ़ा है, उससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह अब मात्र संदेशों के आदान-प्रदान का एप नहीं रहा है बल्कि वह हजारों की सदस्यता वाले ‘चैनलों’ का जबरदस्त प्रसारण प्लेटफार्म बन गया है। कुल मिला कर टेलिग्राम, व्हाटसएप की तरह एक प्लेटफार्म है जिस पर खबरें, झूठ, प्रोपेगेंडा और नैरेटिव प्रसारित कर जनमत को प्रभावित किया जा सकता है। भारत के साथ-साथ यह रूस में भी अत्यंत लोकप्रिय है और इसका उपयोग रूस-यूक्रेन युद्ध में खबरों के प्रसारण और सैन्य संदेशों के आदान-प्रदान के लिए बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। इस एप का इस्तेमाल ईरान और हांगकांग सहित तानाशाही शासन वाले देशों में विरोध आंदोलनों को हवा देने के लिए भी होता है।

बहरहाल, इस एप ने डुरोव को अरबपति बना दिया है। वे अब वैश्विक नागरिक हैं। उनके पास फ्रांस, रूस, सेंट किट्स और संयुक्त अरब अमीरात की नागरिकता है।

24 अगस्त को फ्रांस की पुलिस ने डुरोव को गिरफ्तार किया। यह गिरफ़्तारी फ्रांस द्वारा आपराधिक गतिविधियों के लिए टेलिग्राम के इस्तेमाल की जांच के एक भाग के रूप में हुई। एक प्रेस विज्ञप्ति में फ्रांस के अभियोजकों ने बताया कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी, नशीली दवाओं और काले धन को वैध बनाने जैसी आपराधिक गतिविधियां के लिए टेलिग्राम के इस्तेमाल पर काबू पाने के लिए सरकार द्वारा की जा रही जांच-पड़ताल में सहयोग करने से टेलिग्राम ने इंकार किया था। लेकिन इसके कुछ ही समय बाद इमैनुएल मैक्रों का ट्वीट आया जिसमें जोर देकर उन्होने कहा कि डुरोव को राजनैतिक कारणों से नजरबंद नहीं किया गया है।

मैक्रों का ट्वीट, रूस-यूक्रेन युद्ध में टेलिग्राम की भूमिका, मस्क के ट्वीट और अन्य प्लेटफार्मों के कर्ताधर्ता टैकियों द्वारा बोलने की आजादी, साजिशों आदि की बातें  – यह सब हो चुका और हो रहा है।

टेलिग्राम में संयम और संतुलन का अभाव होने के चलते उसने आईसिस समेत अन्य अति-दक्षिणपंथी उग्रपंथियों को अपने संदेश प्रसारित करने, अपने संगठनों में भर्ती करने के लिए इस प्लेटफार्म का उपयोग करने की वैसे ही छूट दे रखी है जैसे हर यूजर को है। पर इससे उन्हें अपनी गोपनीयता को कायम रखने व कानून लागू करने वाली संस्थाओं की पहुंच से दूर रहने का मौका मिला, जो फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब आदि के मामले में संभव  नहीं था। यहाँ तक कि डुरोव ने उनके प्लेटफार्म के इस तरह के इस्तेमाल को यह कहते हुए उचित ठहराया कि “मेरा मानना है कि हमारा निजता का अधिकार, आतंकवाद जैसी बुरी घटनाएं होने के हमारे डर से अधिक महत्वपूर्ण है”। उन्होंने 2015 के एक कार्यक्रम में कहा कि आईसिस द्वारा टेलिग्राम का इस्तेमाल करने को लेकर उन्हें अपराध बोध से ग्रस्त होने की जरूरत नहीं है। इसके बाद के एक दशक में नफरत फैलाने वाले संगठनों ने टेलिग्राम का जमकर इस्तेमाल किया। ब्रिटिश संस्था ‘होप नॉट हेट’ ने 2021 में लिखा कि टेलिग्राम पर “सर्वाधिक अतिवादी, नरसंहारी और हिंसक यहूदी विरोधी सामग्री” उपलब्ध है। गैरकानूनी और अवैध विचारों को रोकने संबंधी कोई नीति न होने के कारण ये सब बातें टेलिग्राम पर बड़े पैमाने पर उपलब्ध रहती हैं। स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय की इंटरनेट आब्जरवेटरी द्वारा गत वर्ष जारी एक रपट के अनुसार उसने कई ऐसे बड़े समूहों की पहचान की है जो बाल यौन शोषण संबंधी सामग्री साझा करने के लिए टेलिग्राम का इस्तेमाल करते हैं।

क्या बोलने की आजादी की बात तब की जा सकती है जब आतंकवाद और नरसंहारी गतिविधियों की चर्चा हो रही हो और उन्हें प्रचारित किया जा रहा हो? क्या बाल यौन सामग्री परोसने वाले प्लेटफार्म के संबंध में बोलने की आजादी की बात करने उचित होगा?

कई वर्षों से यूरोपीय संघ – जो सबसे सख्त नीतियों वाले दुनिया के क्षेत्रों में से एक है – टेलिग्राम और उसके यूरोपीय उपयोगकर्ताओं, जिनकी संख्या बहुत बड़ी है, से नियमों के पालन में सहयोग करने के लिए कहता आ रहा है। 2022 में यूरोपीय संघ ने डिजीटल सर्विस एक्ट लागू किया जिससे टेलीग्राम पारदर्शिता और मर्यादा संबंधी ईयू के मापदंडों का पालन करने के लिए बाध्य हुआ। इसमें हानिकारक एवं गैरकानूनी सामग्री पर निगरानी रखना भी शामिल है। फ्रांसीसी अभियोजकों का कहना है कि टेलीग्राम का इस तरह की सामग्री का वितरण रोकने में असफल रहना भी डुरोव की गिरफ्तारी का एक कारण है। उन्हें यह शक भी है कि टेलीग्राम एनक्रिप्शन संबंधी नियमों का उल्लंघन कर रहा है। क्योंकि टेलीग्राम पर भेजे जाने वाले संदेश, भेजने से लेकर प्राप्त होने की पूरी प्रक्रिया में शुरूआत से अंत तक एनक्रिप्टिड नहीं रहते हैं, जिसका अर्थ यह है कि कंपनी उन्हें देख और पढ़ सकती है – और ऐसी कोई भी सरकार भी उन्हें हासिल कर सकती है जो टेलीग्राम को झुका ले। हालांकि टेलिग्राम का दावा है कि उसने अब तक कोई भी सामग्री किसी भी सरकार के साथ साझा नहीं की है लेकिन 2023 में वायर्ड द्वारा की गई जांच में यह सामने आया कि हो सकता है कि रूस टेलीग्राम का उपयोग असंतुष्टों की जासूसी के लिए कर रहा हो, जिसका दुष्परिणाम उन्हें भुगतना पड़ रहा है। यही वजह है कि डुरोव की गिरफ्तारी से रूस के कान खड़े हो गए हैं और वहां के टैकी अरबपति चौकन्ने हैं। निश्चित ही उनके द्वारा बोलने की आजादी के समर्थन में किए जा रहे शोर-शराबे को समझा जा सकता है और एलन मस्क की इस बात में दम है कि किसी मीम को लाइक करने के लिए भी सरकार किसी को मृत्युदंड दे सकती है।

लेकिन मस्क कम पाखंडी नहीं हैं। उन्हें केवल अपने हितों और अपनी कमाई की चिंता है। उनका एक्स भारत में कई बार बहुत से एकाउंटों और संदेशों पर रोक लगा चुका है। अभी हाल में, जनवरी में, उसने उस बीबीसी डाक्यूमेंट्री के लिंक को ब्लाक कर दिया था जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आलोचना की गई थी। अपने आपको बोलने की संपूर्ण आजादी का समर्थक बताने वाले एलन मस्क के ट्विटर ने कई बार भारतीयों की मोदी सरकार के खिलाफ की गई बातों पर रोक लगाई है। ये बड़े-बड़े लोग बोलने की आजादी के मुद्दे पर तब चुप्पी साध लेते हैं जब इनके प्लेटफार्म पर सरकार की आलोचना करने वाले मामूली लोगों को गिरफ्तार कर लिया जाता है।

डुरोव को हिरासत में लिए जाने की वजह जो भी हो, और इसका जो भी नतीजा हो, भविष्य में सरकारें इसका हवाला देकर सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के खिलाफ की जाने वाली कार्यवाहियों को उचित ठहराएंगीं, भले ही वह  न्यायोचित हो या न हो। और जब सोशल मीडिया प्लेटफार्मस पर अपने बोलने के अधिकार का उपयोग करने पर साधारण लोगों को इसकी कीमत चुकानी पड़ती है, तो फिर इसके मालिकों और संस्थापकों को क्यों बख्शा जाए? विशेषकर इसलिए क्योंकि वे अपनी मनमानी नीतियां लागू करे रहे हैं, फिर भले ही उनसे समाज को कुछ भी नुकसान क्यों न हो रहा हो। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

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By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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