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सीरिया गवाह है एक शासक से देश बरबादी का!

सीरिया में लंबे समय से अफरा-तफरी का माहौल है। वजह हैं युद्ध, भूकंप और एक ऐसा तानाशाह शासक जिसे दुनिया नापसंद करती है। सीरिया ने अपनी आबादी का एक बड़ा हिस्सा खो दिया है। जो लोग बचे हैं वे विरोध कर रहे हैं, विद्रोह कर रहे हैं ताकि उन्हें किसी भी तरह से राष्ट्रपति बशर अल-असद से छुटकारा मिले। और मुसीबतों से घिरी सीरिया की धरती पर समृद्धि और शांति की वापसी हो सके। दो हफ्ते पहले सरकार के कब्जे वाले दक्षिण सीरिया के इलाकों में विरोध प्रदर्शनों और हड़तालों का सिलसिला शुरू हुआ। वहां के दृश्य सन् 2011 में सीरिया में हुए जनप्रतिरोध (जिसे अरब स्प्रिंग कहा जाता है) की याद दिलाते हैं। इस बार जनता इसलिए सरकार के खिलाफ उठ खड़ी हुई है क्योंकि सब्सिडी खत्म होने से ईधन के दाम आसमान पर पहुंच गए हैं। इससे पहले ही सालों से युद्ध और आर्थिक संकट झेल रहे सीरिया के लोगों की कमर टूट गयी है।

विरोध प्रदर्शनकारी सीरिया के दक्षिणी शहर अस् सुवेदा में इकट्ठा हुए। उन्होंने शहर में आने वाली सभी सड़कों को बंद कर दिया। सीरिया में 2011 की बगावत के बाद से ही सुवेदा शहर और प्रांत सरकार के नियंत्रण में रहे हैं। यहा देश के द्रूस अल्पसंख्यकों की सबसे बड़ी आबादी रहती है। ऐसा बताया जाता है कि शहर के बीचोंबीच स्थित एक चौक में सैकड़ों लोग इकट्ठा हो रहे हैं और द्रूस झंडे लहराते हुए ‘सीरिया जिंदाबाद’ और ‘बशर अल-असद मुर्दाबाद’ के नारे लगा रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के अनुसार असद के खिलाफ गुस्से और उनके शासन से निराशा की लहर पूरे इलाके में फैल रही है। एएफपी के संवाददाता के अनुसार डारा प्रांत में स्थित बुसरा अल-शाम शहर में दर्जनों लोग खुलकर असद के राज के अंत की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। 

प्रदर्शनकारी वही नारे लगा रहे हैं जो 2011 में अरब स्प्रिंग में इस्तेमाल किए जाते थे –  “जनता सरकार का पतन चाहती हैं” और “सीरिया हमारा है असद के परिवार की बपौती नहीं है’। दारा प्रांत से ही 2011 के विद्रोह की शुरूआत हुई थी। इस विद्रोह को असद ने बेरहमी से कुचला था। इसके नतीजे में जो गृहयुद्ध शुरू हुआ वह पिछले एक दशक से जारी है। इसमें कम से कम पांच लाख लोग मारे जा चुके हैं और इससे भी बड़ी संख्या में बेघर हो गए हैं। सुवेदा में लोगों के हाथों में प्लेकार्ड हैं जिनमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के उस प्रस्ताव का हवाला दिया गया है जिसमें सीरिया में एक अस्थायी सरकार की स्थापना की मांग की गई है। वे उन हजारों लोगों की रिहाई की मांग भी कर रहे हैं जिन्हें सीरिया के सुरक्षा बलों ने 12 साल पहले देश में हुए विद्रोह के बाद से अज्ञात स्थानों पर कैद करके रखा है। अमेरिका ने प्रदर्शनकारियों का समर्थन किया है। अमेरिका की संयुक्त राष्ट्रसंघ में राजदूत लिंडा थामस-ग्रीनफील्ड ने कहा ‘‘सीरिया के लोग हमारे पूर्ण समर्थन के पात्र हैं”। सीरिया में जर्मनी के विशेष दूत स्टीफन श्नेक ने सोशल मीडिया पर प्रदर्शनकारियों के ‘साहस’ की तारीफ की और सरकार से कहा कि वह उन्हें कुचलने के लिए हिंसा का इस्तेमाल न करे। 

पिछले कुछ सालों में देश में हिंसा में कमी आने के बावजूद सीरिया की सरकार उन इलाकों का पुननिर्माण नहीं करवा सकी है जिन पर उसने फिर से नियंत्रण कायम कर लिया है। लोगों की आर्थिक समस्याएं बहुत बढ़ी हैं। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने जून में कहा था कि सीरिया में बारह साल से चल रहे संघर्ष ने देश की 90 प्रतिशत आबादी को गरीबी की रेखा के नीचे धकेल दिया है। खाने-पीने की चीज़ों के दाम बढ़ रहे हैं और बिजली और ईंधन की सप्लाई में भारी कमी की गयी है. इस साल की गर्मियों में सीरियाई पौंड की कीमत में ऐतिहासिक गिरावट आई। काला बाज़ार में 15,000 सीरियाई पौंड के बदले एक डॉलर मिल रहा था। पिछले साल की तुलना में इसकी कीमत एक-तिहाई रह गई है। सरकार वेतन बढ़ाती जा रही है और ब्रेड व पेट्रोल पर सब्सिडी उसे बहुत महँगी पड़ रही है। 

परन्तु असद के खिलाफ गुस्से की लहर बार-बार उठने के कारण केवल आर्थिक नहीं हैं। परन्तु असद पर इसका कोई असर नहीं है। सीरिया का यह तानाशाह यदि आज भी अपने पद पर जमा हुआ है तो उसका कारण है सन 2015 में व्लादिमीर पुतिन द्वारा सीरिया में किया गया सैनिक हस्तक्षेप. असद, जिन्होंने अपने ही लोगों के खिलाफ रसायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया, जिन्होंने बेरहमी से लोगों को कत्ल किया और शहरों को बर्बाद किया और जिन्हें किसी अंतर्राष्ट्रीय अदालत के सामने मुलजिम के रूप में खड़ा रहना चाहिए था, वे अरब देशों के साथ दोस्ती गाँठ रहे हैं। परन्तु अंतर्राष्ट्रीय मंच पर वापसी के उनके प्रयासों के साथ-साथ लोग फिर से सड़कों पर उतर आये हैं। वे दुनिया को यह संदेश दे रहे हैं कि असद की सीरिया पर पकड़ अब भी कमज़ोर है और देश में गंभीर आर्थिक संकट है। अगर विरोध प्रदर्शन, दक्षिण सीरिया के बाहर फैलते हैं तो सीरिया दुनिया के लिए एक बड़ा सिरदर्द बन जाएगा। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)    

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By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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